पश्चिमी देशों में सौ द्वीपों का नगर के नाम से ख्यात है बांसवाड़ा, कहलाता है राजस्थान का चेरापूँजी

By: Geeta Sun, 06 Aug 2023 09:50:40

पश्चिमी देशों में सौ द्वीपों का नगर के नाम से ख्यात है बांसवाड़ा, कहलाता है राजस्थान का चेरापूँजी

बांसवाड़ा भारत के राजस्थान राज्य के बांसवाड़ा ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है, और राजस्थान के दक्षिणी भाग में गुजरात व मध्य प्रदेश राज्यों की सीमा के निकट है। इसे "सौ द्वीपों का नगर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ से होकर बहने वाली माही नदी में अनेकानेक से द्वीप हैं। बांसवाड़ा पश्चिमी देशों में इसी नाम से ख्यात है। यहाँ आने वाले पर्यटक सबसे सौ द्वीपों को देखने की इच्छा प्रकट करते हैं। टूरिस्ट गाइड भी सबसे पहले पर्यटकों को माही नदी स्थित द्वीपों की सैर कराते हैं। इस जिले को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहते हैं। मध्य प्रदेश से होकर आने वाली माही नदी यहां का प्रमुख आकर्षण है। यह नदी बासंवाडा जिले की जीवन वाहिनी है। इस जगह का अपना नाम बासंवाडा बांस के पेड़ों से मिलता है जो यहां कभी काफी संख्या में हुआ करते थे।

बांसवाड़ा के आसपास का क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में समतल और उपजाऊ है, माही बांसवाड़ा की प्रमुख नदी है। मक्का, गेहूँ और चना बांसवाड़ा की प्रमुख फ़सलें हैं। बांसवाड़ा में लोह-अयस्क, सीसा, जस्ता, चांदी और मैंगनीज पाया जाता है। इस क्षेत्र का गठन 1530 में बांसवाड़ा रजवाड़े के रूप में किया गया था और बांसवाड़ा शहर इसकी राजधानी था। 1948 में राजस्थान राज्य में विलय होने से पहले यह मूल डूंगरपुर राज्य का एक भाग था।

बांसवाड़ा के पूर्व में प्रतिवेशी पहाड़ियों द्वारा बने एक गर्त में बाई तालाब नाम से ज्ञात एक कृत्रिम तालाब है जो महारावल जगमाल की रानी द्वारा निर्मित बताया जाता है। लगभग 1 किलोमीटर दूर रियासत के शासकों की छतरियां हैं। कस्बे में कुछ हिन्दू व जैन मन्दिर व एक पुरानी मस्जिद भी है। अब्दुल्ला पीर दरगाह निकटस्थ ग्राम भवानपुरा में स्थित है। इस स्थान पर प्रतिवर्ष बोहरा सम्प्रदाय के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। माही परियोजना बांध की नहरों में पानी वितरण के लिए शहर के पास निर्मित कागदी पिक-अप-वियर है जो सैलानियों के लिए आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।बांसवाडा जिले मे तलवाङा नामक गांव के निकट मंदिर की गदाधर की मूर्ति पर सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह का लेख है संभवतः यह मूर्ति गुजरात से लायी गयी हो या जयसिंह का संबंध इस प्रांत से रहा हो।

पौराणिक कथा के अनुसार बांसवाड़ की उत्पत्ति राजा पुत्रका द्वारा की गई थी। वैज्ञानिक इतिहास की माने तो बांसवाड़ा, राजस्थान का इतिहास 490 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ, जब मगध के राजा अजातशत्रु अपनी राजधानी को पहाड़ी क्षेत्र से और अधिक सामरिक रूप से स्थित करना चाहते थे। बताया जाता है कि गौतम बुद्ध अपने जीवन के अंतिम वर्ष में इस स्थान से गुजरे थे। वर्तमान की स्थापना एक भील राजा वाहिया चरपोटा द्वारा की गई थी। वाहिया को राजा बांसिया भील भी कहा जाता था उस उसी के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा। 1530 में इस क्षेत्र का बांसवाड़ा राजवाड़े के रूप में किया गया था और बांसवाड़ा इसकी राजधानी हुआ करता था। 1948 में राजस्थान में शामिल होने से पहले यह डूंगरपुर राज्य का एक भाग हुआ करता था।

इन सब के अलावा बांसवाड़ा अपने विभिन्न पर्यटन स्थलों के लिए भी जाना जाता है। जिसकी वजह से यह देश भर के पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। माही डैम के कारण बने टापुओं की वजह से इसे ‘‘सिटी ऑफ हण्ड्रेड आईलैण्ड्स’’ के नाम से भी जाना जाता है।

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माही बांध

बांसवाड़ा से 18 किमी की दूरी पर स्थित माही डैम संभाग का सबसे बड़ा बाँध है। आपको बता दें कि इस डैम में 6 गेट हैं और यह 3.10 किमी लंबा है। यह डैम बांसवाड़ा पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। माही बजाज सागर परियोजना के तहत माही नदी पर कई बांध और नहरें बनाई गई हैं। जब यह डैम पूरी तरह से भर जाता है और इसके गेट खोले जाते हैं तो यह दृश्य बहुत ही अदभुद होता है। अगर आप बांसवाड़ा घूमने की योजना बना रहें हैं और यहां के घूमने के लिए पर्यटन स्थलों की लिस्ट तैयार कर रहें हैं तो आपको माही डैम को इस लिस्ट में जरुर शामिल करना चाहिए।

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त्रिपुरा सुंदरी/ त्रिपुर सुंदरी

त्रिपुरा सुंदरी, देवी त्रिपुर सुंदरी को समर्पित एक प्रमुख मंदिर है जो बांसवाड़ा – डूंगरपुर मार्ग पर 19 किमी दूरी स्थित है। इस मंदिर की देवी को ’तरतई माता के नाम से भी जाना जाता है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में एक काले पत्थर की सुंदर मूर्ति है जिसमें 18 भुजाएं हैं। यह हिंदुओं के ‘शक्ति पीठों’ में जानी जाती है। मां त्रिपुरा सुन्दरी का यह मंदिर देश-विदेश से भारी संख्या में पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। चैत्र एवं अश्विन नवरात्रि के दौरान यहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं और माता से मनोकामना मांगते हैं। देसी पर्यटकों में इस मंदिर को लोकप्रियता दिलाने में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा नेता वसुंधरा राजे की अहम् भूमिका रही है। श्रीमती राजे की इस मंदिर में बहुत आस्था है। वह अपना हर राजनीतिक कदम इस मंदिर के दर्शन करने के बाद ही उठाती हैं।अगर आप बांसवाड़ा घूमने जा रहें हैं तो आपको त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन करने के लिए भी अवश्य जाना चाहिए।

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दरगाह अब्दुल्ला पीर

अब्दुल्ला पीर एक बोहरा मुस्लिम संत का एक लोकप्रिय दरगाह है। यह दरगाह अब्दुल रसूल की जो शहर के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। इस दरगाह को अब्दुल्ला पीर के नाम से जाना जाता है। यहां बोहरा समुदाय के द्वारा उर्स बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। अगर आप बांसवाड़ा की यात्रा करने जा रहें हैं तो अब्दुल्ला पीर दरगाह पर भी जा सकते हैं। बता दें कि यह दरगाह जिला मुख्यालय से सिर्फ 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोई भी पर्यटक सड़क मार्ग द्वारा यहां बड़ी ही आसानी से पहुँच सकता है।

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कागदी पिक अप वियर

कागदी पिक अप वियर रतलाम रोड पर स्थित शहर से 3 किलोमीटर दूर स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। आपको बता दें कि यहां स्थित आकर्षक फव्वारों, बगीचों और जल निकायों को देखने के लिए भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। यहां की यात्रा पर्यटक अपने बच्चों के साथ भी कर सकते हैं, क्योंकि यहाँ पर बच्चों के लिए पार्क, झूले और बोटिंग की सुविधा भी है। अगर आप अपने परिवार या बच्चों के साथ बांसवाड़ा जिले की यात्रा कर रहें हैं तो आपको कागदी पिक अप वियर की सैर जरुर करना चाहिए।

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रामकुण्ड

रामकुण्ड यहां का एक बेहद पवित्र स्थल है जो तलवाड़ा से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। बता दें कि इस स्थल को फटी खान के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यह पहाड़ी के नीचे स्थित एक गहरी गुफा है। इस जगह के बारे में ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम अपने वनवास के समय इस जगह पर आये थे। यह स्थान खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां पर्यटक चारो तरफ हरियाली देख सकते हैं। यहां का कृतिक सौन्दर्य हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

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आनंद सागर झील

आनंद सागर झील राजस्थान की एक कृत्रिम झील है जो बांसवाडा में स्थित है। इस झील को बाई तालाब के नाम से भी जनि जाती है। इस झील का निर्माण महारानी जगमाल सिंह की रानी लंची बाई ने करवाया था। यह झील जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। आपको बता दें कि यह स्थान पवित्र पेड़ों से घिरा हुआ है, जो ‘कल्पवृक्ष’ के रूप में जाना जाता है। यह जगह यहां आने वाले यात्रियों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध है।

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अंदेश्वर पार्श्वनाथजी जैन मंदिर

अंदेश्वर पार्श्वनाथजी एक प्रसिद्ध जैन मंदिर है जो कुशलगढ़ तहसील की एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर 10 वीं शताब्दी के दुर्लभ शिलालेख का घर है। आपको बता दें कि यहां पर दो दिगंबरा जैन पार्श्वनाथ मंदिर भी हैं। यह मंदिर बांसवाड़ा से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहाड़ी पर शिव मंदिर भी स्थित है और इसके साथ ही उत्तर दिशा में दक्षिणमुखी हनुमान और पीर दरगाह भी स्थित है। जहां पर सभी धर्म के लोग आते हैं।

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राज मंदिर/ सिटी पैलेस

राज मंदिर पुराने राजपूत वास्तुकला की शैली का एक अदभुद नमूना है। इस मंदिर को सिटी पैलेस के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी के दौरान किए गया था जो एक पहाड़ी पर स्थित है। पहाड़ी के ऊपर से इस मंदिर के पास से पूरा शहर नज़र आता है। आज भी यह मंदिर शाही परिवार का है। यह महल वास्तुकला प्रेमियों के लिए बेहद खास है। अगर आप वास्तुशिल्प में दिलचस्पी रखते हैं तो आपको बांसवाड़ा के इस मंदिर में जरुर जाना चाहिए।

तलवाड़ा टैंपल

तलवाड़ा टैंपल एक प्राचीन मंदिर है जो आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां स्थित सिद्धि विनायक एक प्रमुख मंदिर है जिसे आमलीया गणेश के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के साथ ही यहां स्थित सूर्य मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, सांभरनाथ के जैन मंदिर, भगवान अमलिया गणेश, महा लक्ष्मी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर प्रमुख हैं। अगर आप बांसवाड़ा की यात्रा के दौरान किसी आध्यात्मिक जगह पर जाना चाहते हैं तो तलवाड़ा की यात्रा जरुर करना चाहिए। यहां आकर विभिन्न मंदिरों के दर्शन करने के बाद आपके मन को अदभुद शांति मिलेगी।

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मदारेश्वर महादेव मंदिर

बांसवाड़ा शहर से उत्तर-पूर्व की ओर स्थित मदारेश्वर महादेव मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां भारी संख्या में पर्यटक आते हैं। आपको बता दें कि यह मंदिर पहाड़ी के अंदर गुफा मंदिर है। इस मंदिर का प्राकृतिक स्वरूप पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। शिवरात्रि के दौरान यहां पर जिले का सबसे बड़ा मेला लगता है।

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मानगढ़ धाम

मानगढ़ धाम को राजस्थान के जलियांवाला बाग़ के नाम से जाना जाता है। यह बांसवाड़ा से 85 किमी की दूरी पर स्थित है। बता दें कि इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहां 17 नवम्बर 1913 को गोविन्द गुरू के नेतृत्व में मानगढ़ की पहाड़ी पर सभा के दौरान लोग अंग्रेजों से स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे, तभी अंग्रेजों ने 1500 राष्ट्रभक्त आदिवासियों पर गोलियां बरसा दी और उनकी हत्या कर दी। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दौरान यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से हज़ारों श्रृद्धालु शामिल होते हैं। बता दें कि वर्तमान में इसे एक राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में विकसित किया जा रहा है। जो भी पर्यटक बांसवाड़ा के दर्शनीय स्थल घूमने की योजना बना रहें हैं, उन्हें अपनी लिस्ट में मानगढ़ धाम को जरुर शामिल करना चाहिए।

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