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वक्फ संशोधन बिल 2025: क्या बदलेगा और मुस्लिम समुदाय पर क्या होगा असर?

वक्फ संशोधन बिल 2025 लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में पेश किया गया है। यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में बड़े बदलाव लाएगा, पारदर्शिता बढ़ाएगा और सरकारी निगरानी को मजबूत करेगा। जानें नए नियम, शर्तें और मुस्लिम समुदाय पर इसके प्रभाव।

Posts by : Nupur Rawat | Updated on: Thu, 03 Apr 2025 4:17:20

वक्फ संशोधन बिल 2025: क्या बदलेगा और मुस्लिम समुदाय पर क्या होगा असर?

वक्फ संशोधन बिल 2025 लोकसभा में करीब 12 घंटे की तीखी बहस के बाद पास हो चुका है। अब यह बिल राज्यसभा में पेश किया जा रहा है, जहां इसे आज ही पारित किए जाने की संभावना है। यह नया कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और उनके नियमन में बड़े बदलाव लाने वाला है। इस बिल का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को सरकारी निगरानी में लाना और पारदर्शिता बढ़ाना है। हालांकि, कानून लागू होने के बाद भी मुसलमान वक्फ बना सकेंगे, लेकिन इसके लिए पहले से अधिक सख्त नियम और शर्तें लागू होंगी। आइए जानते हैं कि इस बिल के कानून बनने से मुस्लिम समुदाय के लिए क्या बदलाव आएंगे, वे क्या कर सकेंगे और किन चीजों पर प्रतिबंध होगा। इसके अलावा, इस कानून का व्यापक प्रभाव समुदाय पर कैसा पड़ेगा, इस पर भी नजर डालते हैं।

# वक्फ बाय यूजर का खात्मा: अब बिना दस्तावेज वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी

वक्फ (संशोधन) बिल 2025 के तहत 'वक्फ बाय यूजर' के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। अब केवल वही संपत्ति वक्फ मानी जाएगी, जिसे औपचारिक रूप से लिखित दस्तावेज या वसीयत के माध्यम से वक्फ के लिए समर्पित किया गया हो।

क्या है 'वक्फ बाय यूजर' और इसमें क्या बदलाव हुआ?

पहले, यदि कोई संपत्ति (मस्जिद, कब्रिस्तान, दरगाह आदि) लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक या सामुदायिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जा रही थी, तो उसे बिना किसी औपचारिक दस्तावेज के भी वक्फ संपत्ति माना जाता था। यह इस्लामिक कानून और भारत में वक्फ की पुरानी परंपरा का हिस्सा था। लेकिन लोकसभा में पास हुए नए बिल के अनुसार, यह प्रावधान अब समाप्त कर दिया गया है। अब यदि किसी मस्जिद, कब्रिस्तान या अन्य धार्मिक स्थल के पास वक्फ बोर्ड का कानूनी दस्तावेज नहीं है, तो उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा।

नए नियम के अनुसार क्या बदलेगा?

- हर वक्फ संपत्ति की जांच जिला कलेक्टर द्वारा की जाएगी।
- बिना कानूनी दस्तावेज के वक्फ बोर्ड कोई दावा नहीं कर सकेगा।
- यदि कोई संपत्ति लंबे समय से धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग हो रही थी, लेकिन उसके पास वक्फ का आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा।

उदाहरण से समझें:

अगर किसी गांव में 100 साल से एक जमीन कब्रिस्तान के रूप में उपयोग हो रही थी, लेकिन इसे औपचारिक रूप से वक्फ घोषित नहीं किया गया, तो पहले 'वक्फ बाय यूजर' के तहत इसे वक्फ संपत्ति माना जाता था। लेकिन अब नए कानून के तहत, यदि वक्फ बोर्ड के पास इस जमीन के आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं, तो इसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इस स्थिति में, जो भी पक्ष सही दस्तावेज प्रस्तुत करेगा, वह इस जमीन पर दावा कर सकता है।

# मुस्लिमों को संपत्ति दान करने के लिए पूरी करनी होगी शर्त

वक्फ (संशोधन) बिल 2025 के तहत मुस्लिमों को संपत्ति दान करने के लिए सख्त नियमों का पालन करना होगा। गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को स्पष्ट किया कि वक्फ का अर्थ अपनी संपत्ति को इस्लाम की भलाई के लिए अल्लाह के नाम पर दान करना है, लेकिन यह दान केवल अपनी निजी संपत्ति का ही किया जा सकता है, न कि सरकारी या किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति का। नए प्रावधानों के अनुसार, संपत्ति दान करने वाला व्यक्ति उसका कानूनी मालिक होना चाहिए और कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म को मान रहा हो। 2013 के वक्फ संशोधन अधिनियम में इस शर्त को हटा दिया गया था, लेकिन अब इसे दोबारा लागू कर दिया गया है। यदि कोई व्यक्ति हाल ही में इस्लाम धर्म स्वीकार करता है और 5 साल पूरे नहीं हुए हैं, तो वह अपनी संपत्ति वक्फ के लिए दान नहीं कर सकेगा। उसे इसके लिए 5 साल तक इंतजार करना होगा। इस बदलाव से वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता और वैधता सुनिश्चित होगी, साथ ही गलत तरीके से वक्फ संपत्तियों के अधिग्रहण को भी रोका जा सकेगा। इसके अलावा, धर्मांतरण के तुरंत बाद संपत्ति दान करने की संभावनाओं को सीमित किया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि केवल योग्य व्यक्ति ही अपनी संपत्ति वक्फ में दे सकें।

# वक्फ करने से पहले महिलाओं को उनका अधिकार देना अनिवार्य

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में एक महत्वपूर्ण प्रावधान जोड़ा गया है, जिसके तहत कोई भी मुसलमान अपनी संपत्ति को वक्फ करने से पहले अपने परिवार की महिलाओं को उनका कानूनी अधिकार देना अनिवार्य होगा। यह प्रावधान विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों के हक की रक्षा के लिए लाया गया है, ताकि संपत्ति का वितरण न्यायसंगत तरीके से हो। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति के पास 10 बीघा जमीन है और वह उसे वक्फ करना चाहता है, लेकिन उसके परिवार में एक बेटी, विधवा बहन और एक अनाथ भतीजा है, तो पुराने नियमों के अनुसार वह पूरी जमीन वक्फ में दे सकता था। लेकिन अब, नए कानून के तहत, पहले इन सभी पात्र सदस्यों को उनका उचित हिस्सा देना अनिवार्य होगा, उसके बाद ही शेष जमीन को वक्फ किया जा सकेगा। अब वक्फ संपत्ति के पंजीकरण से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बेटियों, बहनों, पत्नियों, विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और अनाथों को उनका अधिकार मिल चुका है। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वक्फ अमान्य माना जाएगा। इस बदलाव का उद्देश्य महिलाओं और जरूरतमंदों के अधिकारों की रक्षा करना और संपत्ति के अनुचित दान को रोकना है।

# आदिवासी जमीन को वक्फ घोषित करना अब संभव नहीं

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 के तहत आदिवासी समुदाय की जमीन को वक्फ घोषित करने से पूरी तरह रोक लगा दी गई है। भारत के संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आदिवासी जमीनों को विशेष सुरक्षा और संरक्षण प्राप्त है, क्योंकि ये न केवल उनकी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा हैं, बल्कि उनकी आजीविका और पहचान से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। नए कानून के अनुसार, यदि कोई जमीन अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के नाम पर दर्ज है या उनके पारंपरिक अधिकार क्षेत्र में आती है, तो उसे वक्फ बोर्ड अपने अधीन नहीं ले सकता। इसके अलावा, कोई भी मुसलमान इस तरह की जमीन को वक्फ के लिए दान नहीं कर सकेगा। यह प्रावधान आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने और उनकी जमीन पर किसी भी प्रकार के बाहरी नियंत्रण या दावे को रोकने के लिए लाया गया है। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आदिवासियों की जमीन पर उनकी परंपरागत स्वायत्तता बनी रहे और वे किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षित रहें।

# धारा 40 की समाप्ति: वक्फ बोर्ड की शक्तियों में बड़ा बदलाव

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है, जो इस कानून में एक महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है। इस संशोधन से पहले, वक्फ बोर्ड के पास यह अधिकार था कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था, यदि उसे लगता था कि वह संपत्ति वक्फ की है या वक्फ के तौर पर इस्तेमाल हो रही है। इसके लिए बोर्ड को किसी ठोस कानूनी सबूत या न्यायालय के आदेश की आवश्यकता नहीं होती थी। इस धारा की वजह से कई बार संपत्तियों को जबरन वक्फ घोषित किए जाने और विवाद उत्पन्न होने के आरोप लगते रहे थे। इसको ध्यान में रखते हुए, विधेयक 2025 में धारा 40 को पूरी तरह से हटा दिया गया है। अब किसी संपत्ति के वक्फ होने का निर्णय लेने का अधिकार जिला कलेक्टर या राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी के पास होगा, न कि वक्फ बोर्ड के पास। पहले वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए निर्णय अंतिम माने जाते थे और उनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती थी। लेकिन नए संशोधन के अनुसार, वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेशों को चुनौती दी जा सकेगी, और फैसले के खिलाफ 90 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में अपील करने का प्रावधान होगा। इस बदलाव का विपक्ष ने कड़ा विरोध किया है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद कल्याण बनर्जी ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि "धारा 40 को हटाने से वक्फ बोर्ड एक दंतविहीन गुड़िया (Toothless doll) बन जाएगा।" वहीं, सरकार का तर्क है कि इस बदलाव से संपत्ति विवादों में पारदर्शिता बढ़ेगी और वक्फ बोर्ड के अधिकारों का दुरुपयोग रोका जा सकेगा।

# ASI की जमीनों और संपत्तियों को सुरक्षा

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 में यह स्पष्ट किया गया है कि अगर कोई संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारक या संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित है, तो उसे वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता। इसका मतलब यह है कि कोई भी वक्फ घोषणा या अधिसूचना अमान्य मानी जाएगी यदि संपत्ति पहले से ही प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित है। इस प्रावधान के तहत, ASI द्वारा संरक्षित स्मारकों, स्थलों और ऐतिहासिक इमारतों को अब वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। उदाहरण के लिए, अगर कोई दरगाह या कब्र किसी ऐतिहासिक स्थल पर स्थित है और ASI की संपत्ति के रूप में सूचीबद्ध है, तो वक्फ बोर्ड उसे अपनी संपत्ति घोषित नहीं कर सकता। यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर दावा करता है, तो उसे ठोस कानूनी दस्तावेज और ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे। अगर कोई संपत्ति ASI की सूची में है और वक्फ बोर्ड के पास उसके स्वामित्व से संबंधित वैध दस्तावेज नहीं हैं, तो जिला कलेक्टर उसे वक्फ संपत्ति के रूप में मान्यता नहीं देगा। इससे ऐतिहासिक स्मारकों और राष्ट्रीय धरोहरों की रक्षा सुनिश्चित होगी। गौरतलब है कि ताजमहल को भी वक्फ संपत्ति घोषित करने का प्रयास किया गया था, लेकिन इसे मान्यता नहीं दी गई। इस संशोधन के बाद, अब ASI संरक्षित किसी भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड बिना सबूत के दावा नहीं कर सकेगा।

# कलेक्टर को व्यापक अधिकार

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के तहत जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों की जांच, प्रबंधन और विवादों के निपटारे में महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं। पहले, वक्फ बोर्ड को यह अधिकार था कि वह किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था और अपने फैसले खुद लागू कर सकता था, लेकिन अब इस प्रक्रिया को बदल दिया गया है। नए प्रावधान के तहत, कलेक्टर अब यह तय करेगा कि कोई संपत्ति सरकारी है या निजी, और वह वक्फ संपत्ति घोषित की जा सकती है या नहीं। इसके अलावा, यदि किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने को लेकर विवाद होता है, तो उसका निपटारा भी कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में आएगा। गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि अब किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अंतिम अधिकार वक्फ बोर्ड के पास नहीं रहेगा, बल्कि इसे जिला कलेक्टर द्वारा सत्यापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जब मंदिर के लिए जमीन खरीदी जाती है, तो उसका मालिकाना हक भी कलेक्टर ही तय करता है, तो फिर वक्फ संपत्तियों की जांच का विरोध क्यों हो रहा है? इस संशोधन के बाद, अब यह पूरी तरह कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में होगा कि वह जांच करे और यह सुनिश्चित करे कि कोई संपत्ति सरकारी है या निजी, और क्या उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है या नहीं।

# सेंट्रल और स्टेट वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी


वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के तहत अब सेंट्रल वक्फ काउंसिल और स्टेट वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की भी नियुक्ति की जाएगी। यह बदलाव वक्फ प्रशासन में समावेशिता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि सेंट्रल वक्फ बोर्ड में अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं, जिनमें कम से कम 2 की नियुक्ति अनिवार्य होगी। वहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया कि गैर-मुस्लिम सदस्य वक्फ बोर्ड की किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग नहीं लेंगे। उनका कार्य केवल यह सुनिश्चित करना होगा कि दान और संपत्ति से जुड़े प्रशासनिक कार्य कानून के अनुसार संचालित हों। इसके अतिरिक्त, केंद्र और राज्य वक्फ बोर्डों में कम से कम दो महिलाएं (मुस्लिम या गैर-मुस्लिम) भी शामिल की जाएंगी, ताकि निर्णय प्रक्रिया में लैंगिक संतुलन बना रहे।

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