मां-बाप की ये 5 गलतियां तोड़ देती हैं बच्चों का विश्वास, बढ़ जाती हैं रिश्तों में दूरियां

By: Ankur Mundra Sat, 15 Mar 2025 11:41:43

मां-बाप की ये 5 गलतियां  तोड़ देती हैं बच्चों का विश्वास, बढ़ जाती हैं रिश्तों में दूरियां

बच्चे के लिए उसके माता-पिता से अधिक विश्वासपात्र कोई नहीं होता। वह अपने माता-पिता द्वारा कही गई हर बात को बिना किसी शक के स्वीकार करता है। लेकिन कभी-कभी माता-पिता की कुछ छोटी-छोटी गलतियां बच्चे के इस भरोसे को तोड़ सकती हैं। हालांकि, कोई भी माता-पिता जानबूझकर अपने बच्चे का विश्वास नहीं खोना चाहते, लेकिन कभी-कभी अनजाने में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे बच्चा अपने माता-पिता से विश्वास खोने लगता है। यह स्थिति दोनों के लिए बहुत मुश्किल हो सकती है, क्योंकि एक बार जब बच्चे का विश्वास माता-पिता से उठ जाता है, तो वह आसानी से बाहरी influences का शिकार हो सकता है। माता-पिता के लिए यह उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी पर सवाल उठाने जैसा हो सकता है। आज हम कुछ ऐसी ही पेरेंटिंग मिस्टेक्स के बारे में बात करेंगे, जो ऐसी क्रिटिकल सिचुएशन को जन्म दे सकती हैं।

हमेशा किए गए वादे ना निभाना

कुछ माता-पिता बच्चों को शांति बनाए रखने के लिए उनसे कभी-कभी झूठे वादे करते हैं, और बाद में उन वादों को निभाना भूल जाते हैं। यह कुछ हद तक सामान्य लग सकता है, और माता-पिता का मानना होता है कि इससे बच्चा जिद छोड़ देगा और बाद में वह इसे भूल जाएगा। कभी-कभी यह तरीका ठीक हो सकता है, लेकिन अगर ऐसा बार-बार होता है तो बच्चे के मन में धीरे-धीरे विश्वास की कमी पैदा होने लगती है। यह आदत बच्चे को यह सिखाती है कि माता-पिता के वादों पर विश्वास नहीं किया जा सकता, और धीरे-धीरे वह उनकी किसी भी बात पर विश्वास करना बंद कर सकता है।

बच्चों के इमोशंस को नजरअंदाज करना

बच्चों के लिए छोटी-छोटी बातें भी बहुत मायने रखती हैं। उन्हें लगता है कि उनकी समस्याएं उनके जीवन का अहम हिस्सा हैं, और उनकी भावना और परेशानियों को सही तरीके से समझना महत्वपूर्ण है। कई बार माता-पिता को बच्चों की परेशानियां इतनी मामूली और बचकानी लगती हैं कि वे उसे हंसी-मजाक में उड़ा देते हैं या फिर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। हालांकि, यह महसूस करना जरूरी है कि बच्चों की दुनिया में वो छोटी सी समस्या उनके लिए बहुत बड़ी हो सकती है। हो सकता है कि जो समस्या वे महसूस कर रहे हैं, वह हमारे लिए मामूली हो, लेकिन उनके लिए वही समस्या उनके जीवन के सबसे बड़े संकट की तरह हो सकती है।

अगर आप बच्चों के इमोशंस को नजरअंदाज करेंगे या उनका मजाक उड़ाएंगे, तो यह उनके आत्मविश्वास को नुकसान पहुंचा सकता है। बच्चे की भावनाओं को नजरअंदाज करने के बजाय, उन्हें पूरी तरह से सुनें, उनकी परेशानी को समझने की कोशिश करें, और उन्हें यकीन दिलाएं कि उनके इमोशंस का सम्मान किया जाएगा। यह भी जरूरी है कि आप हमेशा उनके इमोशंस को गंभीरता से लें। बच्चे जब महसूस करेंगे कि उनकी भावनाएं मायने रखती हैं, तो उनका आप पर विश्वास बढ़ेगा और वे अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात करेंगे।

जब बच्चा गलती करे, स्वीकार तो ना बनें सख्त

बच्चों को सही-गलत का फर्क सिखाना और उन्हें ईमानदारी का महत्व समझाना माता-पिता की जिम्मेदारी होती है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि आपको बच्चे की हर गलती पर सख्त रवैया अपनाना चाहिए। यदि बच्चा अपनी गलती को स्वीकार करता है और उसे सुधारने की कोशिश करता है, तो उसे सजा देने के बजाय उसकी सराहना करें। बच्चों को यह महसूस कराना चाहिए कि गलती करना इंसानियत का हिस्सा है, और सुधारने का प्रयास करना ज्यादा मायने रखता है।

जब बच्चा अपनी गलती को स्वीकार करता है, तो यह उस बच्चे के आत्मसम्मान और ईमानदारी को बढ़ावा देता है। यदि आप उसे हमेशा सजा के डर से या कठोरता से नहीं, बल्कि सहानुभूति और मार्गदर्शन के साथ प्रतिक्रिया देंगे, तो वह धीरे-धीरे अपनी गलतियों से सीखने लगेगा। अगर आप सख्त रवैया अपनाएंगे, तो बच्चा भविष्य में अपनी गलतियों को छिपाने या झूठ बोलने की कोशिश कर सकता है, क्योंकि वह डर के बजाय खुलकर अपनी बात नहीं करेगा। इसलिए, बच्चों को अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करें और जब वे ऐसा करें, तो उनकी तारीफ करें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे अपनी भावनाओं के साथ सच्चाई का सामना करेंगे।

उनके सीक्रेट को रखें सीक्रेट

जब आपका बच्चा आपसे अपनी कोई निजी बात या सीक्रेट शेयर करता है, तो यह उसकी तरफ से आपके प्रति गहरे विश्वास का संकेत होता है। बच्चे के लिए यह एक बेहद निजी और संवेदनशील पल होता है, और इसे स्वीकार करना चाहिए। बच्चों के मन में यह विश्वास होना चाहिए कि उनके पास एक ऐसा सुरक्षित स्थान है, जहां वे अपनी बातें खुलकर, बिना किसी डर के कह सकते हैं। अगर आप उनका सीक्रेट दूसरों के सामने रखते हैं, तो यह उनके मन में यह सवाल उठा सकता है कि क्या उनके निजी विचार सुरक्षित हैं या नहीं।

याद रखें कि बच्चों के लिए उनकी व्यक्तिगत बातें बेहद महत्वपूर्ण होती हैं, चाहे वे कितनी भी छोटी या मामूली क्यों न लगें। और अगर बच्चों को लगता है कि उनके साथ साझा की गई बातें दूसरों तक पहुँच जाती हैं, तो वे धीरे-धीरे अपनी बातों को छुपाने या उनसे दूर रहने लग सकते हैं। यह उनके आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इससे यह हो सकता है कि भविष्य में वे किसी और से अपनी परेशानियों या विचारों को साझा करने की कोशिश करें, लेकिन वह व्यक्ति उनका सही मार्गदर्शन नहीं कर पाएगा।

इसके अलावा, बच्चों के सीक्रेट को रखने से न केवल उनका विश्वास बनाए रहता है, बल्कि आप दोनों के बीच का रिश्ता भी मजबूत होता है। जब वे देखेंगे कि उनके विचार और भावनाएं सुरक्षित हैं, तो वे और अधिक खुले दिल से आपसे जुड़ने लगेंगे। एक स्वस्थ और मजबूत रिश्ते में यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि बच्चे अपने माता-पिता के पास आकर अपनी चिंताओं और विचारों को साझा करने में सहज महसूस करें।

दूसरों के सामने बच्चों को उलाहना देना

पेरेंट्स के लिए यह बहुत ही सामान्य है कि वे अपने बच्चे को किसी गलती के लिए डांटें या समझाएं, लेकिन यह हमेशा अकेले में किया जाना चाहिए। जब आप बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांटते हैं या उनकी गलतियों को दूसरों के सामने उजागर करते हैं, तो यह न केवल उनकी शर्मिंदगी का कारण बनता है, बल्कि उनके आत्मसम्मान पर भी बुरा असर डालता है। इससे बच्चों को लगता है कि वे अपने माता-पिता के लिए पर्याप्त अच्छे नहीं हैं, और यह उनके मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

याद रखें, बच्चों के लिए गलती करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, और यह उनकी सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा है। लेकिन अगर आप उनकी गलतियों को सार्वजनिक रूप से उजागर करते हैं, तो यह उनकी मानसिक स्थिति को कमजोर कर सकता है और उन्हें डर और असुरक्षा का अहसास करा सकता है। इसके अलावा, वे भविष्य में अपनी गलतियों को छिपाने की कोशिश कर सकते हैं, क्योंकि वे सजा से डरते हैं, न कि उन्हें सुधारने के लिए प्रेरित होते हैं।

इसलिए, जब भी बच्चों को सिखाना या समझाना हो, तो यह सुनिश्चित करें कि आप ऐसा अकेले में करें, जहां वे सहज महसूस करें। इस तरह से, वे अपनी गलतियों से सीखने के लिए खुलकर तैयार होते हैं और उनका आत्मविश्वास भी बना रहता है। यह भी जरूरी है कि बच्चे यह महसूस करें कि उनके माता-पिता उनका साथ देने के लिए हमेशा मौजूद हैं, चाहे वे कितनी भी गलतियां क्यों न करें। बच्चों को सुधारने और उनकी गलतियों को समझने का तरीका हमेशा सहायक और सकारात्मक होना चाहिए, ताकि वे भविष्य में अपनी गलतियों से बेहतर तरीके से सीख सकें।

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