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उत्तराखंड के चमोली जिले में है रंग बदलने वाली फूलों की घाटी, यहां लक्ष्मण के लिए संजीवनी लेने आये थे हनुमान

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी को देखने हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक आते हैं। यह घाटी 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली है। यह राष्ट्रीय उद्यान सूबे के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में है।

| Updated on: Fri, 05 Jan 2024 09:52:52

उत्तराखंड के चमोली जिले में है रंग बदलने वाली फूलों की घाटी, यहां लक्ष्मण के लिए संजीवनी लेने आये थे हनुमान

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व धरोहर फूलों की घाटी को देखने हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक आते हैं। यह घाटी 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली है। यह राष्ट्रीय उद्यान सूबे के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले में है। इस पूरे इलाके के संरक्षण के लिए 1982 में घाटी के साथ ही आसपास के क्षेत्र को राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया था, जिसे नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कहा जाता है। इस घाटी में प्राकृतिक रूप से बने ढलानों पर खिले तरह तरह के फूल दिव्य अनुभूति देते हैं। फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर पर्यटकों को शिविर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती है। ऐसे में पर्यटक इस घाटी के निकटतम कैंपिंग साइट पर ही कैंपिंग करते हैं। फूलों की घाटी का नजदीकी कैंपिंग साइट घांघरिया का सुरम्य गांव होगा। जहां शिविर लगाकर पर्यटक कई दिनों तक रहते हैं और फूलों की घाटी के आसपास के पर्यटक स्थलों की भी घुमक्कड़ी करते हैं।

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समुद्र तल से करीब 13,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित फूलों की घाटी में 600 से भी अधिक प्रजातियों के हिमालयी फूल पाए जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस क्षेत्र को भगवान शिव का निवास कहा जाता है। यहां ट्रैकिंग पर आने वाले पर्यटकों के लिए यह जगह अजूबा है। फूलों की घाटी हर दो सप्ताह में अपना रंग बदल देती है। कभी यहां का रंग लाल तो कभी पीला और कभी सुनहरा दिखाई पड़ता है।

अगर आप फूलों की घाटी घूमने के बारे में सोच रहे हैं, तो आपको इसका बेस्ट टाइम भी जानना जरूरी है। फूलों की घाटी हर साल 1 जून को खुलती है और अक्टूबर में बंद होती है। यहां विजिट करने का सबसे अच्छा वक्त जुलाई से लेकर सितंबर के बीच माना जाता है। इस दौरान आपको इस घाटी में फूलों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलेंगी जो कि आपका दिल जीत लेंगी। अगर आप खिले हुए फूलों को देखना चाहते हैं, तो आपको इस घाटी के भ्रमण के लिए अगस्त महीने में जाना चाहिए। इस वक्त यहां चारों तरफ फूल ही फूल खिले रहते हैं। हालांकि, इस मौसम में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण इस क्षेत्र में जाना मुश्किल भी हो जाता है।

फूलों की घाटी की खोज सबसे पहले फ्रैंक स्मिथ ने 1931 में की थी। फ्रैंक ब्रिटिश पर्वतारोही थे। फ्रेंक और उनके साथी होल्डसवर्थ ने इस घाटी को खोजा और उसके बाद यह प्रसिद्ध पर्यटल स्थल बन गया। इस घाटी को लेकर स्मिथ ने “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” किताब भी लिखी है। फूलों की घाटी में उगने वाले फूलों से दवाई भी बनाई जाती है। हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक फूलों की घाटी देखने के लिए आते हैं।

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संजीवनी बुटी लेने आये थे हनुमान

जन श्रुती के अनुसार रामायण काल में भगवान हनुमान जी संजीवनी बुटी लेने के लिए फूलों की घाटी आये थे। फूलों की इस घाटी को स्थानीय लोग परियों का निवास मानते हैं। यही कारण है कि लंबे समय तक लोग यहां जाने से कतराते थे। स्थानीय बोली में फूलों की घाटी को भ्यूंडारघाटी कहा जाता है। इसके अलावा, इस घाटी को गंधमादन, बैकुंठ, पुष्पावली, पुष्परसा, फ्रैंक स्माइथ घाटी आदि नामों से बुलाया जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में फूलों की घाटी को नंदनकानन कहा गया है। कालिदास ने अपनी पुस्तक मेघदूत में फूलों की घाटी को अलका कहां है।

यह विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी नर और गंधमाधन पर्वतों के बीच स्थित है। इसके पास ही पुष्पावती नदी बहती है। पास ही में दो ताल और लिंगा अंछरी हैं। यह घाटी मई से लेकर नवंबर तक हिमाच्छादित रहती है। हालांकि, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कई फूलों की घाटियां हैं, लेकिन चमोली जिले में स्थित इस घाटी को देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी तादाद में टूरिस्ट आते हैं। फूलों की घाटी पहुंचने के लिए सैलानियों को बदरीनाथ धाम जाने वाले सड़क मार्ग का ही इस्तेमाल करना होता है। हरिद्वार के बाद ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग होते हुए जौशिमठ और फिर उसके आगे गोविंदघाट पहुंचना होता है। उसके बाद बदरीनाथ धाम वाले मार्ग छोड़कर हेमकुंड साहिब वाले मार्ग पर घांघरिया तक पैदल ही पहुंचना होता है। यहां से फूलों की घाटी और हेमकुंड का रास्ता अलग अलग हो जाता है। ऋषिकेश से इस घाटी की दूरी 270 किलोमीटर है।

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