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चैत्र नवरात्रि में करें देवी के इन 5 मंदिरों के दर्शन, जानिए वजह

नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, खासकर देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाने वाला चैत्र नवरात्रि। 2025 में चैत्र नवरात्रि 30 अप्रैल से शुरू होकर 6 मई तक चलेगी। इस साल मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं, जो एक नई दिशा और सौभाग्य का प्रतीक है। अष्टमी और नवमी का पर्व एक साथ मनाया जाएगा, जिससे भक्तों के लिए यह और भी खास बनेगा।

| Updated on: Wed, 19 Mar 2025 7:23:42

चैत्र नवरात्रि में करें देवी के इन 5 मंदिरों के दर्शन, जानिए वजह

नवरात्रि का त्योहार हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है और यह विशेष रूप से देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है। नवरात्रि के दौरान भक्त नौ दिनों तक उपवासी रहते हुए मां दुर्गा की उपासना करते हैं और हर दिन एक विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि इन दो प्रमुख नवरात्रि पर्वों में से एक हैं, जिनमें सबसे विशेष होती है चैत्र नवरात्रि, जो आम तौर पर गर्मी के मौसम में होती है।

इस बार, 2025 में, चैत्र नवरात्रि का आरंभ 30 अप्रैल से हो रहा है और यह 6 मई तक चलेगा। खास बात यह है कि इस साल मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी, जो उनके शेर पर सवार होने के मुकाबले एक नई और महत्वपूर्ण दिशा का प्रतीक है। हाथी को हिंदू धर्म में शक्ति, धैर्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए मां दुर्गा का हाथी पर आना विशेष रूप से शुभ और सौभाग्यकारी माना जा रहा है। इस बार अष्टमी और नवमी दोनों का पर्व एक साथ मनाया जाएगा, जो भक्तों के लिए दोहरी खुशी का कारण बनेगा।

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माता वैष्णो देवी मंदिर

माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू के कटरा में स्थित है और यह भारत के सबसे पवित्र और प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव, भगवान विष्णु और देवी महाकाली के संयुक्त रूप का पूजन करता है, जिन्हें मां वैष्णो देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक अत्यंत श्रद्धेय स्थल है, और यहां हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।

यह मंदिर तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक देखे जाने वाला धार्मिक तीर्थ स्थल है। यहां के दर्शन करने के लिए भक्तों को एक कठिन यात्रा करनी होती है, जो कटरा से शुरू होती है और त्रिकुटा पर्वत की ऊँचाइयों तक जाती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु पहाड़ की चढ़ाई चढ़ते हुए देवी की गुफा तक पहुंचते हैं, जो एक आध्यात्मिक अनुभव होता है।

माता वैष्णो देवी की मान्यता और यात्रा

माता वैष्णो देवी मंदिर की एक बहुत पुरानी मान्यता है, जिसके अनुसार, यह माना जाता है कि इस मंदिर में केवल वही भक्त पहुंच सकते हैं, जिन्हें देवी स्वयं बुलाती हैं। भक्तों का विश्वास है कि अगर कोई श्रद्धालु सच में अपनी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस यात्रा को शुरू करता है, तो वह न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी संजीवनी प्राप्त करता है। यह मंदिर सच्चे दिल से किए गए भक्ति कार्यों का परिणाम है।

नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष रूप से भारी भीड़ होती है, जब लाखों श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए वहां पहुंचते हैं। भक्त न केवल भारत से, बल्कि विदेशों से भी यहां आते हैं। माता के दर्शन के साथ ही लोग अपने जीवन के सारे कष्टों का निवारण और आशीर्वाद प्राप्त करने की उम्मीद रखते हैं।

यात्रा की विशेषताएं

कटरा से मंदिर तक की यात्रा लगभग 13 किलोमीटर लंबी होती है। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालु अपने मन में देवी की भक्ति और आशीर्वाद की कामना करते हुए पैदल यात्रा करते हैं। इसके अलावा, यात्रा को अधिक आरामदायक बनाने के लिए पालकी, घोड़े, और पोनियों की व्यवस्था भी की जाती है। मार्ग में कई भव्य श्रद्धा स्थल और दर्शन स्थल आते हैं, जहां श्रद्धालु माता के भक्तों द्वारा दी गई सामग्रियों का दर्शन करते हुए आगे बढ़ते हैं।

मंदिर में पहुंचने पर भक्तों को मां के तीन पवित्र रूपों का दर्शन होता है, जो गुफा के अंदर स्थापित हैं। इनमें मां महाकाली, मां महालक्ष्मी और मां सरस्वती के रूप शामिल हैं। इन रूपों के दर्शन के बाद भक्तों का जीवन धर्म और आशीर्वाद से भर जाता है।

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चामुंडा माता मंदिर

चामुंडा माता मंदिर एक पवित्र और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की धर्मशाला तहसील में स्थित है। यह मंदिर श्री चामुंडा देवी को समर्पित है, जो देवी दुर्गा के एक रूप के रूप में पूजा जाती हैं। चामुंडा माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है और यहां देशभर से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं। यह मंदिर चामुंडा नंदिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है।

मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

चामुंडा माता का मंदिर भारत के प्राचीन दुर्गा मंदिरों में से एक है, जिसकी धार्मिक मान्यता बहुत गहरी है। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और इसे श्रद्धालु शक्तिपीठ के रूप में मानते हैं। यह स्थान श्रद्धा, भक्ति और शक्ति का प्रतीक है। मंदिर का महत्व न केवल स्थानीय भक्तों के लिए, बल्कि पूरे देशभर में रहने वाले हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से है।

चामुंडा देवी की मूर्ति और पूजा विधि

देवी चामुंडा की मूर्ति को विशेष रूप से लाल और काले रंग के वस्त्रों से सजाया जाता है, जो उनकी शक्ति और उग्र रूप को दर्शाता है। इसके अलावा, देवी की मूर्ति को विभिन्न रंगों की मालाओं और फूलों से भी सजाया जाता है, जो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक होते हैं। कुछ विशेष अवसरों पर खोपड़ी की माला के बजाय नींबू की माला भी देवी को अर्पित की जाती है, जो ताजगी और शुद्धता का प्रतीक मानी जाती है।

गर्भगृह के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हनुमान और भैरव की मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्हें मंदिर के द्वारपाल माना जाता है। ये देवता मंदिर की सुरक्षा और भक्तों के संरक्षण के लिए पूजा जाते हैं।

मंदिर तक पहुंचने का मार्ग

चामुंडा माता का मंदिर कांगड़ा जिले के पालमपुर कस्बे से लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित है। यह स्थान पहाड़ों के बीच बसा हुआ है, और यहां पहुंचने के लिए भक्तों को घने जंगलों और सुंदर रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। यह यात्रा एक अद्भुत प्राकृतिक अनुभव के रूप में होती है, जहां श्रद्धालु रास्ते भर देवी के भजनों और शरण में आने के दौरान शांति का अनुभव करते हैं।

नवरात्रि के दौरान मंदिर का महत्व

नवरात्रि के दौरान इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है। नवरात्रि में माता चामुंडा की पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है, और इस दौरान भक्तों की संख्या में भारी वृद्धि होती है। श्रद्धालु पूरे देश से नवरात्रि के पहले और आठवें दिन विशेष रूप से इस मंदिर में आते हैं, क्योंकि इस दिन विशेष पूजा-अर्चना होती है और माता के विशेष दर्शन का अवसर मिलता है। भक्त यहां अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और पूरे मन से देवी चामुंडा के चरणों में श्रद्धा अर्पित करते हैं।

इस मंदिर का अद्वितीय अनुभव

चामुंडा माता के दर्शन से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यहां का वातावरण भी भक्तों को एक सकारात्मक और बलवान अनुभव देता है। इस स्थान का प्राचीन इतिहास और देवी की शक्ति भक्तों में आत्मविश्वास और भक्ति का संचार करती है। यह मंदिर न केवल शारीरिक यात्रा है, बल्कि एक आंतरिक और आध्यात्मिक यात्रा भी है, जो हर श्रद्धालु के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

इस पवित्र स्थल पर आकर भक्त अपनी सभी परेशानियों से मुक्ति पाते हैं और देवी चामुंडा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह स्थल हर वर्ष लाखों भक्तों का ध्यान आकर्षित करता है और उनकी जीवन यात्रा को सकारात्मक दिशा देता है।

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कामाख्या मंदिर

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी शहर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्रमुख शक्ति पीठ है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर नीलाचल पहाड़ियों की ऊँचाई पर स्थित है, और इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह न केवल तांत्रिक उपासकों के लिए बल्कि हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

मंदिर का धार्मिक महत्व

कामाख्या मंदिर भगवान शिव की पत्नी, देवी सती को समर्पित है, और यह शक्ति की देवी की पूजा करने का एक प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर विशेष रूप से शक्ति पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ देवी की पूजा उनके योनि रूप में होती है। मंदिर में देवी कामाख्या की प्राचीन और ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है, जो भक्तों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है।

यहां देवी सती की मान्यता जुड़ी हुई है, जिनका शरीर भगवान शिव द्वारा हर जगह खोजा गया था। किंवदंती के अनुसार, देवी सती का प्रजनन अंग इस स्थान पर गिरा था, और इसे धरती पर बसने के बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना को लेकर यह स्थान पवित्र माना जाता है और इसे शक्ति पीठों में से एक माना जाता है।

मंदिर का स्थापत्य और परिसर

कामाख्या मंदिर का परिसर बहुत विस्तृत है, और यहाँ कुल पांच मंदिर स्थित हैं, जो भगवान शिव के विभिन्न रूपों को समर्पित हैं। इन मंदिरों में प्रमुख रूप से कैलाशनाथ मंदिर, शिव मंदिर, और शिव शक्ति मंदिर शामिल हैं। इसके अलावा, परिसर में भगवान विष्णु के तीन मंदिर भी स्थित हैं, जो केदार, गदाधर, और पांडुनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन मंदिरों में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और ये स्थल भक्तों के लिए अत्यधिक पवित्र माने जाते हैं।

तांत्रिक पूजा और धार्मिक महत्व

कामाख्या मंदिर तंत्र साधना और तांत्रिक पूजा के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की तांत्रिक पूजा विधियां विशेष रूप से श्रद्धालुओं को अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। यह स्थान तांत्रिक साधकों के लिए एक प्रमुख केंद्र है, जहां वे देवी की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। इसके अलावा, मंदिर परिसर में समय-समय पर तांत्रिक अनुष्ठान और पूजा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भक्त बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ भाग लेते हैं।

नवरात्रि और मंदिर में विशेष पूजा

नवरात्रि के दौरान कामाख्या मंदिर में विशेष रूप से भक्तों का सैलाब उमड़ता है। इस पर्व के दौरान, देवी कामाख्या की पूजा-अर्चना बड़े धूमधाम से की जाती है और भक्त संतान सुख और शुभकामनाओं के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के समय देवी के दर्शन से संतान सुख की प्राप्ति होती है, और यह समय विशेष रूप से संतान इच्छाओं के लिए समर्पित होता है। भक्त यहां विशेष रूप से संतान सुख की कामना करने के लिए आते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएँ और किंवदंतियाँ

कामाख्या मंदिर से जुड़ी कई रोमांचक और प्राचीन मान्यताएँ और मिथक हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह मंदिर देवी काली से जुड़ा हुआ है, जो शक्ति और अंधकार की देवी मानी जाती हैं। इस मंदिर का दर्शन करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि यह शरीर और मन की शांति भी प्रदान करता है। साथ ही, यहां पूजा करने से जीवन की सारी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

मंदिर की भव्यता और पर्यटन

कामाख्या मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां आने वाले भक्त न केवल देवी के दर्शन करते हैं, बल्कि इस स्थान की अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता और वास्तुशिल्प का भी आनंद लेते हैं। मंदिर के आसपास का वातावरण बहुत ही शांत और ध्यानपूर्ण होता है, जो श्रद्धालुओं को आंतरिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में मदद करता है।

कुल मिलाकर, कामाख्या मंदिर न केवल असम बल्कि पूरे भारत के सबसे पवित्र और शक्तिशाली धार्मिक स्थलों में से एक है। यहां आकर श्रद्धालु न केवल आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, बल्कि यह स्थान उनके जीवन को एक नई दिशा भी प्रदान करता है।

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दक्षिणेश्वर काली मंदिर

दक्षिणेश्वर काली मंदिर कोलकाता के सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है, जो पश्चिम बंगाल के दक्षिणेश्वर क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है और प्रत्येक वर्ष लाखों भक्तों द्वारा यहां दर्शन के लिए आते हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, और यह ना केवल भक्तों के लिए एक तीर्थ स्थल है, बल्कि यहां की वास्तुकला और वातावरण भी श्रद्धालुओं को आंतरिक शांति प्रदान करता है।

मंदिर का इतिहास

दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना 1847 में रानी रासमणि ने की थी। रानी रासमणि, जो एक धनी और धार्मिक महिला थीं, ने इस मंदिर को बनवाया और इसे देवी काली की पूजा के लिए समर्पित किया। मंदिर का निर्माण कार्य बंगाल के प्रसिद्ध वास्तुकारों द्वारा किया गया और इसे नवरत्न शैली में बनाया गया, जो कि भारतीय वास्तुकला का एक प्रसिद्ध रूप है। इस मंदिर के निर्माण में रानी रासमणि की विशेष भूमिका रही, और वह इस मंदिर की पहली प्रमुख भक्त भी बनीं।

देवी भवतारिणी और मंदिर की प्रमुख पूजा


दक्षिणेश्वर काली मंदिर की मुख्य देवी भवतारिणी हैं, जो महादेवी काली के एक रूप हैं। भवतारिणी देवी का रूप शक्ति और क्रोध के साथ-साथ करुणा और सुरक्षा का प्रतीक है। उन्हें आदिशक्ति कालिका भी कहा जाता है, और उनकी पूजा के द्वारा भक्त जीवन में संतान सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। इस मंदिर में देवी भवतारिणी के दर्शन विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के समय देवी के दर्शन से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और जीवन की तमाम परेशानियाँ समाप्त होती हैं। भक्तों का मानना है कि देवी की कृपा से उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं, और यह मंदिर न केवल पूजा का केंद्र है, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करता है।

मंदिर परिसर और संरचना

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का परिसर बहुत ही भव्य और विशाल है। यहां कुल 12 शिवलिंगों वाले द्वादश शिव मंदिर हैं, जो भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए प्रसिद्ध हैं। मंदिर के भीतर एक विष्णु मंदिर भी स्थित है, जहां भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इसके अलावा, एक नट मंदिर भी है, जो नृत्य और संगीत से जुड़ी पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है। इस मंदिर परिसर का आंतरिक वातावरण बहुत शांत और ध्यानपूर्ण है, जो श्रद्धालुओं को ध्यान और साधना के लिए प्रेरित करता है।

मंदिर परिसर में एक सुंदर प्रांगण है, जहां भक्त और पर्यटक आराम से समय बिता सकते हैं और इस स्थान की धार्मिक महिमा का अनुभव कर सकते हैं। यहां का वातावरण बहुत ही शांतिपूर्ण है, और यह स्थान धार्मिक अनुशासन और ध्यान के लिए आदर्श माना जाता है।

मंदिर के आसपास का क्षेत्र

दक्षिणेश्वर काली मंदिर का स्थल हुगली नदी के किनारे स्थित है, और यहाँ से विवेकानंद पुल जुड़ा हुआ है, जो मंदिर के नजदीक ही स्थित है। यह पुल मंदिर को अन्य क्षेत्रों से जोड़ता है और यहां आने वाले भक्तों के लिए मार्ग को सरल बनाता है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र अत्यधिक विकासित है, और यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह श्यामबाजार से केवल 4-5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, और हावड़ा स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर है। दमदम हवाई अड्डे से भी यह मंदिर 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे यह आसानी से पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध हो जाता है।

नवरात्रि और विशेष पूजा

नवरात्रि के दौरान दक्षिणेश्वर काली मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। यहां भक्त देवी भवतारिणी की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए विशेष अनुष्ठान और अनुदान किए जाते हैं। यह समय विशेष रूप से मंदिर में आस्था और भक्ति का उत्सव होता है, और मंदिर में देवी के दर्शन करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

धार्मिक और पर्यटन महत्व

दक्षिणेश्वर काली मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहां आने वाले पर्यटकों को न केवल धार्मिक अनुभव होता है, बल्कि इस मंदिर की वास्तुकला, इतिहास और सांस्कृतिक महत्व को देखकर वे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यह स्थान कोलकाता के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शामिल है, और यहां आकर श्रद्धालु और पर्यटक दोनों ही आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आनंद का अनुभव करते हैं।

कुल मिलाकर, दक्षिणेश्वर काली मंदिर एक महान धार्मिक स्थल है, जो हर भक्त के लिए शक्ति, शांति और आशीर्वाद का स्रोत है। इस मंदिर का दौरा एक अनूठा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने में सहायक होता है।

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अम्बाजी मंदिर

अम्बाजी मंदिर गुजरात के बनासकांठा जिले के अरासुरी पर्वत पर स्थित है और यह भारत के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर विशेष रूप से मां अम्बा की पूजा के लिए जाना जाता है और इसे 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। अंबाजी मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि यह स्थान प्राचीन समय से ही श्रद्धालुओं के लिए एक तीर्थ स्थल रहा है। यहां देवी अम्बा की पूजा एक शाश्वत परंपरा है, जो आदिवासी समुदाय से लेकर आम जन तक, सभी के बीच अत्यधिक श्रद्धा का केंद्र है।

मंदिर का इतिहास

अम्बाजी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और यह माना जाता है कि यह मंदिर पूर्व-वैदिक काल से पूजा जाता आ रहा है। इस मंदिर से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, जब देवी सती के शरीर के अंग पृथ्वी पर गिर रहे थे, तब उनके प्रजनन अंग अरासुरी पर्वत पर गिर गए थे, जिससे यह स्थान एक शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यहां की पूजा अर्चना के दौरान भक्त मां अम्बा के अलौकिक रूप की आराधना करते हैं, जिन्हें शक्ति और शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है।

नवरात्रि और विशेष त्यौहार

नवरात्रि के समय अम्बाजी मंदिर में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। पूरे गुजरात में इस समय भक्त माता अम्बा की पूजा में संलग्न रहते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना होती है और भक्त गरबा नृत्य करते हैं। गरबा नृत्य का आयोजन मंदिर के आसपास किया जाता है, जो उत्सव का एक अहम हिस्सा है। इस दौरान लोग धार्मिक गीतों के साथ माता अम्बा की आराधना करते हैं, और पूरा माहौल भक्ति और उल्लास से भर जाता है।

इन नौ रातों में विशेष रंगमंच नाटकों का आयोजन भी होता है, जिनमें भवई रंगमंच की विशेष प्रस्तुति होती है। यह नाटकों का परंपरागत रूप है, जिसे मुख्य रूप से नायक और भोजोक समुदाय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। भवई रंगमंच में लोक गीत, नृत्य और अभिनय के माध्यम से देवी की महिमा और लोककथाओं का चित्रण किया जाता है।

भादरवी पूर्णिमा और मेला

अम्बाजी मंदिर का भादरवी पूर्णिमा पर विशेष महत्व है। इस दिन मंदिर में एक बड़ा मेला आयोजित होता है, जिसमें देश भर से भक्त पैदल यात्रा करते हुए अंबाजी पहुंचते हैं। यह मेला लाखों श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित करता है, और इसमें लोग अपने दुखों को दूर करने और माता अम्बा के आशीर्वाद के लिए आते हैं। भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति से इस दिन को मनाते हैं और मंदिर में दर्शन करने के बाद आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

दिवाली के समय मंदिर की रौनक

अम्बाजी मंदिर के परिसर में दिवाली के समय विशेष सजावट होती है, और पूरा अंबाजी शहर दीपों से जगमगाता है। यह एक खास दृश्य होता है, जहां मंदिर के सभी मार्ग और भवन दीपों से सजे होते हैं। भक्त देवी अम्बा को दीप जलाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और इस दिन को विशेष रूप से माता की महिमा को मान्यता देने के रूप में मनाते हैं।

अम्बाजी मंदिर का आंतरिक सौंदर्य और संरचना

अम्बाजी मंदिर की वास्तुकला बहुत आकर्षक और अद्वितीय है। मंदिर का मुख्य आकर्षण माता अम्बा की मूर्ति है, जो बिना चेहरे वाली एक प्रस्तर प्रतिमा के रूप में है। यह मूर्ति एक अत्यधिक साधारण और पवित्र रूप में प्रतिष्ठित की गई है, जो कि देवी की निराकार शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। इस मूर्ति की पूजा में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान और विधियों का पालन किया जाता है।

मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक की यात्रा भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव होती है। मंदिर परिसर के आसपास की हर चीज़ को पवित्र और श्रद्धापूर्ण तरीके से संरक्षित किया गया है, ताकि भक्तों को एक शांतिपूर्ण और ध्यानपूर्ण वातावरण मिल सके।

अम्बाजी मंदिर के आस-पास के स्थल


अम्बाजी मंदिर के आसपास के क्षेत्र भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य, पर्वतीय दृश्य और शांति, भक्तों को शांति और मानसिक शांति का अहसास कराते हैं। अरासुरी पर्वत, जिस पर यह मंदिर स्थित है, एक ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है, जो देवी अम्बा के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।

यात्रा मार्ग

अम्बाजी मंदिर के लिए यात्रा करना बहुत ही सुविधाजनक है। यह स्थान गुजरात के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अहमदाबाद से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग, रेल और बस सेवाएं उपलब्ध हैं। मंदिर के पास ही एक पार्किंग क्षेत्र भी है, जिससे भक्तों को दर्शन के लिए आने में कोई परेशानी नहीं होती।

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