महाराष्ट्र सरकार ने पहली कक्षा से हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के निर्णय को रद्द कर दिया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को यह अहम घोषणा की, जो कई माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों के लिए राहत की सांस जैसी रही। इस फैसले के खिलाफ शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राज ठाकरे की मनसे ने पांच जुलाई को महामोर्चा निकालने का ऐलान किया था। जन-भावनाओं के उबाल के बाद सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने बताया कि एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है और उसी की रिपोर्ट के आधार पर आगे की दिशा तय की जाएगी। इसके बाद त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू किया जाएगा ताकि संतुलन बना रहे और किसी की मातृभाषा आहत न हो।
रविवार को हुई कैबिनेट की अहम बैठक में हिंदी भाषा विषय को लागू करने पर गहन चर्चा की गई। व्यापक मंथन के बाद सरकार ने 16 अप्रैल और 17 जून 2025 को जारी दोनों सरकारी आदेश (GR) को रद्द करने का निर्णय लिया। यह फैसला एक ऐसे समय आया है जब भाषा और पहचान को लेकर संवेदनशीलता चरम पर है।
नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में बनेगी समिति, विशेषज्ञ राय से होगा भविष्य तय
कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने बताया कि तीसरी भाषा किस कक्षा से लागू की जाए, इसे लेकर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाएगी। डॉ. जाधव को एक अनुभवी शिक्षाविद् और नीति निर्माता के रूप में जाना जाता है। वे योजना आयोग के सदस्य और कुलपति भी रह चुके हैं। यह समिति विस्तृत अध्ययन के बाद अपनी सिफारिश देगी, ताकि कोई भी निर्णय जल्दबाजी में न हो।
फडणवीस ने कहा कि इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही त्रिभाषा सूत्र को लागू किया जाएगा। इसलिए, 16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 के दोनों सरकारी निर्णयों को फिलहाल रद्द किया गया है—यह निर्णय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए लिया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और जनता की आपत्तियां: भाषा के अधिकार की लड़ाई
16 अप्रैल और 17 जून 2025 को राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत निर्देश जारी किए थे, जिनमें पहली कक्षा से हिंदी पढ़ाना अनिवार्य किया गया था। इस त्रिभाषा फॉर्मूले के तहत छात्रों को तीन भाषाएं—मातृभाषा, हिंदी और अंग्रेजी—पढ़ाई जातीं।
लेकिन इस फैसले के खिलाफ मराठी भाषी संगठनों, राजनीतिक दलों और कई समाजसेवियों ने तीव्र विरोध जताया। इन संगठनों का मानना था कि हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करना "भाषाई आक्रमण" जैसा है और इससे मराठी भाषा एवं संस्कृति पर खतरा मंडरा सकता है। कई शिक्षाविदों ने इस नीति की समीक्षा की मांग उठाई।
विपक्ष के दबाव में सरकार ने बदला रुख, मराठी अस्मिता बनी बड़ा मुद्दा
शिवसेना (ठाकरे गुट) और मनसे जैसे दलों ने इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन का ऐलान किया था। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार केंद्र की भाषा नीति राज्य पर थोप रही है। शिवसेना (यूबीटी) ने तो रविवार को हिंदी पुस्तक की ‘होलिका’ जलाकर अपना विरोध भी दर्ज कराया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी स्थानीय निकाय और विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मराठी अस्मिता से जुड़े इस संवेदनशील विषय पर बैकफुट लिया है। यह फैसला लोगों की आवाज और सांस्कृतिक पहचान के प्रति एक तरह की स्वीकृति भी है।