
भारत की उभरती हुई शतरंज प्रतिभा दिव्या देशमुख ने दुनिया को चौंकाते हुए महिला चेस वर्ल्ड कप 2025 का खिताब अपने नाम कर लिया है। जॉर्जिया के बाटुमी में आयोजित इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के फाइनल में दिव्या ने अनुभवी और भारत की दिग्गज खिलाड़ी कोनेरू हंपी को मात दी। महज़ 19 वर्ष की उम्र में दिव्या ने न सिर्फ चैंपियन बनकर देश का नाम रोशन किया, बल्कि ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी भी बन गईं।
पिछले साल जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत चुकी दिव्या ने अब सीनियर स्तर पर भी अपने जलवे दिखा दिए हैं। इस जीत के साथ ही वो भारत की चौथी महिला ग्रैंडमास्टर भी बन गई हैं। एक ही खिलाड़ी के तौर पर ये उपलब्धियां बेहद कम समय में हासिल करना, उन्हें एक असाधारण प्रतिभा साबित करता है।
बाटुमी में चला ‘माइंड गेम’, दो भारतीयों की भिड़ंत ने बनाया फाइनल ऐतिहासिक
लगभग तीन सप्ताह तक चले इस टूर्नामेंट के फाइनल में जब दो भारतीय दिग्गज आमने-सामने आए—एक ओर युवा ऊर्जा से भरी दिव्या और दूसरी ओर अनुभवी ग्रैंडमास्टर हंपी—तो मुकाबला और भी रोमांचक हो गया। पहले ही तय हो गया था कि ट्रॉफी भारत की झोली में ही जाएगी, लेकिन सवाल ये था कि किसके हिस्से?
🇮🇳 Divya Deshmukh defeats Humpy Koneru 🇮🇳 to win the 2025 FIDE Women's World Cup 🏆#FIDEWorldCup @DivyaDeshmukh05 pic.twitter.com/KzO2MlC0FC
— International Chess Federation (@FIDE_chess) July 28, 2025
26 जुलाई को खेले गए पहले फाइनल मैच में दिव्या ने दमदार शुरुआत की, लेकिन अंतिम समय में हुई एक चूक ने मैच को ड्रॉ में तब्दील कर दिया। अगले दिन का मुकाबला भी बराबरी पर छूटा, जिससे टाईब्रेक की नौबत आ गई।
टाईब्रेक में टूटी अनुभव की दीवार, दिव्या की चतुराई ने किया सब हैरान
टाईब्रेक मुकाबला 28 जुलाई को हुआ, जो कि रैपिड फॉर्मेट में खेला गया। इस फॉर्मेट में कोनेरू हंपी को ज्यादा अनुभवी और मजबूत माना जा रहा था, क्योंकि रैपिड गेम्स में उनका रिकॉर्ड प्रभावशाली रहा है।
लेकिन युवा दिव्या ने यहां सबको चौंका दिया। उन्होंने अपने चतुर चालों और रणनीति से हंपी को उलझा दिया। उनके ही गेम स्टाइल में उन्हें मात देते हुए दिव्या ने टाईब्रेक जीत लिया और इतिहास रच दिया। खास बात यह भी रही कि भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर को हराकर दिव्या खुद भारत की चौथी महिला ग्रैंडमास्टर बन गईं।
18 महीनों में तीसरी बड़ी उपलब्धि, दिव्या बनीं भारत की नई शतरंज क्वीन
दिव्या की यह जीत सिर्फ एक खिताब नहीं, बल्कि एक सतत सफलता की कहानी का हिस्सा है। पिछले डेढ़ साल में यह उनका तीसरा बड़ा अंतरराष्ट्रीय खिताब है। इससे पहले उन्होंने जूनियर चेस वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता और फिर चेस ओलंपियाड में भारतीय महिला टीम को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई।
बुडापेस्ट में हुए उस टूर्नामेंट में उन्होंने न केवल टीम गोल्ड जीता, बल्कि व्यक्तिगत कैटेगरी में भी स्वर्ण पदक अपने नाम किया। अब वर्ल्ड कप जीतने के बाद दिव्या देशमुख का नाम भारतीय शतरंज के स्वर्णिम इतिहास में अमिट हो गया है।
एक नई शुरुआत, एक नया सितारा
दिव्या की इस उपलब्धि ने भारतीय महिला शतरंज को नई दिशा दी है। जिस उम्र में खिलाड़ी आमतौर पर करियर की शुरुआत करते हैं, वहां दिव्या ने विश्व खिताब जीतकर खुद को लीजेंड्स की कतार में खड़ा कर दिया है। यह जीत केवल एक व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि भारत के शतरंज जगत के लिए एक नई सुबह है।














