सोमवार, 23 जून 2025 की सुबह भारतीय निवेशकों के लिए एक बड़ा झटका लेकर आई। शेयर बाजार की शुरुआत बेहद कमजोर रही और पहले 15 मिनट में ही बीएसई में लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप लगभग ₹448 लाख करोड़ से गिरकर ₹445 लाख करोड़ रह गया। यानी महज चंद मिनटों में निवेशकों की संपत्ति में ₹3 लाख करोड़ की भारी सेंध लग गई। इस गिरावट के पीछे चार प्रमुख वैश्विक और भू-राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं, जिनका असर भारतीय बाजार पर सीधे पड़ा।
इजरायल-ईरान संघर्ष में अमेरिका की बमबारी ने बिगाड़ी वैश्विक स्थिति
सबसे बड़ा कारण है मिडल ईस्ट में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव, जिसमें अब अमेरिका की भी सक्रिय भूमिका देखने को मिली है। सप्ताहांत में अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु स्थलों पर बमबारी की, जिससे पश्चिम एशिया में युद्ध की आशंका और गहरा गई है। यह भू-राजनीतिक अस्थिरता न केवल बाजार की धारणा को प्रभावित करती है बल्कि वैश्विक निवेशकों को भी सतर्क बना देती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान ने अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर पलटवार किया, तो इससे स्थिति और गंभीर हो सकती है और इसका सीधा असर तेल की आपूर्ति, कच्चे तेल की कीमत और भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
होर्मुज जलडमरूमध्य की संभावित बंदी: ऊर्जा आपूर्ति पर खतरा
दूसरा बड़ा कारण ईरान की वह चेतावनी है जिसमें उसने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की बात कही है। यह जलमार्ग दुनिया के सबसे व्यस्त तेल परिवहन मार्गों में से एक है, जहां से दुनिया की कुल तेल आपूर्ति का लगभग 20% प्रतिदिन गुजरता है। इसके बंद होने का मतलब है वैश्विक तेल आपूर्ति में भारी संकट, जो कि भारत जैसे आयातक देशों के लिए महंगाई, व्यापार घाटा और आर्थिक दबाव का कारण बन सकता है।
कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
होर्मुज संकट और मध्य पूर्व में युद्ध के खतरे के चलते ब्रेंट क्रूड की कीमतों में सोमवार सुबह 2% से ज्यादा की तेजी आई और यह 79 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया। अगर ये कीमतें 80 डॉलर के पार जाती हैं और लंबे समय तक बनी रहती हैं, तो भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा। सरकार का राजकोषीय संतुलन बिगड़ेगा, कंपनियों की लागत बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को महंगाई का सामना करना पड़ेगा।
रुपये में गिरावट और निवेशकों की घबराहट
सोमवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 17 पैसे टूटकर 86.72 पर पहुंच गया। यह गिरावट विदेशी निवेशकों की सतर्कता और डॉलर में मजबूती की वजह से आई है। रुपया कमजोर होने से भारत का आयात महंगा हो जाता है, जिससे मुद्रास्फीति और व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
बाजार में अनिश्चितता का माहौल बनते ही निवेशकों ने घबराहट में बिकवाली शुरू कर दी, जिससे शुरुआती 15 मिनटों में ही इतना बड़ा नुकसान हुआ।
क्या करें निवेशक?
इस समय विशेषज्ञों की सलाह है कि निवेशक घबराकर बिकवाली न करें, बल्कि स्थिति को समझें और लंबी अवधि के निवेश को प्राथमिकता दें। खासतौर पर तेल और गैस क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों पर फिलहाल दबाव रह सकता है, लेकिन ईरान की प्रतिक्रिया और अमेरिका का अगला कदम बाजार की दिशा तय करेंगे।
बाजार की चाल अब पूरी तरह वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाओं और तेल की कीमतों की दिशा पर निर्भर करेगी। ऐसे में सतर्क रहना, विविध निवेश बनाए रखना और तात्कालिक उतार-चढ़ाव में जल्दबाज़ी से बचना ही फिलहाल सबसे समझदारी भरा कदम होगा।