नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कर्नाटक में कथित हनी ट्रैप घटनाओं की जांच की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने टिप्पणी की, "सुप्रीम कोर्ट के पास निपटने के लिए बहुत काम है और उसे इस सारी राजनीतिक बकवास से कोई लेना-देना नहीं है।"
यह जनहित याचिका झारखंड निवासी बिनय कुमार सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने इस मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी, जैसे कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा कराने का अनुरोध किया था, जिसकी निगरानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाए या फिर किसी सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा कराई जाए।
सिंह की याचिका में कर्नाटक राज्य विधानमंडल में लगाए गए गंभीर आरोपों का हवाला दिया गया है, जिसमें कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना का दावा भी शामिल है कि केंद्रीय नेताओं सहित 48 राजनेताओं को हनीट्रैप में फंसाया गया है और उनके अश्लील वीडियो प्रसारित किए गए हैं।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सिंह की अधिकारिता पर सवाल उठाते हुए पूछा कि झारखंड का निवासी कर्नाटक की घटनाओं के बारे में क्यों चिंतित है। पीठ ने टिप्पणी की, "आप झारखंड के निवासी हैं। आप उस राज्य में क्या हो रहा है, इसके बारे में क्यों परेशान हो रहे हैं? वे इस मामले को संभालने में सक्षम हैं।"
जब सिंह के वकील ने दलील दी कि इस मामले में हनी ट्रैप के गंभीर आरोप शामिल हैं, तो पीठ ने जवाब दिया, "उन्हें हनी ट्रैप में क्यों फंसना चाहिए? अगर कोई हनी ट्रैप बिछाता है और आप उसमें फंस जाते हैं, तो आप अपने लिए मुसीबत को आमंत्रित कर रहे हैं।"
मंगलवार को केएन राजन्ना ने कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर को औपचारिक रूप से एक याचिका सौंपी, जिसमें उनके खिलाफ कथित हनी ट्रैप प्रयास के संबंध में कानूनी कार्रवाई का आग्रह किया गया।
परमेश्वर ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार संबंधित जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि इस मामले को राज्य स्तर पर अलग से निपटाया जाएगा।