जयपुर। तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुक कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत डेढ़ साल के लम्बे अन्तराल के बाद सियासी मैदान में तेजी से सक्रिय होते नजर आ रहे हैं। लम्बे समय से विधानसभा में अनुपस्थित चल रहे अशोक गहलोत ने विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई वहीं, दूसरी ओर उन्होंने आम जनता के बीच स्वयं को पेश करते हुए अपनी लोकप्रियता दर्शाई। अशोक गहलोत के अचानक से इस तरह सक्रिय होने को लेकर राजनीति के जानकारों का कहना है कि समभवत: अशोक गहलोत को संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी की जा रही है।
राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत विधानसभा चुनाव के करीब डेढ़ साल बाद पहली बार सियासी दौरे पर निकले। शुक्रवार और शनिवार को पूर्वी राजस्थान के अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान गहलोत ने न केवल अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाया, बल्कि लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता का उदाहरण भी पेश किया।
दिलचस्प यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने पहले सियासी दौरे की शुरुआत के लिए पूर्वी राजस्थान को चुना, जो पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का गढ़ माना जाता है। पायलट और गहलोत के बीच अदावत जगजाहिर है। दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। जयपुर के बस्सी, सिकंदरा, दौसा, महवा और भरतपुर में जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री का जगह-जगह रास्ते में हुए स्वागत में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की भीड़ उमड़ी, उससे गहलोत समर्थक खेमा भी खुश नजर आ रहा है।
सियासी चर्चाएं शुरू
राजस्थान में गहलोत को मिले समर्थन से कई तरह की सियासी चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि अशोक गहलोत हरियाणा, महाराष्ट्र जैसे चुनाव में पर्यवेक्षक रहे, लेकिन राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार उनका सियासी दौरा हुआ। जिसमें उन्होंने अलग-अलग स्थान पर कार्यकर्ताओं से संवाद किया। वहीं प्रदेश की भजनलाल सरकार और केंद्र की मोदी सरकार पर भी हमले बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजनीति के जानकार बताते हैं कि जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री ने एकदम से अपनी सक्रियता बढ़ाई है, उसे कहीं न कहीं कांग्रेस की सियासत में कुछ बड़ा होने के संकेत है।
पार्टी के जानकारों का ये भी कहना कि जिस तरह से पार्टी में गोविंद सिंह डोटासरा, टीकाराम जूली जैसे नए पावर सेंटर बन रहे हैं, इसी बीच गहलोत भी शक्ति प्रदर्शन करके अपने आलोचकों को जवाब दे रहे हैं कि राजस्थान की राजनीति में आज भी कोई उनका सानी नहीं है। कहीं न कहीं इन सियासी दौरे के जरिए गहलोत पार्टी हाईकमान को भी संदेश दे रहे हैं कि राजस्थान में तो आज भी वह कांग्रेस का सबसे लोकप्रिय चेहरा है।
डोटासरा का किया बचाव, स्पीकर पर उठाए सवाल
इधर बजट सत्र में पहली बार गुरुवार को विधानसभा पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का बचाव भी किया, जिस तरह से प्रदेश कांग्रेस में बदलाव की अटकलें चल रही हैं। उसके बाद डोटासरा के पक्ष में गहलोत का बयान कहीं न कहीं इस और इशारा करता है कि डोटासरा अभी भी उनके लिए उपयोगी हैं। इससे पहले प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी पीसीसी में बदलाव की अटकलों को खारिज कर चुके हैं।
कोई बड़ी जिम्मेदारी के संकेत तो नहीं
गहलोत को नजदीक से जानने वाले नेताओं का कहना है कि अशोक गहलोत अगर अचानक सक्रिय मोड पर आ जाएं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें संगठन में कोई बड़ी भूमिका तो नहीं मिल रही है। वह पिछले डेढ़ साल से ज्यादातर अपने घर में ही रहे हैं। एक दो बार जोधपुर गए हैं। वो भी केवल पारिवारिक कार्यक्रमों में शामिल होकर जयपुर लौट आए। इधर, कांग्रेस गलियारों में चर्चा है कि गहलोत पार्टी में सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा है और खासकर हिंदी भाषी राज्यों में भी उनकी लोकप्रियता काफी है। ऐसे में पार्टी हाईकमान उनकी इस लोकप्रियता का लाभ लेने के लिए कोई बड़ी जिम्मेदारी संगठन में दे सकते हैं।
मुरारी-खटाना ने बनाई दूरी
हालांकि दिलचस्प यह भी है कि गहलोत का बस्सी से लेकर भरतपुर तक जगह-जगह भव्य स्वागत हुआ, लेकिन दौसा से कांग्रेस सांसद मुरारी लाल मीणा और बांदीकुई से कांग्रेस विधायक रहे जीआर खटाना ने दूरी ही बनाए रखी। दोनों ही पायलट समर्थक माने जाते हैं। दौसा से उपचुनाव जीते कांग्रेस विधायक डीसी बैरवा भी पायलट समर्थक माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने अपने समर्थकों के साथ गहलोत का भव्य स्वागत किया।
पूर्व मंत्री ममता भूपेश ने भी सिकराय में पूर्व मुख्यमंत्री का भव्य स्वागत किया। वहीं महवा में पूर्व विधायक ओम प्रकाश हुडला, नदबई में जोगेंद्र अवाना और भरतपुर में पूर्व मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने स्वागत में कोई कमी नहीं छोड़ी। गहलोत समर्थकों का कहना है कि पूरे प्रदेश में वे सियासी दौरे पर रहेंगे, दो माह में उनके दौरे का रोडमैप तैयार किया गया है। दौरे की शुरुआत पूर्वी राजस्थान से की गई है।
गहलोत का कोई भी दौरा अचानक नहीं होता
अशोक गहलोत के दौरे को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अशोक गहलोत का कोई भी दौरा अचानक नहीं होता है। उसके पीछे कहीं न कहीं कोई सियासी संदेश जरूर होता है। आने वाले दिनों में इसका भी पता चल जाएगा कि गहलोत का यह दौरा क्या सियासी गुल खिलाएगा। गोधा का कहना है कि गहलोत डेढ़ साल के बाद फील्ड में निकले हैं। इसके सियासी मायने जरूर निकाल रहे हैं, जिस तरह से उन्होंने अपने पहले सियासी दौरे के लिए दौसा और भरतपुर को चुना है। उससे भी आने वाले दिनों में गहलोत और पायलट कैंप के बीच खींचतान और देखने को मिल सकती है।