नई दिल्ली। दिल्ली की साकेत कोर्ट ने शुक्रवार (25 अप्रैल, 2025) को पुलिस को दिल्ली के लेफ्टिनेंट जनरल वीके सक्सेना के खिलाफ मानहानि के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को प्रोबेशन बॉन्ड भरने और 1 लाख रुपये की मुआवजा राशि जमा करने की शर्त पर रिहा करने का निर्देश दिया।
यह आदेश इस सप्ताह के शुरू में अदालत द्वारा मेधा पाटकर के खिलाफ जारी गैर जमानती वारंट के बाद दिल्ली पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार किये जाने के कुछ ही घंटों बाद आया ।
दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार (22 अप्रैल, 2025) को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर द्वारा सक्सेना द्वारा दायर 23 साल पुराने मानहानि मामले में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 मई तक के लिए सजा पर रोक लगा दी है। इससे पहले 23 अप्रैल को साकेत कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने जुर्माने की एक लाख रुपए के जुर्माने की रकम जमा नहीं करने पर मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था।
एडिशनल सेशंस जज विशाल सिंह ने यह गैर जमानती वारंट जारी किया। 23 अप्रैल को सुनवाई के दौरान वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने कहा था कि न तो मेधा पाटकर ने जुर्माने की रकम जमा की और न ही कोर्ट में उपस्थित हुईं। इसपर कोर्ट ने मेधा पाटकर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया था। इससे पहले 22 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट ने सेशंस कोर्ट की ओर से एक लाख रुपए के जुर्माने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने मेधा पाटकर को इसके लिए सेशंस कोर्ट जाने को कहा था।
कोर्ट ने दी थी राहत
गौरतलब है कि 8 अप्रैल को सेशंस कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की ओर से दाखिल आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी करार दिए गए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को राहत देते हुए एक साल के लिए परिवीक्षा (किसी अपराधी की जेल जाने के बजाय निगरानी में रखना ताकि वह फिर से अपराध न करे) पर रहने का आदेश दिया था। इसका मतलब है कि मेधा पाटकर को मजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर से मिली तीन महीने की जेल की सजा की जगह एक साल के लिए परिवीक्षा के तहत रहना होगा। कोर्ट ने मेधा पाटकर को अपने अच्छे आचरण की अंडरटेकिंग की शर्त पर परिवीक्षा के रहने की अनुमति दी थी। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने 1 जुलाई, 2024 को मेधा पाटकर को सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में अधिकतम सजा दो साल की होती है, लेकिन मेधा पाटकर के स्वास्थ्य को देखते हुए पांच महीने की सजा दी जाती है।
यह है मामला
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर की थी। गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया थाय बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। मेधा पाटकर ने 2011 में अपने आप को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही थी। वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर किया था उस समय वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।