90 के दशक में बॉलीवुड का मतलब सिर्फ फिल्मों और स्टार्स से नहीं, बल्कि एक चमकते हुए युग से था। और उस युग का सबसे चमकदार सितारा थे गोविंदा। एक ऐसा नाम जिसे दर्शकों ने अभिनय, कॉमेडी और डांस के हर रंग में सर आंखों पर बिठाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक दौर ऐसा भी आया जब गोविंदा के पास एक-दो नहीं बल्कि 70 फिल्में थीं? और उन्होंने एक दिन में पांच-पांच फिल्मों की शूटिंग की थी? इस किस्से को जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
जब गोविंदा थे सबकी पहली पसंद
वर्ष 1986 हिन्दी सिमा का ऐसा स्वर्णिम वर्ष रहा जिसने हिन्दी सिनेमा को एक ऐसा अभिनेता दिया जिसने अपनी डांसिंग स्टाइल से हिन्दी सिनेमा को एक नई पहचान दी। यह वह दौर था जब मिथुन चक्रवर्ती की डिस्को स्टाइल दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रही थी। लेकिन निर्माता पहलाज निहलानी की झूठा इल्जाम से सिनेमाई क्षितिज पर चमकने वाले गोविन्दा ने अपने स्ट्रीट डांस से उन दर्शकों को अपना दीवाना बनाया जो दिन भर की मेहनत के बाद अपनी थकान दूर करने के लिए सिनेमाघर का सहारा लेते थे। गोविन्दा ने उन युवाओं को मनोरंजन का वो तोहफा दिया जो उन्हें अरसे से कोई दूसरा नहीं दे सका था।
चाचा की फिल्म से शुरू किया करियर
यह सही है कि 28 फरवरी 1986 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई झूठा इल्जाम गोविन्दा की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म रही, वहीं उनकी दूसरी प्रदर्शित फिल्म लव 86 भी कामयाब हुई थी। लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि हिन्दी फिल्मों में गोविन्दा को लाने का श्रेय उनके चाचा आनन्द को जाता है, जिन्होंने गोविन्दा को लेकर 1985 में तनबदन नामक फिल्म की घोषणा की थी। इस फिल्म में उनके साथ खुशबू नायिका के तौर पर नजर आई थीं। हालांकि यह फिल्म भी 1986 में प्रदर्शित हुई थी, लेकिन उससे पहले गोविन्दा की इल्जाम और लव 86 दर्शकों के सामने आ चुकी थीं। अगर आप अब भी इन दोनों फिल्मों की नामावली देखेंगे तो उसमें गोविन्दा का नाम इंट्रोड्यूस के तौर पर नहीं है। तनबदन बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर सकी थी। गोविन्दा ने सबसे पहले फिल्म लव 86 के लिए शूटिंग शुरू की थी।
शुरूआती सफलता के बाद गोविन्दा की कुछ और फिल्में लगातार सफल हुई जिससे उनका स्टारम बढ़ गया था। गोविंदा का स्टारडम इस कदर बढ़ चुका था कि निर्माता-निर्देशक लाइन लगाकर उन्हें साइन करना चाहते थे। ‘इल्जाम’ से करियर शुरू करने वाले इस एक्टर ने जब ‘राजा बाबू’, ‘कुली नंबर 1’ और ‘हीरो नंबर 1’ जैसी हिट फिल्में दीं, तो उनके पास फिल्मों की भरमार हो गई। अपने एक इंटरव्यू में गोविंदा ने खुलासा किया था कि एक समय पर उनके पास 70 फिल्में थीं। यह संख्या आज के लिहाज़ से भी चौंकाने वाली है।
जब उनसे पूछा गया कि क्या वाकई उनके पास 50-60 फिल्में हैं, तो उन्होंने बिना हिचक कहा, "जी हां, मेरे पास 70 फिल्में थीं बीच में।" उनका यह जवाब बताता है कि वह कितने बड़े सुपरस्टार थे और फिल्म इंडस्ट्री उन्हें लेकर कितनी दीवानी थी।
एक दिन में करते थे 5 फिल्मों की शूटिंग
इतनी फिल्मों के साथ कैसे निभाते थे डेट्स का तालमेल? गोविंदा ने बताया कि कुछ फिल्में अपने आप बंद हो गईं, तो कुछ छोड़नी पड़ीं क्योंकि समय नहीं मिल रहा था। लेकिन कई फिल्मों के शूट वह एक ही दिन में निपटाते थे। उन्होंने कहा, "ये सिचुएशन पर डिपेंड करता है। कभी दो कर लेता हूं, कभी तीन, कभी चार, तो कभी एक दिन में पांच फिल्में भी शूट करता हूं।"
आज के समय में जहां एक स्टार एक साल में एक या दो फिल्में करता है, वहीं गोविंदा अपने जमाने में एक ही दिन में 5 प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बन जाते थे।
गोविंदा की खासियत: हर रोल में जान फूंक देना
गोविंदा का शेड्यूल जितना बिजी था, उतना ही दमदार था उनका परफॉर्मेंस। उन्होंने कभी दर्शकों को यह महसूस नहीं होने दिया कि वह थक गए हैं या दोहराव कर रहे हैं। चाहे कॉमेडी हो या इमोशन, एक्शन हो या डांस—गोविंदा हर किरदार को पूरी शिद्दत से निभाते थे।
उनके करियर की सबसे चर्चित फिल्मों में शामिल हैं: ‘कुली नंबर 1’, ‘हीरो नंबर 1’, ‘राजा बाबू’, ‘साजन चले ससुराल’, ‘बड़े मियां छोटे मियां’, ‘जोड़ी नंबर 1’, ‘दूल्हे राजा’, ‘भागम भाग’ ‘पार्टनर’ शामिल हैं।
सिर्फ एक्टर नहीं, एक फिनोमेना थे गोविंदा
गोविंदा सिर्फ एक फिल्म स्टार नहीं, बल्कि एक ‘फिनोमेना’ थे—जो अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों में उतरते थे और अपने वर्कहॉलिक रवैये से फिल्ममेकर्स की पहली पसंद बनते थे। उनका टाइम मैनेजमेंट, ऊर्जा और अभिनय में लगातार नई छवियां रचते रहने की काबिलियत उन्हें 90 के दशक का सबसे चहेता सितारा बनाती है।
जब आज के दौर में एक सुपरस्टार के पास तीन-चार फिल्में होती हैं और वह भी कुछ सालों में पूरी होती हैं, तब गोविंदा जैसे अभिनेता का एक ही समय में 70 फिल्मों में काम करना, एक दिन में 5 फिल्मों की शूटिंग करना और फिर भी हिट पर हिट देना—यह किसी करिश्मे से कम नहीं। गोविंदा आज भले ही फिल्मों से थोड़ा दूर हों, लेकिन उनकी यह मेहनत और प्रतिभा उन्हें हिंदी सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर बना चुकी है।