भारत में हर दस वर्षों में होने वाली जनगणना न केवल आंकड़ों का संग्रहण है, बल्कि यह देश की सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय तस्वीर को गहराई से समझने का एक सशक्त और रणनीतिक साधन है। ऐसे में 2027 की प्रस्तावित जनगणना कई दृष्टिकोणों से ऐतिहासिक मानी जा रही है, क्योंकि यह पहली बार पूरी तरह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आयोजित की जाएगी और इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह होगा कि आज़ादी के बाद पहली बार जातिगत गणना को इसमें शामिल किया गया है।
यह 1931 के बाद का पहला अवसर होगा, जब देश की सभी जातियों से जुड़े विस्तृत और समेकित आंकड़े एकत्र किए जाएंगे। नई जनगणना में आधुनिक जीवनशैली, तकनीकी पहुंच और विकास की दिशा में हो रही प्रगति को आंकने के लिए कुछ बेहद जरूरी नए सवालों को शामिल किया गया है। ये सवाल जैसे कि—घर में इंटरनेट कनेक्शन की उपलब्धता, मोबाइल और स्मार्टफोन की संख्या, पीने के पानी का स्रोत, गैस कनेक्शन का प्रकार, परिवहन साधनों की उपलब्धता और परिवार में खाए जाने वाले अनाज का प्रकार—देश की सामाजिक स्थिति का अद्यतन चित्र प्रस्तुत करेंगे।
क्यों बेहद जरूरी हैं ये 6 नए सवाल?
1. क्या घर में इंटरनेट कनेक्शन है?
यह सवाल भारत की डिजिटल पहुंच को समझने में मदद करेगा। सरकार यह जानना चाहती है कि कितने घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, कितने उपकरण उससे जुड़े हैं और कितनी सक्रियता से इसका उपयोग हो रहा है। यह डेटा ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहल की प्रगति और ग्रामीण-शहरी डिजिटल खाई की स्थिति को रेखांकित करेगा।
2. घर में कितने मोबाइल और स्मार्टफोन हैं, और ये किसके पास हैं?
इस सवाल के जरिए मोबाइल प्रौद्योगिकी की पैठ, डिजिटल शिक्षा की पहुंच, वित्तीय समावेशन और तकनीकी सशक्तिकरण के स्तर का मूल्यांकन किया जाएगा। इससे यह समझा जा सकेगा कि तकनीकी संसाधनों का लाभ किस वर्ग तक पहुंच रहा है।
3. घर के भीतर पीने के पानी का मुख्य स्रोत क्या है?
जल सुरक्षा और स्वच्छता से संबंधित यह सवाल सरकार को यह जानने में मदद करेगा कि कौन-कौन से स्रोत—जैसे नल, हैंडपंप, कुआं, बोतलबंद पानी—आज भी घरों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। यह डेटा जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं की प्रभावशीलता को आंकने का आधार बनेगा।
4. गैस कनेक्शन किस प्रकार का है और किस ईंधन का उपयोग होता है?
यह सवाल रसोईघर में उपयोग होने वाले ईंधन—जैसे एलपीजी, पीएनजी, लकड़ी, कंडे या अन्य पारंपरिक ईंधनों—की स्थिति को स्पष्ट करेगा। यह जानकारी स्वच्छ ऊर्जा के इस्तेमाल और उज्ज्वला योजना की सफलता का संकेतक होगी।
5. परिवार के पास कौन-कौन से वाहन हैं?
यह प्रश्न जीवनशैली, आवागमन की सुविधा और आर्थिक क्षमता की झलक देता है। इससे यह समझा जा सकेगा कि किस स्तर के परिवारों के पास कौन-कौन से वाहन उपलब्ध हैं—साइकिल, बाइक, कार, जीप या अन्य।
6. परिवार में किस प्रकार का अनाज प्रयोग किया जाता है?
यह सवाल पोषण, खाद्य आदतों और कृषि उत्पादों के उपभोग का आकलन करेगा। सरकार इससे यह जान सकेगी कि लोग गेहूं, चावल, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी या अन्य अनाजों को किस हद तक प्राथमिकता दे रहे हैं। यह डेटा भविष्य की खाद्य नीतियों के निर्माण में उपयोगी सिद्ध होगा।
डिजिटल जनगणना 2027: तकनीकी नवाचार और सामाजिक आंकड़ों का अभूतपूर्व संगम
भारत की जनगणना प्रक्रिया अब एक नए डिजिटल युग में प्रवेश करने जा रही है। 2027 में होने वाली जनगणना पहली बार पूरी तरह पेपरलेस होगी, जो तकनीकी दक्षता, पारदर्शिता और डेटा एकत्रीकरण की गति को नया आयाम देगी। इसके लिए सरकार द्वारा एक विशेष मोबाइल एप्लिकेशन और ऑटो-कैल्कुलेशन पोर्टल विकसित किया गया है, जिसके माध्यम से नागरिक अपनी जानकारी स्वयं ऑनलाइन दर्ज कर सकेंगे।
प्रत्येक नागरिक को एक यूनिक आईडी नंबर प्रदान किया जाएगा, जिससे न केवल डेटा की सटीकता सुनिश्चित की जाएगी, बल्कि गोपनीयता की रक्षा भी की जाएगी। इसके साथ ही, जीपीएस तकनीक के माध्यम से आंकड़ों का भौगोलिक सत्यापन किया जाएगा। फील्ड सपोर्ट सिस्टम और डायग्नोस्टिक टूल्स की मदद से किसी भी तकनीकी समस्या का तुरंत समाधान किया जा सकेगा।
इतना ही नहीं, आजादी के बाद पहली बार जातिगत आंकड़े भी इस जनगणना में एकत्र किए जाएंगे, जो सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के लिए आधारशिला साबित हो सकते हैं।
नीतिगत फैसलों और परिसीमन आयोग के लिए महत्त्वपूर्ण होगा यह डेटा
जनगणना 2027 के आंकड़े केवल सांख्यिकीय संकलन भर नहीं होंगे, बल्कि वे सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया में सटीक दिशा देने वाले सूचकांक बनेंगे। वर्ष 2026 में गठित होने वाला परिसीमन आयोग इन्हीं आंकड़ों के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों के नए सीमांकन की प्रक्रिया शुरू करेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस परिसीमन से दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण नीतियों के चलते संसदीय प्रतिनिधित्व में संभावित कटौती को लेकर बहस तेज हो सकती है।
सरकारी अधिसूचना और समय-सीमा की स्पष्टता
पिछली जनगणना वर्ष 2011 में आयोजित की गई थी और इसके 16 वर्षों बाद, अब भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से 16वीं राष्ट्रीय जनगणना 2027 की अधिसूचना जारी की है, जिसमें जातिगत गणना को भी सम्मिलित किया गया है। अधिसूचना के अनुसार: लद्दाख जैसे बर्फीले क्षेत्रों में जनगणना 1 अक्टूबर 2026 की संदर्भ तिथि से शुरू होगी।
देश के अन्य सभी हिस्सों में जनगणना 1 मार्च 2027 को 00:00 बजे की स्थिति को संदर्भ मानकर की जाएगी। यह तारीखें यह सुनिश्चित करती हैं कि देश के हर कोने से डेटा एक समान और तुलनात्मक रूप से सटीक रूप में संकलित हो सके।
लगभग ₹13,000 करोड़ का अनुमानित खर्च, 34 लाख कर्मी होंगे तैनात
इस विशालतम जनगणना अभियान में देशभर से लगभग 34 लाख गणनाकर्ता व पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाएंगे, जिनमें से करीब 1.3 लाख कर्मी डिजिटल उपकरणों से लैस रहेंगे। अनुमान है कि इस प्रक्रिया पर केंद्र सरकार के ₹13,000 करोड़ से अधिक खर्च होंगे। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि इस बार की जनगणना में जातिगत गणना को विशेष रूप से शामिल किया जाएगा, जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा। इससे पहले 1881 से 1931 तक अंग्रेजी हुकूमत ने जाति आधारित गणनाएं करवाई थीं। आजादी के बाद से अब तक की सभी जनगणनाओं में जातिगत जानकारी को औपचारिक रूप से शामिल नहीं किया गया था।
संविधानिक संदर्भ और कानूनी वैधता
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि यह स्वतंत्र भारत की आठवीं और समग्र रूप से सोलहवीं जनगणना होगी। संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना को सातवीं अनुसूची में संघवर्ती सूची के 69वें विषय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जनगणना न केवल एक दशकीय गतिविधि है बल्कि यह समाज के प्रत्येक वर्ग से सटीक और विश्लेषणात्मक डेटा एकत्र करने का प्रमुख स्रोत भी है, जो सरकार और नीति निर्माताओं को वास्तविक ज़मीनी हालात समझने में सहायता करता है। 30 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में जातिगत जनगणना को शामिल करने का निर्णय लिया गया। जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या 121.019 करोड़ थी, जिसमें 62.372 करोड़ पुरुष (51.54%) और 58.646 करोड़ महिलाएं (48.46%) थीं।