शाहरुख खान और गौरी खान की प्रेम कहानी बॉलीवुड की सबसे चर्चित और प्रेरणादायक कहानियों में से एक मानी जाती है। यह न केवल एक फ़िल्मी सितारे की निजी ज़िंदगी की झलक देती है, बल्कि भारत जैसे विविधता वाले देश में धर्म, संस्कृति और प्रेम के बीच के संतुलन की मिसाल भी है। हाल ही में शाहरुख खान द्वारा एक पुराने इंटरव्यू में साझा किया गया एक मज़ाकिया वाकया फिर से चर्चा में आ गया है, जिसमें उन्होंने अपनी शादी के समय गौरी से हँसी में कहा था—“बुरका पहन लो, और अब से तुम्हारा नाम बदलना पड़ेगा… गौरी नाम से कैसे चलेगा?” हालांकि यह पूरी तरह मज़ाक था, लेकिन इसमें उनके मज़ाकिया स्वभाव और रिश्ते की गहराई को भी देखा जा सकता है।
शाहरुख-गौरी की प्रेम कहानी
शाहरुख खान और गौरी छिब्बर की मुलाकात 1984 में दिल्ली में हुई थी, जब वे दोनों कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। शाहरुख उस समय सिर्फ 18 साल के थे और गौरी 14 की। शाहरुख ने कई बार अपने इंटरव्यू में बताया है कि गौरी को पहली बार एक पार्टी में देखकर वे पूरी तरह आकर्षित हो गए थे।
उनका रिश्ता शुरू में छुपा हुआ था, खासकर इसलिए क्योंकि गौरी एक पंजाबी हिंदू परिवार से थीं और शाहरुख एक मुस्लिम परिवार से। यह धर्मों का अंतर उनके रिश्ते के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया था। हालांकि, दोनों ने एक-दूसरे से रिश्ता निभाने के लिए न केवल परिवार बल्कि समाज के कई दबावों का भी सामना किया।
शादी का सफर और मज़ाकिया किस्सा
शाहरुख खान और गौरी की शादी 25 अक्टूबर 1991 को हुई थी। शादी में पारंपरिक हिंदू रीति-रिवाजों का पालन किया गया, जिसे गौरी के परिवार ने चाहा था। वहीं शाहरुख ने कभी भी गौरी को अपने धर्म में बदलने या किसी मजबूरी में कोई परंपरा निभाने के लिए बाध्य नहीं किया।
हालांकि, शादी के कुछ सालों बाद एक इंटरव्यू में शाहरुख ने एक मज़ाकिया किस्सा साझा किया था, जो आज भी सोशल मीडिया पर वायरल होता रहता है। उन्होंने कहा था, “जब हमारी शादी हो रही थी, मैं गौरी से मज़ाक में बोला था—‘अब से बुरका पहनना होगा, गौरी नाम से कैसे चलेगा? ज़ीनत या मुमताज़ कुछ रख लो।’”
शाहरुख ने खुद इस बात को हँसी में बताया था कि यह केवल एक मज़ाक था ताकि वे शादी के उस गंभीर माहौल में थोड़ी हँसी ला सकें। उन्होंने आगे यह भी कहा था, “मैंने गौरी से कहा था कि अब से बाहर जाना बंद, सिर ढंकना और घर में रहना होगा।” यह सब कहकर शाहरुख खुद ही हँसने लगे थे, और यह जाहिर किया था कि वे कभी भी गौरी को उसकी पहचान से अलग नहीं करना चाहते थे।
धर्म नहीं, प्रेम था रिश्ता
गौरी और शाहरुख दोनों ने हमेशा अपने रिश्ते को धर्म से ऊपर रखा। गौरी ने शाहरुख के इस स्वभाव की सराहना की है कि उन्होंने कभी भी उन पर किसी प्रकार का धार्मिक या सांस्कृतिक दबाव नहीं डाला। उनके घर में आज भी दोनों धर्मों की परंपराएं निभाई जाती हैं।
शाहरुख ने एक बार कहा था, “हमने अपने बच्चों को दोनों धर्मों की शिक्षा दी है। हमारे घर में गीता भी है और कुरान भी। हमने कभी किसी एक पर जोर नहीं दिया।”
परिवार और बच्चों के बीच सामंजस्य
गौरी और शाहरुख के तीन बच्चे हैं—आर्यन, सुहाना और अबराम। वे सभी खुले माहौल में पले-बढ़े हैं, जहाँ न तो धर्म की पाबंदियाँ हैं और न ही कोई सांस्कृतिक ज़बरदस्ती।
शाहरुख ने कई बार कहा है कि उनके लिए सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है, और यही उन्होंने अपने परिवार में भी अपनाया है।
समाज की सोच से आगे बढ़ा रिश्ता
उनके रिश्ते की शुरुआत ऐसे समय में हुई थी, जब अंतर-धार्मिक विवाहों को सामाजिक स्वीकृति आसानी से नहीं मिलती थी। इसके बावजूद उन्होंने समाज के बने-बनाए खांचे तोड़कर अपने प्यार को मुकाम तक पहुँचाया।
शाहरुख ने खुद बताया था कि गौरी के माता-पिता शुरू में इस रिश्ते को लेकर सहज नहीं थे। उन्होंने कई सालों तक रिश्ता छुपा कर रखा, और अंत में परिवार की रज़ामंदी के बाद शादी की।
शाहरुख और गौरी की शादी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति, मज़हब और सामाजिक रूढ़ियों के पार जाकर रिश्ते को निभाने की मिसाल है। शाहरुख का वह मज़ाक जिसमें उन्होंने कहा कि 'गौरी नाम से कैसे चलेगा', उस रिश्ते की सहजता और मज़बूती को दर्शाता है जहाँ मज़हब कभी दीवार नहीं बना।
शाहरुख खान ने अपने जीवन में जिस संतुलन के साथ रिश्ते, धर्म और पेशे को संभाला है, वह आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है। उनके और गौरी के बीच का रिश्ता इस बात का उदाहरण है कि जब दो लोग एक-दूसरे की पहचान, स्वतंत्रता और विश्वास का सम्मान करते हैं, तब कोई भी बाधा रिश्ते को तोड़ नहीं सकती।