दिग्गज गीतकार और लेखक जावेद अख्तर हमेशा ही सुर्खियों में बने रहते हैं। एक संवेदनशील इंसान होने के नाते, जावेद हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। फिर चाहे वो मुद्दा राजनीतिक हो या बॉलीवुड से जुड़ा — वह चुप नहीं बैठते। हालांकि, उन्हें कई बार इसके लिए आलोचना और ट्रोलिंग का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन सच्चाई से मुंह न मोड़ना ही उनकी असल पहचान है।
हाल ही की घटनाओं पर बोले जावेद, दिल में उठा भावनाओं का तूफान
एनडीटीवी क्रिएटर्स मंच पर बोलते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि हाल ही में महिलाओं द्वारा अपने पतियों की हत्या के दो मामलों को जानने के बाद उनका मन असमंजस से भर गया। उन्होंने साझा किया कि उनके अंदर "मिक्स इमोशन्स" थे।
जावेद ने गंभीरता से बताया, 'एक मामला उत्तर प्रदेश के मेरठ का है, जहां एक व्यक्ति के शरीर के टुकड़े कर उसे ड्रम में भर दिया गया, और दूसरा मेघालय का है, जहां एक महिला ने अपने हनीमून के दौरान ही अपने पति की हत्या कर दी। ये घटनाएं हिला देने वाली हैं।'
'जब महिलाओं को जला दिया जाता था, तब कौन बोला?' — जावेद का गुस्सा फूट पड़ा
अपने दर्द को शब्दों में पिरोते हुए जावेद अख्तर ने कहा, 'जब महिलाओं को जिंदा जला दिया जाता था, उनके पति और ससुराल वाले उन्हें प्रताड़ित करते थे — तब यह समाज क्यों शांत रहता था? क्यों नहीं उठी तब आवाज़ें? कितना बेशर्म समाज है, जो आज अचानक सदमे में है।'
उन्होंने तंज कसते हुए कहा, 'आज दो महिलाओं पर हत्या का आरोप है और पूरा समाज गुस्से में है, जबकि सालों तक महिलाओं पर पुरुषों द्वारा होने वाले अत्याचारों को नज़रअंदाज़ किया गया। क्या वह दर्द समाज को दिखाई नहीं देता था?'
‘क्या उसकी मर्ज़ी के खिलाफ शादी की गई थी?’ — सोनम मामले पर उठे सवाल
जावेद अख्तर ने मेघालय के सोनम केस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'उस महिला ने जो किया वो बिल्कुल गलत था। लेकिन अगर उसने शादी के तुरंत बाद ऐसा कदम उठाया, तो हमें यह जरूर जानना चाहिए कि कहीं उस पर जबरदस्ती तो शादी नहीं थोपी गई थी?'
उन्होंने आगे कहा, 'क्या छोटे शहरों की लड़कियां अपने माता-पिता से कह सकती हैं कि वो शादी नहीं करेंगी? क्या उनकी मर्ज़ी पूछी जाती है? यह समाज कब सुनेगा उनकी चुप आवाज़ को?'
‘जब बहुएं प्रेशर कुकर में मरती थीं…’ — जावेद का कटाक्ष
जावेद अख्तर ने यह स्पष्ट किया कि वे किसी भी तरह के अपराध का बचाव नहीं कर रहे हैं। उन्होंने भावुक अंदाज में कहा, 'मैं हत्या को बिल्कुल भी सही नहीं ठहराता, लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब बहुएं "प्रेशर कुकर" में मर जाती थीं। अजीब बात है कि कुकर भी बहू को ही पहचानता था — सास और उसकी बेटी तो कभी नहीं मरीं।'