सर्वपितृ अमावस्या पर किया जाता हैं सभी पितरों का श्राद्ध, जानें किन्हें कराएं भोजन और इससे जुड़े नियम

By: Ankur Thu, 22 Sept 2022 08:16:34

सर्वपितृ अमावस्या पर किया जाता हैं सभी पितरों का श्राद्ध, जानें किन्हें कराएं भोजन और इससे जुड़े नियम

25 सितंबर 2022 को रविवार के दिन सर्वपितृ अमावस्या है जिसे मोक्षदायिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। यह पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है जिस दिन पितरों के निमित श्राद्ध किया जाता हैं। पितृपक्ष के बाद पितर देवलोक को चले जाते हैं। इस तिथि पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के श्राद्ध का विधान है। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं होती है तो वो भी इस दिन अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध कर सकते हैं। सर्वपितृ अमावस्या पर ब्राह्मण भोज करवाया जाता हैं, लेकिन इसी के साथ ही भोजन से जुड़े और कई अन्य नियम भी हैं। माना जाता है कि श्राद्ध कर्म यदि नियमों के साथ किए जाते हैं, तो उसका पूर्ण लाभ पितरों को प्राप्त होता है। नियमों का पालन किया जाए तो पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। आइये जानते हैं सर्वपितृ अमावस्या के इन नियमो के बारे में...

भूलकर भी न करें ये कार्य


- सर्वपितृ अमावस्या के दिन किसी के साथ बुरा व्यवहार न करें। अपने से बड़े लोगों का अपमान नहीं करें ऐसा व्यवहार अच्छा नहीं माना जाता है।
- सर्वपितृ अमावस्या के दिन भूलकर भी मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- इस दिन बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए। मान्यता के अनुसार ऐसा करना अशुभ माना जाता है।
- सर्वपितृ अमावस्या के दिन जो कोई भी व्यक्ति आपके घर दान-दक्षिणा लेने आए उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए।

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सर्वपितृ अमावस्या पर इन्हें परोसें भोजन

गाय : गौबलि अर्थात गाय को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। घर से पश्चिम दिशा में गाय को महुआ या पलाश के पत्तों पर गाय को भोजन कराया जाता है तथा गाय को 'गौभ्यो नम:' कहकर प्रणाम किया जाता है।
कुत्ता : श्वानबलि अर्थात कुत्त को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है।
कौवा : काकबलि अर्थात कौए के लिए छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है।
चींटी : पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते भोजन परोसा जाता। उनके बिल हों, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता है।
देवी देवता : देवबलि अर्थात श्रीविष्णु, अर्यमा, यम, चित्रगुप्त सहित देवतों को पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। बाद में इसे उठाकर घर से बाहर रख दिया जाता है।
ब्राह्मण भोज : इसके बाद ब्राह्मण भोज कराया जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है। ब्राह्मण नहीं हो तो संन्यासी या साधुजनों को भोजन कराएं।
भांजा : कहते हैं कि एक भांजे को भोजन कराना 100 ब्राह्मण के समान पुण्यदायी होता हैं। यदि भांजा या भांजी है तो उन्हें सबसे पहले भोजन कराएं।
जमाई : जमाई या बहनोई को भोजन कराना जरूरी है अन्यथा पितृ दु:ख होते हैं।
मछली : मछलियों को भी इस दिन अन्न का दाना डालना चाहिए। पितरों के निमित्त जो पिंडदान किया जाता है और उस पिंड को बाद में नदी में विसर्जित किया जाता है तो वह मछलियों और जलचर जंतुओं के लिए ही होता है।
पीपल : पीपल को जल अर्पित करना और उसकी पूजा करना भी जरूरी है।

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श्राद्ध के भोजन के ये हैं नियम

- सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म के लिए आप जिस ब्राह्मण को भोजन कराने जा रहे हों तो उनको एक पहले ही बता दें ताकि भोज प्राप्त करने वाले ब्राह्मण संध्या कर लें। ब्राह्मण हमेशा श्रोत्रिय होने चाहिए और हर रोज गायत्री मंत्र का जाप करने वाला होना चाहिए।
- सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर श्राद्ध कर्म के दौरान ब्राह्मण और भोज कराने वाले को मौन रूप से भोजन करना चाहिए। अगर कुछ आवश्यक हो तो इशारों में ही बता देना चाहिए। भोज के दौरान ब्राह्मण का बोलना या बुलवाना सही नहीं माना जाता है, इससे पितरों को भोजन नहीं पहुंचता है इसलिए इशारों में जानकारी दे दें।
- श्राद्ध के भोजन की ना तो प्रशंसा करनी चाहिए और ना ही बुराई क्योंकि यह भोज सीधा पितरों को जाता है। भोजन जैसा बना हो, उसको प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेना चाहिए। अगर चीनी या नमक आदि चीज कम है तो इशारों में बता दें लेकिन भोजन में कमी ना निकालें।
- सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर ब्राह्मण भोज के दौरान हमेशा ध्यान रखें कि ब्राह्मण के आगे भोजन लेकर आते-जाते रहें। यह ना पूछें कि आपको और क्या चाहिए या फिर किसी चीज की क्या कमी है। ऐसा करने से भोजन के दौरान टोक लगती है, जो पितरों को अच्छा नहीं लगता।
- सर्वपितृ अमावस्या तिथि पर जिस ब्राह्मण को भोज के लिए आमंत्रित कर रहे हैं तो ध्यान रखना चाहिए कि ब्राह्मण को पुर्नभोजन या आपके घर के बाद किसी अन्य के घर पर श्राद्ध ना करें। एक से अधिक घरों में भोजन करना सही नहीं माना जाता।
- पितृ अमावस्या पर अगर श्राद्ध कर्म कर रहे हैं तो उस दिन या फिर भोजन से पहले ही दान कर दें, किसी अन्य ब्राह्मण को दान दे दें। श्राद्ध भोज वाले दिन दान ब्राह्मण को दान न करें।

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