अगर देश में मुसलमान नहीं रहेंगे, तो ये हिंदुत्व नहीं होगा : मोहन भागवत

By: Priyanka Maheshwari Tue, 18 Sept 2018 10:54:31

अगर देश में मुसलमान नहीं रहेंगे, तो ये हिंदुत्व नहीं होगा : मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मंगलवार को विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय ‘भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण, व्याख्यानमाला के दूसरे दिन उन लोगों को करारा जवाब दिया है, जो आरएसएस को केवल हिंदू धर्म का संगठन बताकर उसकी आलोचना करते हैं। उन्होंने कहा, हिंदू राष्ट्र में जब यह कहा जाने लगेगा कि यहां मुसलमान नहीं चाहिए, केवल वेद ही चलेंगे तो यह हिंदुत्व नहीं रहेगा। हिंदुत्व का मतलब जोड़ना है, सबको साथ लेकर चलना है। हमारी संकल्पना ही यही है कि हम अपने मन में सबके कल्याण की भावना रखते हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और हमारा सियासी दख़लअंदाज़ी में कोई विश्वास नहीं है। नागपुर से किसी को कोई फ़ोन नहीं जाता। लेकिन राष्ट्रनीति से जुड़े मसलों पर हम ज़रूर पूरी मज़बूती से अपनी बात रखते हैं।'

कई राजनीतिक दलों द्वारा यह कहा जाना कि आरएसएस देश के संविधान में विश्वास नहीं रखता, वह उसे नहीं मानता, इस बाबत मोहन भागवत ने दो टूक शब्दों में कहा कि यह पूरी तरह से गलत है। अपना संविधान है, उसे अपने लोगों ने बनाया है। भागवत ने लोगों को संविधान की प्रस्तावना पढ़कर सुनाई। हालांकि उन्होंने इसे अंग्रेजी में पढ़ा। सरसंघचालक ने कहा, संविधान में लिखी एक-एक बात का आरएसएस सम्मान करता है और दृढ़ता से पालन करता है। संविधान के साथ सब बंधे हैं, इसके अपमान का तो सवाल ही नहीं उठता। कोई एक उदाहरण ऐसा बता दें, जिससे यह साबित होता हो कि आरएसएस ने कभी संविधान का अपमान किया हो।

भागवत ने स्पष्ट किया कि अगर ये कहें कि इस देश में मुसलमान नहीं रहेंगे, तो ये हिंदुत्व नहीं होगा। उन्‍होंने कहा, 'हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्‍ट्र है। हिंदू राष्‍ट्र है इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्‍कुल नहीं होता। जिस दिन ये कहा जाएगा कि यहां मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन वो हिंदुत्‍व नहीं रहेगा।' उन्‍होंने कहा, 'हिंदुत्व संघ का विचार है, संघ ने नही खोजा, देश में चलता आया विचार है। हिंदुत्व मूल्य समुच्चय का नाम है। विविधता में एकता। भारत एक स्वभाव का नाम है। हमारे लिए हिंदू आग्रह का विषय है। जो भारत, इंडिक, आर्य कहते हैं उनसे हमारा विरोध नहीं है। धर्म शब्द भारत की देन है।'

सरसंघचालक ने कहा, सामर्थ्य होना अच्छी बात है। प्रत्येक भारतीय की कामना है कि हमारा देश सामर्थ्य सम्पन्न बने। यहां ध्यान देना जरूरी है कि सामर्थ्य होने का मतलब दूसरों को दबाना नहीं है। हालांकि भागवत ने साथ ही यह भी कहा, आज के समय में बिना सामर्थ्य के दुनिया सुनती भी नहीं है। संघ चाहता है कि भारत सबका नेतृत्व करे, लेकिन इस भावना के पीछे अहंकार नहीं है। अगर हम सामर्थ्य संपन्न बनते हैं तो दूसरे देशों को भी आगे ले जाएंगे। तरक्की कभी भी एक सोच या अवधारणा पर नहीं चलती। उन्होंने जापान की एक पुस्तक ‘द इन्क्रेडीबल जापान’ का जिक्र किया। इसके अंतिम पन्ने पर नौ निष्कर्ष लिखे थे।खास बात है कि पहले पांच निष्कर्षों में तो अर्थव्यवस्था से जुड़ी किसी बात का जिक्र तक नहीं था। पहले नंबर पर लिखा था, अनुशासित विकास हो, दूसरा, अकेले हित का विचार कभी मत लाओ, तीसरा अपने देश के लिए कोई भी साहस अपनाओ, चौथा त्याग करने के लिए सदैव तैयार रहो और पांचवां निष्कर्ष था कि काम उत्कृष्ट हो, यह चिंता होनी चाहिये।

अगर आगे बढ़ना है तो आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक सामर्थ्य होना जरूरी है। सबको मित्र बनाकर आगे बढ़ो। इस बात को आगे बढ़ाते हुए भागवत ने कहा, हमारा विजन डॉक्यूमेंट यह है कि हम पिछड़े देशों को बराबर लाएं। हमारा मकसद किसी को दबाने का नहीं है। ये सदैव ध्यान रखें कि डंडे से काम नहीं चलेगा। अच्छे कार्यों से ही सम्मान पैदा होता है। हालांकि आजकल कोई अच्छा काम करता है तो उस पर भी लोग शंका करने लगते हैं कि वे अच्छा काम क्यों कर रहे हैं, इनके पीछे कोई स्वार्थ आदि तो नहीं है। खैर, वे सोचते रहेंगे, हमें अपना काम करना है। हम यह भी नहीं चाहते कि वे लोग खत्म हो जाएं। बस इतना चाहते हैं कि उन लोगों का यह जो टेढ़ापन है, वह चला जाए।

संघ प्रमुख ने कहा, 'हिंदू धर्म हिंदुओं का नहीं है वो मानव मात्र के लिए है। संपूर्ण विश्व के लिए है। स्टेट नेशन से हम नहीं जाते। कोड बदलता है, बदलना ही चाहिए। वैदिक देवी देवता आज नहीं हैं। हिंदू विचारधारा खानेपीने के व्यवहार में जकड़ने वाली नहीं है। भारत से निकले सभी संप्रदायों का सामूहिक बोध हिंदुत्व है। संत महात्मा इन्हीं बातें का प्रचार करते हैं, कनवर्जन नहीं करते। देश भक्ति इसकी दूसरी पहचान है। आक्रामकों के हमले वक्त भी इस धर्म का आचरण किया गया। दुष्टों के भी भले की ही कामना की गई अलग-अलग होने के बावजूद भारत माता की संतान हैं। भारत में रहने वाले सभी एक पहचान के लोग हैं। हम उसे हिंदू पहचान कहते हैं। कुछ नहीं कहते। हमें स्वीकार है। कुछ लोग भूल गए हैं। ये सब हमारे लोग अपने हैं। जो जानते हैं उनका संगठन हम खड़ा करेंगे। लेकिन इनके खिलाफ करने की नहीं। इन्हें भी संगठन में लेंगे, अस्पृश्यता का नाश हो जाए। देशभक्ति, पूर्वज गौरव और संस्कृति ही हिंदुत्व है। यह सबके अंदर है। विचार करके देखें। संविधान हमारे अपने लोगों ने तैयार किया है। संविधान के अनुशासन का पालन करना सबका कर्तव्य है। संविधान में बंधुत्व की बात है। संघ का यही विचार है बंधुत्‍व, इसीलिए हम कहते हैं हिंदू राष्ट्र है।'

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