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खैरथल-तिजारा का नाम बदलने पर बवाल: भर्तृहरि नगर और भिवाड़ी मुख्यालय के पीछे सियासी चाल या आर्थिक स्वार्थ?

भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर करने और जिला मुख्यालय को भिवाड़ी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव न केवल विपक्ष को खटक गया है, बल्कि स्थानीय जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच भी आक्रोश का कारण बन गया है।

Posts by : Rajesh Bhagtani | Updated on: Fri, 08 Aug 2025 7:49:39

खैरथल-तिजारा का नाम बदलने पर बवाल: भर्तृहरि नगर और भिवाड़ी मुख्यालय के पीछे सियासी चाल या आर्थिक स्वार्थ?

राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर नाम परिवर्तन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर करने और जिला मुख्यालय को भिवाड़ी स्थानांतरित करने का प्रस्ताव न केवल विपक्ष को खटक गया है, बल्कि स्थानीय जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच भी आक्रोश का कारण बन गया है। मुख्यमंत्री द्वारा राजस्व विभाग के इस प्रस्ताव को स्वीकृति देने के बाद यह मामला अब कैबिनेट और केंद्रीय गृह मंत्रालय के दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है।

क्या है विवाद का मूल कारण?


विवाद की जड़ में 2023 की उस अधिसूचना को माना जा रहा है जिसमें गहलोत सरकार ने खैरथल-तिजारा को नया जिला घोषित किया था। उस समय भिवाड़ी को जिला मुख्यालय बनाए जाने की मांग सामने आई थी, जिसे भजनलाल सरकार ने अब गंभीरता से लिया है। सरकार का दावा है कि भिवाड़ी, जो पहले से एक प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र है, को मुख्यालय बनाए जाने से प्रशासनिक कार्यों में तेजी आएगी और क्षेत्र में औद्योगिक विकास को नई गति मिलेगी। वहीं भर्तृहरि नगर नाम रखने से इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को बल मिलेगा और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

राजनीतिक विरोध और चेतावनी


किशनगढ़बास से कांग्रेस विधायक दीपचंद खैरिया ने सरकार को चेताते हुए कहा है कि अगर जिला मुख्यालय को भिवाड़ी में स्थानांतरित किया गया, तो गांवों के लोगों को प्रशासनिक सेवाओं तक पहुंचने में भारी कठिनाई होगी। उन्होंने इसे ग्रामीण इलाकों के साथ अन्याय बताया और यहां तक कह दिया कि यदि सरकार ने प्रस्ताव वापस नहीं लिया, तो वे सरकार के प्रतिनिधियों को गांवों में घुसने नहीं देंगे। खैरिया ने आरोप लगाया कि यह पूरा निर्णय केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के दबाव में लिया गया है और यह राजनीतिक लाभ की मंशा से प्रेरित है।

स्थानीय असहमति और जन आंदोलन की तैयारी


स्थानीय नागरिकों ने ‘जिला बचाओ संघर्ष समिति’ का गठन कर विरोध को संगठित रूप देना शुरू कर दिया है। इस समिति द्वारा आयोजित आम सभा में वक्ताओं ने सरकार के निर्णय को खैरथल-तिजारा की ऐतिहासिक पहचान को खत्म करने वाला और ग्रामीण विकास की अनदेखी करने वाला करार दिया। लोगों ने चेतावनी दी कि अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो वे सड़कों पर उतरकर व्यापक आंदोलन छेड़ देंगे।

क्या है भर्तृहरि नाम से जुड़ी आपत्ति?

भर्तृहरि तीर्थ स्थल वास्तव में अलवर जिले में स्थित है, और खैरथल-तिजारा से उसका कोई सीधा ऐतिहासिक या सांस्कृतिक संबंध नहीं है। इसी वजह से स्थानीय लोगों का सवाल है कि अगर सरकार को भर्तृहरि के नाम से इतना लगाव है, तो अलवर जिले का नाम क्यों नहीं बदला गया? इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों जैसे मुंडावर और खैरथल की प्रशासनिक पहुंच भिवाड़ी से जुड़ने पर और अधिक कठिन हो जाएगी, जिससे आम जनता को काफी परेशानी होगी।

विकास या भूमि व्यापार का दबाव?

विपक्ष का यह भी आरोप है कि भिवाड़ी को मुख्यालय बनाने के पीछे रियल एस्टेट कारोबारियों का हित छिपा है। भिवाड़ी की ज़मीनों की कीमतें पहले से ही ऊंची हैं और मुख्यालय बनने की स्थिति में उनमें और उछाल आ सकता है। इससे खास वर्गों को फायदा मिलेगा, जबकि ग्रामीण जनता को इसके बदले में प्रशासनिक असुविधा झेलनी पड़ेगी। इस कदम को आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी की रणनीतिक चाल भी बताया जा रहा है, जिसका मकसद कुछ नए राजनीतिक समीकरण तैयार करना हो सकता है।

क्या तिजारा विधायक का समर्थन भी खतरे में है?

भाजपा के ही तिजारा विधायक बाबा बालकनाथ, जो इस प्रस्ताव के समर्थक माने जा रहे हैं, अब अपने ही क्षेत्र में आलोचना का सामना कर रहे हैं। ग्रामीणों में यह भावना गहराने लगी है कि उनकी समस्याओं और सुविधाओं की कीमत पर शहरी विस्तार और राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दी जा रही है।

यह प्रस्ताव अगर कैबिनेट और गृह मंत्रालय से पारित होता है, तो यह राजस्थान का पहला जिला बन जाएगा जिसका नाम और मुख्यालय दोनों एक साथ बदले जाएंगे। लेकिन यह बदलाव प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक साहसिक कदम माना जाएगा या फिर यह केवल राजनीतिक समीकरणों और ज़मीनी सौदों की बिसात का हिस्सा, यह सवाल अब जनता के बीच गर्मी पकड़ चुका है। ग्रामीणों और विरोधियों के लिए यह केवल एक नाम नहीं, बल्कि पहचान, पहुंच और अधिकार का सवाल बन गया है।

भविष्य में यह आंदोलन किस दिशा में जाएगा और क्या सरकार अपने निर्णय पर कायम रहेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल इतना तय है कि खैरथल-तिजारा का नाम बदलना केवल भाषाई या सांस्कृतिक बदलाव नहीं, बल्कि राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा मोड़ बन चुका है।

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