महाकुंभ 2025: अघोरी बनने की 3 खतरनाक परीक्षा, मौत से सामना और जीवन की साधना
By: Saloni Jasoria Fri, 17 Jan 2025 10:04:47
अघोरी साधु अपनी अनूठी साधना और शिव भक्ति के लिए जाने जाते हैं। नागा साधुओं की तरह अघोरी भी महाकुंभ के प्रमुख आकर्षणों में से एक होते हैं। हालांकि, इनके दल छोटे होते हैं और अधिकांश अघोरी अकेले जीवन व्यतीत करते हैं। अघोरी साधु भगवान शिव को अघोर पंथ का प्रणेता मानते हैं और तंत्र साधना के माध्यम से अनेक सिद्धियां प्राप्त करते हैं। 'अघोर' का अर्थ है जो सरल और सौम्य है, और यही इस पंथ का मूल संदेश है। अघोर पंथ में सिखाया जाता है कि सभी के प्रति समान भाव रखना चाहिए।
अघोरी बनने की कठिन प्रक्रिया
पहली परीक्षा: हिरित दीक्षा
अघोरी बनने का पहला चरण एक योग्य गुरु की तलाश है। गुरु मिलने के बाद शिष्य को पूरी तरह से गुरु के प्रति समर्पित होना पड़ता है। गुरु शिष्य को बीज मंत्र प्रदान करते हैं, जिसे साधना करना अनिवार्य होता है। इस प्रक्रिया को हिरित दीक्षा कहा जाता है। इस दीक्षा में सफलता प्राप्त करने पर ही शिष्य को अगले चरण में प्रवेश मिलता है।
दूसरी परीक्षा: शिरित दीक्षा
हिरित दीक्षा के बाद शिष्य को शिरित दीक्षा दी जाती है। इस चरण में गुरु शिष्य को काले धागे पहनाते हैं और जल का आचमन कराकर विशेष नियमों का पालन करने की शपथ दिलाते हैं। इन नियमों का पालन अनिवार्य होता है। यदि शिष्य इसमें सफल होता है, तो उसे अगले चरण में जाने की अनुमति मिलती है।
तीसरी परीक्षा: रंभत दीक्षा
तीसरा और सबसे कठिन चरण रंभत दीक्षा है। इस दीक्षा में शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंपना पड़ता है। अगर गुरु शिष्य से प्राण भी मांग लें, तो उसे तैयार रहना होता है। इस चरण में शिष्य की कई कठिन परीक्षाएं होती हैं। रंभत दीक्षा के बाद शिष्य को अघोरपंथ के गहरे रहस्यों और सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है।
श्मशान की साधना और तंत्र क्रियाएं
अघोरी साधु श्मशान में साधना करते हैं। वे शव पर बैठकर या खड़े होकर तंत्र क्रियाएं करते हैं और शव को भोग लगाते हैं। श्मशान में साधना करना अघोरी पंथ का अनिवार्य हिस्सा है। कामाख्या पीठ, त्र्यम्बकेश्वर, और उज्जैन के चक्रतीर्थ जैसे स्थान अघोरी साधना के प्रमुख केंद्र हैं। इन साधनाओं से उन्हें विभिन्न सिद्धियां प्राप्त होती हैं, जो लोक कल्याण के लिए उपयोग की जाती हैं।
अघोरी पंथ का उद्देश्य
अघोरी साधु तांत्रिक साधनाओं के बावजूद समानता और सरलता का संदेश देते हैं। वे सच्चे अघोरी तभी कहलाते हैं, जब वे अपने-पराए का भाव भुलाकर सभी को एक समान देखें। उनकी कठिन साधना उन्हें निर्मल और परोपकारी बनाने के लिए होती है, न कि कठोर। महाकुंभ में उनकी उपस्थिति इस पंथ की गहराई और रहस्य को उजागर करती है।
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