चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार डीएमके से निष्कासित नेता जाफर सादिक को सशर्त ज़मानत प्रदान की है। यह मामला एक बड़े ड्रग तस्करी रैकेट से जुड़ा हुआ है, जिसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की जा रही है।
न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की पीठ ने जाफर सादिक के साथ उनके भाई मोहम्मद सलीम को भी ज़मानत दी। अदालत ने कहा कि दोनों की आगे की हिरासत संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगी।
जाफर सादिक को ईडी ने 26 जून 2024 को तिहाड़ जेल से गिरफ़्तार किया था, जहाँ वह मार्च में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) द्वारा दर्ज मामले में न्यायिक हिरासत में थे। एनसीबी ने सादिक पर 3,500 किलोग्राम प्स्यूडोएफेड्रिन की तस्करी में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनुमानित कीमत 2,000 करोड़ रुपये से अधिक बताई गई है।
हाईकोर्ट ने ज़मानत देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि ईडी की जांच पूरी हो चुकी है, अवैध तरीकों से अर्जित संपत्तियां ज़ब्त की जा चुकी हैं और अभियोग पत्र दाखिल कर दिया गया है। अदालत ने टिप्पणी की कि ट्रायल में अभी काफी समय लग सकता है और लम्बी अवधि की हिरासत संविधान की भावना के विपरीत है।
अदालत ने ज़मानत के लिए कड़ी शर्तें तय की हैं—दोनों आरोपियों को ₹5 लाख के मुचलके के साथ दो ज़मानतदार पेश करने होंगे, अपने पासपोर्ट सरेंडर करने होंगे और ट्रायल कोर्ट के समक्ष नियमित हाज़िरी देनी होगी। इसके अलावा, वे किसी गवाह से संपर्क नहीं कर सकते, न ही सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं और न ही बिना पूर्व सूचना मोबाइल नंबर बदल सकते हैं।
जज ने यह भी उल्लेख किया कि मामले में कुल 20 आरोपी हैं और अभियोजन पक्ष ने 19 गवाहों की सूची दी है। अदालत ने यह भी कहा कि ईडी के अनुसार जिन अपराधों की बात की जा रही है, वे वर्ष 2015 के हैं, जबकि याचिकाकर्ता पिछले कई महीनों से हिरासत में हैं और ट्रायल जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के 'केए नजीब केस' का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जब संविधान के अनुच्छेद 21 का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा हो, तो संवैधानिक अदालतें ज़मानत की सख्त शर्तों में भी राहत दे सकती हैं।