बेंगलुरु। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) द्वारा वैकल्पिक स्थलों के आवंटन में कथित अनियमितताओं की जांच जारी रखने की अनुमति दे दी है। हालांकि, न्यायालय ने एकल पीठ के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें पूर्व एमयूडीए आयुक्त डी बी नटेश को जारी ईडी के समन को रद्द कर दिया गया था।
ईडी ने सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती दी
ईडी ने 27 जनवरी, 2025 को सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसमें 28 अक्टूबर से 29 अक्टूबर, 2024 के बीच नटेश के आवास पर की गई तलाशी और जब्ती को रद्द कर दिया गया था। ईडी ने तर्क दिया कि लोकायुक्त पुलिस एजेंसी द्वारा उपलब्ध कराए गए महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्यों पर विचार करने में विफल रही।
मुख्य न्यायाधीश एन वी अंजारिया और न्यायमूर्ति के वी अरविंद की खंडपीठ ने कहा कि एकल पीठ के फैसले से पूरी जांच बाधित नहीं होनी चाहिए। अदालत ने अपने अंतरिम आदेश में कहा, "धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत सभी जांचों को कानून के अनुसार आगे बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए।"
लोकायुक्त रिपोर्ट के खिलाफ ईडी की विरोध याचिका
ईडी कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उनकी पत्नी बी एम पार्वती और उनके साले सहित अन्य के खिलाफ दर्ज प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की भी जांच कर रहा है। मंगलवार को एजेंसी ने लोकायुक्त पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ विरोध याचिका दायर की, जिसमें मुख्यमंत्री और उनके परिवार को किसी भी गलत काम से मुक्त कर दिया गया था।
ईडी का दावा है कि अनियमितताओं के सबूत - जैसे कि मैसूर के केसारे गांव में पार्वती के स्वामित्व वाली तीन एकड़ और 16 गुंटा भूमि को गैर-अधिसूचित करना और परिवर्तित करना, और उसके बाद उन्हें वैकल्पिक साइटों का आवंटन करना - लोकायुक्त पुलिस की रिपोर्ट में नहीं माना गया। एजेंसी ने पूर्व और वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के लिए विशेष सत्र न्यायालय से क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने का आग्रह किया है।
कानूनी और राजनीतिक निहितार्थ
सिद्धारमैया और उनकी पत्नी को मामले में नामित पांच व्यक्तियों में क्रमशः आरोपी नंबर 1 और 2 के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। लोकायुक्त पुलिस ने हाल ही में 'बी' रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं होने का संकेत दिया गया था। हालांकि, शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा ने इस निष्कर्ष के खिलाफ विरोध याचिका दायर की। विशेष अदालत ने मामले में 3 अप्रैल को आदेश देने की तिथि तय की है।
उच्च न्यायालय द्वारा ईडी को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दिए जाने से, इस मामले का मुख्यमंत्री और उनके प्रशासन पर महत्वपूर्ण कानूनी और राजनीतिक प्रभाव पड़ सकता है।
उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि एकल पीठ के फैसले से ईडी की जांच में बाधा नहीं आनी चाहिए। इसने यह भी फैसला सुनाया कि एजेंसी नटेश के आवास पर तलाशी और जब्ती के दौरान प्राप्त सभी दस्तावेजों और सामग्रियों का इस्तेमाल चल रही जांच के लिए कर सकती है। न्यायालय ने आगे कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 17(1)(एफ) के तहत नटेश के बयान को वापस लिया जा सकता है या नहीं, यह मुद्दा अपील में विचार के लिए खुला है।
ईडी ने यह भी दलील दी है कि एकल पीठ के आदेश का इस्तेमाल अन्य आरोपी पक्ष जांच रोकने के लिए कर रहे हैं, जिसके कारण कम से कम सात मामलों में स्थगन दिया गया है। हालांकि, खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि ईडी कानून के अनुसार अपनी जांच जारी रखने का हकदार है।