मेरठ में हुए सनसनीखेज सौरभ राजपूत मर्डर केस में एक नया और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। आरोपी पत्नी मुस्कान, जो इस हत्याकांड में अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर पति की हत्या के आरोप में जेल में बंद है, गर्भवती पाई गई है। इसकी पुष्टि खुद मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉक्टर अशोक कटारिया ने की है। डॉ. कटारिया ने बताया कि जेल प्रशासन से पत्र मिलने के बाद मेडिकल टीम ने मुस्कान का प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया, जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। अब यह सवाल उठने लगा है कि मुस्कान की जेल में पैदा होने वाली संतान को भारतीय कानून के तहत क्या अधिकार मिलेंगे? कुछ ही समय पहले, मुस्कान ने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर पति सौरभ की निर्मम हत्या की थी। दोनों ने सौरभ के शव के टुकड़े कर नीले ड्रम में भरकर सीमेंट में दबा दिया था। यह खौफनाक वारदात मीडिया और समाज में काफी चर्चा में रही थी। अब मुस्कान की गर्भावस्था ने इस केस को और भी जटिल बना दिया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि जेल में जन्म लेने वाले इस बच्चे के लिए कानून क्या कहता है। भारतीय दंड प्रणाली और मानवाधिकार कानूनों के अंतर्गत ऐसे बच्चों को कौन-कौन से अधिकार दिए जाते हैं – यह जानना अब बेहद जरूरी हो गया है।
ये हैं नियम
भारत की जेलों में कई महिलाएं ऐसी होती हैं जो या तो गर्भवती होती हैं या फिर छोटे बच्चों के साथ सजा काट रही होती हैं। ऐसे मामलों में भारतीय कानून के तहत कुछ विशेष नियम लागू होते हैं ताकि बच्चों को कोई परेशानी न हो और उन्हें उचित देखभाल मिल सके। नियमों के मुताबिक, यदि कोई महिला कैदी गर्भवती है, तो बच्चे के जन्म के बाद मां और नवजात को एक महीने तक अलग सेल में रखा जाता है। इसका उद्देश्य बच्चे को संक्रमण से बचाना और उसे बेहतर देखभाल देना होता है। वहीं, यदि महिला कैदी के साथ पहले से कोई छोटा बच्चा है, तो उसे छह साल की उम्र तक मां के साथ जेल में रहने की अनुमति होती है। इस दौरान जेल प्रशासन यह सुनिश्चित करता है कि जेल का वातावरण बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव न डाले और उसके लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
भारतीय कानून के अनुसार, जेल में जन्म लेने वाले बच्चों को भी अन्य बच्चों की तरह समान अधिकार प्राप्त होते हैं। इनमें जीवन जीने, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे मौलिक अधिकार शामिल हैं। ऐसे में यह पूरी जिम्मेदारी जेल प्रशासन की होती है कि वह इन बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए उचित व्यवस्था करे। जब बच्चे छोटे होते हैं, तो उन्हें मां के साथ ही रहने दिया जाता है और धीरे-धीरे बड़े होने पर उनके लिए शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य से जुड़ी विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। कई जेलों में ऐसे बच्चों के लिए अलग से कक्षाएं, स्वास्थ्य शिविर और मनोरंजन की व्यवस्थाएं की जाती हैं, ताकि वे भी सामान्य बच्चों की तरह एक स्वस्थ जीवन जी सकें।
भारतीय जेलों में 23 हजार से अधिक महिलाएं, कई अपने बच्चों के साथ
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर की 1330 जेलों में कुल 5.73 लाख से अधिक कैदी बंद हैं, जिनमें से 23,772 महिलाएं हैं। इनमें से 1,537 महिलाएं ऐसी हैं जो अपने छोटे बच्चों के साथ जेल में रह रही हैं। इनमें से बड़ी संख्या उन महिलाओं की है जिन्होंने जेल में रहते हुए बच्चों को जन्म दिया है। भारतीय कानून इस बात को स्पष्ट करता है कि माता-पिता द्वारा किए गए अपराधों की सजा बच्चों को नहीं दी जा सकती। ऐसे में यह पूरी तरह से जेल प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वह जेल में रह रहे बच्चों के संपूर्ण विकास, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करे। इन बच्चों को सामान्य जीवन का अवसर देने के लिए कई जेलों में विशेष सुविधाएं और कार्यक्रम चलाए जाते हैं, ताकि वे जेल की चारदीवारी में रहते हुए भी एक स्वस्थ और सकारात्मक वातावरण में अपना बचपन बिता सकें।