बलूचिस्तान में जारी अलगाववादी आंदोलन ने एक बार फिर हिंसक रूप ले लिया है। बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तान की जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक कर लिया, जिसमें यात्रा कर रहे करीब 140 सैनिकों को बंधक बना लिया गया। इनमें पाकिस्तानी सेना के जवानों के साथ-साथ पुलिसकर्मी और खुफिया एजेंसी ISI के अधिकारी भी शामिल हैं। हालात काबू में लाने के लिए पाकिस्तानी सेना एयरस्ट्राइक कर रही है, लेकिन अब तक की मुठभेड़ में उनके 20 जवान मारे जा चुके हैं। इस हमले ने पाकिस्तान सरकार और सेना को गहरे संकट में डाल दिया है। माना जा रहा है कि BLA इस कार्रवाई के जरिए अपनी प्रमुख मांगों पर सौदेबाजी करना चाहता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मांग चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को बंद करना है।
BLA की प्रमुख मांगें क्या हैं?
बलूचिस्तान में लंबे समय से अलगाववादी आंदोलन चल रहा है, और BLA इस क्षेत्र की स्वायत्तता के साथ-साथ चीन के निवेश के खिलाफ विरोध जता रहा है। संगठन का दावा है कि CPEC परियोजना बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर रही है, जबकि स्थानीय नागरिकों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा। ग्वादर बंदरगाह सहित कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी असंतोष बढ़ रहा है। स्थानीय निवासियों को ग्वादर में प्रवेश के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, जबकि मछली पकड़ने तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे वहां के लोगों की आजीविका पर सीधा असर पड़ा है। BLA का कहना है कि वह बलूच नागरिकों के अधिकारों और क्षेत्र की स्वायत्तता की लड़ाई लड़ रहा है।
CPEC के खिलाफ बलोच आर्मी की बढ़ती नाराजगी
चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पाकिस्तान के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, लेकिन बलूचिस्तान के लिए यह एक नई समस्या बन गई है। बलोच संगठनों का आरोप है कि इस परियोजना से स्थानीय लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा, बल्कि उनकी जमीन, जल संसाधन और खनिज संपदा पर चीन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। ग्वादर बंदरगाह को चीन के लिए विकसित किया जा रहा है, लेकिन इसके चलते स्थानीय बलोच मछुआरों की आजीविका छिन गई है।
बलूचिस्तान के संसाधनों पर बाहरी कब्जा
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और इसमें प्राकृतिक गैस, तांबा, कोयला और सोने के विशाल भंडार मौजूद हैं। हालांकि, इन संसाधनों पर स्थानीय बलोच लोगों को कोई अधिकार नहीं दिया गया है। यही कारण है कि बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य अलगाववादी गुट पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ संघर्षरत हैं।
बलूचिस्तान में लापता हो रहे लोग – एक गंभीर मानवाधिकार संकट
संयुक्त राष्ट्र (UN) और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार, बलूचिस्तान में हजारों लोगों को जबरन लापता किया गया है। जनवरी 2024 तक UN के अनुसार, 2011 से अब तक पाकिस्तान में 10,078 जबरन गायब किए जाने के मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से 2,752 केवल बलूचिस्तान से हैं।
वॉयस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स (VBMP) संगठन का दावा है कि 2001 से 2017 के बीच लगभग 5,228 बलोच लोग लापता हो चुके हैं। पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसियों पर बलूच नागरिकों के अपहरण और हत्या के आरोप लगते रहे हैं।
CPEC को लेकर बलोच लोगों का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है, और पाकिस्तान सरकार इस मुद्दे को दबाने के लिए सैन्य कार्रवाई और दमनकारी नीतियों का सहारा ले रही है।
पाकिस्तानी सेना और बलोच संगठनों के बीच बढ़ता टकराव
बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य बलोच अलगाववादी संगठनों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना लंबे समय से उनके खिलाफ दमनकारी नीति अपना रही है। सेना पर आरोप है कि वह बलोच जनता की आवाज दबाने के लिए जबरन गिरफ्तारियां, हत्याएं और अमानवीय यातनाएं दे रही है। इसी के चलते अब बलोच संगठनों ने सीधा टकराव करने का फैसला कर लिया है।
बलूचिस्तान में हमलों की बढ़ती संख्या
पाकिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के बीच, BLA और अन्य अलगाववादी गुटों ने सेना पर हमले तेज कर दिए हैं। हाल के महीनों में बलूचिस्तान में कई आत्मघाती हमले और सुरक्षा चौकियों पर हमले हुए हैं, जिनमें बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिक हताहत हुए हैं।
ग्वादर बंदरगाह – विरोध का केंद्र
ग्वादर बंदरगाह रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का प्रमुख हिस्सा है। इस परियोजना के जरिए चीन अपने व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित बनाना चाहता है, जिससे वह खाड़ी देशों से कच्चे तेल और अन्य व्यापारिक सामान सीधे अपने शिनजियांग प्रांत तक पहुंचा सके।
हालांकि, बलोच राष्ट्रवादियों का कहना है कि इस आर्थिक गतिविधि का कोई लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा। बलोच नागरिकों को ग्वादर में प्रवेश तक की अनुमति नहीं है, जबकि विदेशी निवेशकों और पाकिस्तानी अधिकारियों को वहां पूरी छूट मिली हुई है। यही कारण है कि BLA ने CPEC को बंद करने की मांग को और तेज कर दिया है।
क्या पाकिस्तान BLA से समझौता करेगा?
BLA ने सैनिकों को बंधक बनाकर पाकिस्तान सरकार पर दबाव डालने की रणनीति अपनाई है। उनका मुख्य उद्देश्य बलूचिस्तान में सैन्य कार्रवाई को रोकना और CPEC परियोजना को रद्द करवाना है। लेकिन पाकिस्तान सरकार के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं होगा, क्योंकि चीन ने इस परियोजना में अरबों डॉलर का निवेश किया है। यदि पाकिस्तान BLA की मांग मान लेता है, तो इससे चीन के साथ उसके रिश्तों पर गहरा असर पड़ सकता है। वहीं, अगर पाकिस्तान सैन्य कार्रवाई करता है, तो यह बलूचिस्तान में संघर्ष को और भड़का सकता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान सरकार इस संकट से कैसे निपटती है।
संयुक्त राष्ट्र में बेनकाब हुआ पाकिस्तान
बलूचिस्तान में बढ़ती हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघनों ने अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कर लिया है। फ्रांस की प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी Le Monde और संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट्स में जबरन गायब किए गए बलोच नागरिकों के मामलों को उजागर किया गया है, जिससे पाकिस्तान की छवि और अधिक खराब हुई है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा
अमेरिका और यूरोप के कई मानवाधिकार संगठनों ने CPEC परियोजना को बलोचिस्तान के लिए विनाशकारी करार दिया है और पाकिस्तान से इस क्षेत्र में मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। इन संगठनों का कहना है कि बलोच नागरिकों को उनके ही संसाधनों से वंचित किया जा रहा है, जबकि चीन और पाकिस्तान को इसका सीधा लाभ मिल रहा है।
क्या पाकिस्तान कोई डील करेगा?
BLA और पाकिस्तानी सेना के बीच संघर्ष लगातार गंभीर होता जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान बलोच सेना के साथ किसी तरह की बातचीत करेगा या फिर बलूचिस्तान में हिंसा और भी भयानक रूप लेगी? इस संकट ने पाकिस्तान को न केवल एक बड़े राजनीतिक और सैन्य संकट में डाल दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्थिति को भी कमजोर कर दिया है।