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ये 6 स्मारकें है भारत की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली, एंट्री फीस से होता है लाखों करोड़ों का फायदा

पर्यटन की दृष्टि से देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक रहस्यमयी देश है। भारत में मौजूद सैकड़ों खूबसूरत स्मारकों, गुफाओं और मंदिरों में हर साल करोड़ों भारतीय और विदेशी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। फिर उन्हें कोई फर्क भी नहीं पड़ता कि इन स्मारकों को देखने में कितना पैसा खर्च होने वाला है। भारत में 100 से भी ज्यादा स्मारक हैं, जहां जाने के लिए पर्यटकों से एंट्री फीस ली जाती है।

| Updated on: Thu, 12 May 2022 4:37:05

ये 6 स्मारकें है भारत की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली, एंट्री फीस से होता है लाखों करोड़ों का फायदा

पर्यटन की दृष्टि से देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक रहस्यमयी देश है। भारत में मौजूद सैकड़ों खूबसूरत स्मारकों, गुफाओं और मंदिरों में हर साल करोड़ों भारतीय और विदेशी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। फिर उन्हें कोई फर्क भी नहीं पड़ता कि इन स्मारकों को देखने में कितना पैसा खर्च होने वाला है। भारत में 100 से भी ज्यादा स्मारक हैं, जहां जाने के लिए पर्यटकों से एंट्री फीस ली जाती है। अगर पर्यटक विदेशी हैं, तो उनसे दो से तीन गुना ज्यादा पैसा वसूला जाता है। इसका फायदा हो रहा है भारत के पर्यटन क्षेत्र को। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक फैमिली या ग्रुप के साथ आते हैं। ऐसे में स्मारकों की अच्छी खासी कमाई हो जाती है। देखा जाए, तो एंट्री फीस के रूप में एकत्रित किए गए धन से भारत सरकार को बहुत अच्छा रेवेन्यू मिल जाता है। तो आइए हम आपको इन 100 में से उन स्मारकों के बारे में बता रहे हैं, जो पर्यटन से सबसे ज्यादा पैसा कमाते हैं।

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ताजमहल - Taj Mahal

उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में यमुना नदी के किनारे संगमरमर के खूबसूरत पत्थरों से बना ताजमहल पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुका है। यह मुमताज के मकबरे के रूप में ज्यादा मशहूर है। स्मारक को पूरा होने में 22 साल लगे और यह भारत में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला स्मारक है। यहां केवल भारतीय पर्यटक ही नहीं बल्कि विदेशी पयर्टक भी खूब आते हैं। स्मारक ताजमहल भारत में सभी पर्यटन स्थलों में कमाई का सबसे बड़ा श्रोत है। पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार के हाथ में देश में मौजूद 116 स्मारकों का सरंक्षण है, जहां जाने के लिए प्रवेश शुल्क देना होता है।

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लाल किला - Red Fort

देश की राजधानी दिल्ली अपनी ऐतिहासिक इमारतों की वजह से दुनियाभर में मशहूर है। सन् 1638 में भारत के तत्कालीन मुगल शासक शाहजहां ने दुश्मनों से बचने के लिए लाल किला बनवाया था। किला कई सालों तक अजेय रहा, जब तक की ब्रिटिश और सिख सेना ने इस पर कब्जा नहीं कर लिया। यह अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। लाल किला पहले कभी इस नाम से नहीं जाना जाता था? इसे मूल रूप से "किला-ए-मुबारक" के नाम से जाना जाता था। इतिहास में कई जगह इस बात का उल्लेख है कि शाहजहाँ ने इस किले का निर्माण उस समय करवाया था जब उसने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय लिया था। उस समय किले का नाम किला-ए-मुबारक था जिसके बाद उसका नाम लाल किला कर दिया गया। ऐसा भी कहा जाता है कि इसका निर्माण लाल पत्थर और ईंटों से किया गया था, इसलिए अंग्रेजों ने इसका नाम रेड फोर्ट रख दिया और स्थानीय लोग इसे लाल किला के नाम से बुलाते थे। लाल किले को बनने में 10 साल का समय लगा था, मतलब पूरा एक दशक के बाद इस किले का निर्माण पूरा हुआ था। शाहजहाँ के समय के अग्रणी वास्तुकार उस्ताद हामिद और उस्ताद अहमद ने 1638 में इसका निर्माण शुरू किया था और अंत में इसे वर्ष 1648 में पूरा किया था। चांदनी चौक में स्थित इस किले को देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक आते है।

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कुतुब मीनार - Qutub Minar

क़ुतुब मीनार भारत में दक्षिण दिल्ली शहर के महरौली भाग में स्थित, ईंट से बनी विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। यह दिल्ली का एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। ऐसा कहते हैं कि दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुब उद दीन ऐबक ने 13वीं शताब्दी में इसका निर्माण शुरू किया था। कुतुब मीनार को यूनेस्को द्वारा भारत के सबसे पुराने वैश्विक धरोहरों की सूचि में भी शामिल किया गया है। क़ुतुब मीनार दुनिया की सबसे बड़ी ईटों की दीवार है जिसकी ऊंचाई 72.5 मीटर और इसका डायमीटर 14.32 मीटर है। मोहाली की फतह बुर्ज के बाद भारत की सबसे बड़ी मीनार में क़ुतुब मीनार का नाम आता है। क़ुतुब मीनार के आस-पास परिसर क़ुतुब काम्प्लेक्स है जो कि यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है। मीनार के अंदर कुल 379 सीढ़ियाँ है, जो कि गोलाई में बनी हुई है। दिल्ली सल्तनत के संस्थापक क़ुतुब-उद-दिन ऐबक ने ईस्वी सन् 1200 में कुतुब मीनार का निर्माण करवाना शुरू किया था। इसके बाद 1220 में ऐबक उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने इस मीनार में तीन मंजिल और बनवा दी थी। इसके बाद 1369 में सबसे उपर वाली मंजिल बिजली कड़कने की वजह पूरी तरह से टूट कर गिर गई। इसके बाद फिरोज शाह तुग़लक़ ने एक बार फिर से कुतुब मीनार का निर्माण करवाना शुरू किया और वो हर साल 2 नई मंजिले बनवाते रहे। उन्होंने मार्बल और लाल पत्थर से इन मंजिलों को बनवाया था। कुतुबमीनार का निर्माण करवाना शुरू ऐबक ने किया था और पूरा करवाया इल्तुतमिश ने और 1369 में मीनार को दुर्घटना के कारण टूट जाने के बाद दुरुस्त करवाया फिरोजशाह तुगलक ने।

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हुंमायू का मकबरा - Humayun Tomb

भारत में मुगल वास्तुकला का एक खूबसूरत उदाहरण, दिल्ली में हुमायूं का मकबरा, 16वीं शताब्दी में बनाया गया था और हर साल लाखों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक इसकी ओर आकर्षित होते हैं। यह मकबरा बादशाह हुमायूं के शव को सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया था। हमीदा बानो बेगम के आदेश पर निर्मित, हुमायूँ के मकबरे की वास्तुकला ताजमहल जैसी ही है। लेकिन आम धारणा के अलावा, हुमायूं का मकबरा हुमायूं द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि उनकी पत्नी हमीदा बानो बेगम ने अपने पति के प्रति प्यार के संकेत के रूप में बनवाया था। हुमायूं का मकबरा, जिसे 'मुगल का छात्रावास' भी कहा जाता है, एक या दो नहीं बल्कि एक ही परिसर के अंदर 100 मकबरे हैं। हुमायूं के मकबरों पर कुछ भी न लिखे रहने की वजह से, मकबरा किसका है ये पहचान पाना थोड़ा मुश्किल है। मुगल सम्राट हुमायूं की कब्र मकबरे के केंद्रीय मुर्दाघर के अंदर स्थित है और बगल के कमरों से घिरी हुई है जिसमें उनकी दो पत्नियों और बाद के मुगलों की कब्रें हैं। हुमायूं के मकबरे के अंदरूनी भाग समृद्ध और सुरुचिपूर्ण कालीनों और शामियाना से बने हुए हैं जो स्मारक को एक भव्य और शाही रूप प्रदान करते हैं। स्मारक के अंदर टॉप पर एक छोटा सा तम्बू बना हुआ है, जहां आप हुमायूं की तलवार, जूते और पगड़ी को उनकी स्मृति के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि हुमायूं के मकबरे ने मुगल वास्तुकला में चार-चौथाई उद्यान की अवधारणा को पेश किया है। यहां एक इमारत के साथ गार्डन भी है। जहां पर्यटक सर्दियों में धूप में समय बिता सकते हैं। कई लोग शाम के समय यहां पिकनिक मनाने के लिए आते हैं और फोटो भी क्लिक करते हैं।

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आगरा का किला - Agra Fort

आगरा का किला जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, आगरा उत्तर प्रदेश में स्थित यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है। यह दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल से करीब 2.5 किलोमीटर दूर है। वर्तमान समय की संरचना मुगलों द्वारा बनाई गई थी, हालांकि कहा जाता है कि यह 11वीं शताब्दी से "बादलगढ़' के नाम से यहां खड़ा है। आगरा का किला 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान एक लड़ाई का स्थल था। आगरा का किला भले ही ताजमहल जितना मशहूर न हो, लेकिन जो भी पर्यटक आगरा आता है, वो किला देखे बिना नहीं जाता। पहले यह राजपूत राजाओं के राजवंश के स्वामित्व वाला ईंट का किला था, लेकिन बाद में मुगलों ने इसे अपने कब्जे में कर लिया। किले को बाद में मुगल वास्तुकला की तर्ज पर पुर्ननिर्मित किया गया था। इसके तुरंत बाद सम्राट अकबर ने अपनी राजधानी को आगरा में शिफ्ट कर दिया और आगरा के किले को अपने रहने के लिए इस्तेमाल करने लगा। यह एक बहुत प्रभावशाली स्मारक है, जिससे पर्यटन क्षेत्र को बहुत फायदा होता है। आगरे के किले में सभी के लिए टिकट की कीमत अलग-अलग है। अगर आप भारतीय नागरिक हैं तो आपके लिए ₹35 का टिकट निर्धारित किया गया है। वहीं विदेशी यात्रियों के लिए इसकी कीमत ₹550 रखी गई है। जानकारी के लिए ये बात जान लें कि 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों का कोई टिकट नहीं लगता।

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फतेहपुर सीकरी

आगरा के पास स्थित फतेहपुर सीकरी 16वीं शताब्दी में बनाया गया एक शाही शहर है। यह शहर मुगल साम्राज्य के आदर्शों और विरासत को समेटे हुए है। इसे 1571 में मुगल बादशाह अकबर ने बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि 12वीं शताब्दी में शुंग वंश और बाद में सिकरवार राजपूतों के शासन के दौरान यहां कई छोटे-छोटे और विभिन्न स्मारक और किले बनाए गए थे, जिसे अकबर ने फतेहपुर सीकरी बनवाते वक्त ध्वस्त करवा दिया था। फतेहपुर सीकरी नाम अरबी मूल से है, फतेह का अर्थ है 'जीत' और सीकरी का अर्थ है 'भगवान को धन्यवाद देना।' शहर का पुराना नाम फतेहाबाद बादशाह अकबर ने दिया था, जिसका अर्थ 'जीत का शहर' है। अपने बेटे जहांगीर के दूसरे जन्मदिन पर उन्होंने एक शाही महल का निर्माण शुरू किया, जिसमें फतेहाबाद और सीकरीपुर नाम शामिल थे। बस इसी से यह फतेहाबाद से फतेहपुर सीकरी हो गया।

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