जैसा कि आप सभी जानते हैं, भारत विविधता का देश है। यहां एक ओर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर घूमने की अनगिनत जगहें हैं, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिकता से जुड़ी कई ऐसी धार्मिक जगहें भी हैं जो पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती हैं। इन्हीं में से एक है पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर, जिसे गोल्डन टेंपल और श्री हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। यह सिख धर्म का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल है। मंदिर के पास एक पवित्र सरोवर स्थित है, जिसे अमृत सरोवर कहा जाता है। मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति और ऊर्जा प्राप्त होती है। लेकिन केवल इसकी खूबसूरत वास्तुकला और आध्यात्मिकता ही नहीं, बल्कि यहां हर दिन चलने वाला 'गुरु का लंगर' भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
हर दिन लाखों लोगों का भोजन
स्वर्ण मंदिर का लंगर सेवा, समानता और श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण है। कहा जाता है कि यहां रोज़ाना एक लाख से अधिक श्रद्धालु भोजन करते हैं। विशेष अवसरों पर यह संख्या डेढ़ से दो लाख तक भी पहुंच जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि यह लंगर 24 घंटे और सप्ताह के सातों दिन बिना रुके चलता रहता है।
लंगर की परंपरा और इसका उद्देश्य
गुरु नानक देव जी ने 1481 में इस लंगर की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य था – "सबको एक समान भाव से भोजन कराना, बिना किसी भेदभाव के।" यह भोजन सेवा सिर्फ भूख मिटाने का साधन नहीं, बल्कि भाईचारे, सेवा और इंसानियत का प्रतीक है।
लंगर कैसे संचालित होता है?
स्वर्ण मंदिर में दो विशाल हॉल बनाए गए हैं, जहां हजारों लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कोई भी पेशेवर कुक या वेटर नहीं होता, बल्कि सेवा भाव से जुड़े हुए सैकड़ों स्वयंसेवक काम करते हैं। ये सभी सेवक बिना किसी पारिश्रमिक के सेवा करते हैं और यही इस लंगर को विशेष बनाता है।
रसोई में होता है विशाल पैमाने पर भोजन तैयार
रोजाना इस रसोई में लगभग 100 क्विंटल गेहूं, 25 क्विंटल दाल, 10 विंटल चावल, पांच हजार लीटर दूध, 10 क्विंटल चीनी, 5 क्विंटल शुद्ध घी और सब्जियों का इस्तेमाल हाेता है। वहीं 100 से ज्यादा सिलेंडर भी प्रयोग की जाती हैं। 100 से ज्यादा कर्मचारी रसोई की जिम्मेदारी संभालते हैं। यहां एक विशेष मशीन भी लगाई गई है जो एक घंटे में 25 हजार रोटियां बना सकती है। इसके अलावा बड़ी-बड़ी कढ़ाइयों में दाल, सब्जी और खीर बनाई जाती है।
कोई सरकारी सहायता नहीं
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस लंगर के लिए सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं ली जाती। इसकी संपूर्ण व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान, अन्न, दूध, घी या सेवा से होती है। ‘दसवंध’, यानी आय का दसवां हिस्सा धर्म और सेवा में लगाने की सिख परंपरा भी इस सेवा को लगातार चलाए रखने में सहायक है।
तय रहता है मेन्यू और सफाई व्यवस्था
यहां रोज एक निश्चित मेन्यू के अनुसार भोजन बनता है जिसमें रोटी, दाल, सब्जी, खीर आदि शामिल होते हैं। एक पंक्ति के भोजन कर उठते ही विशेष मशीनों से हॉल की सफाई की जाती है, और अगली पंक्ति के लोग बैठ जाते हैं।
लंगर: केवल भोजन नहीं, एक सामाजिक संदेश
स्वर्ण मंदिर का लंगर केवल भोजन सेवा नहीं है – यह मानवता, समरसता और सामाजिक समानता का संदेश भी है। यहां अमीर-गरीब, जाति-धर्म, देश-विदेश का कोई भेद नहीं होता। सभी एक पंक्ति में, एक जैसे बर्तनों में, एक जैसा खाना खाते हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी प्रेरणादायक है।
स्वर्ण मंदिर कैसे पहुंचे?
अगर आप स्वर्ण मंदिर जाने की योजना बना रहे हैं तो:
हवाई मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा श्री गुरु रामदास जी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, अमृतसर है, जहां से टैक्सी लेकर मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग: अमृतसर रेलवे स्टेशन मंदिर से बहुत करीब स्थित है।
सड़क मार्ग: राष्ट्रीय और राज्यीय सड़कों के ज़रिए भी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।