कोटा: ऑपरेशन सिंदूर के बाद वन विभाग की नर्सरी में तैयार सिंदूर के पौधों की डिमांड अचानक और तेजी से बढ़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में इस पौधे को रोपित किया था, जिससे इसकी मांग में और भी इजाफा हुआ है। कोटा की तीन सरकारी नर्सरियों में पिछले एक माह में 900 से ज्यादा पौधे लोग लेकर जा चुके हैं। वन विभाग के पास वर्तमान में लगभग 2 हजार पौधे उपलब्ध हैं, लेकिन मांग हजारों की संख्या में हो रही है। केवल कोटा ही नहीं, बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों से भी सिंदूर के पौधों की मांग आ रही है। इसी कारण कोटा वन विभाग अब 10 से 12 हजार पौधे तैयार करने में जुटा हुआ है। इसके लिए मध्य प्रदेश के विदिशा से भी उच्च गुणवत्ता वाले बीज मंगवाए जा रहे हैं। साथ ही आरएसी मैदान और झालीपुरा स्थित निजी फार्म हाउस से भी इस वर्ष बीज एकत्रित किए गए हैं।
देवली अरब नर्सरी की प्रभारी मनुबाला मान ने बताया कि इस नर्सरी से अब तक 350 पौधे बिक चुके हैं, अनंतपुरा नर्सरी से लगभग 150 पौधे बिके हैं, जबकि लाडपुरा में 400 से अधिक पौधे बेचे गए हैं। अचानक इस पौधे की मांग में भारी इजाफा हुआ है। इसका एक पौधा 15 रुपए की कीमत में उपलब्ध कराया जा रहा है।
2024 में तैयार की गई थी पौधों की पहली खेप, तब डिमांड कम थी: मनुबाला मान ने बताया कि वन विभाग ने गत वर्ष दुर्लभ प्रजाति के सिंदूर के पौध तैयार करने का अभियान शुरू किया था। इसी कड़ी में आरएसी मैदान में लगे सिंदूर के पौधों से बीज एकत्रित किए गए। इसके बाद कोटा के देवली अरब रोड, लाडपुरा और अनंतपुरा नर्सरियों में लगभग तीन से चार हजार पौधे तैयार किए गए थे। जुलाई 2024 से इन्हें वितरित करना शुरू किया गया था, तब पौधे अच्छे से अंकुरित होकर तैयार हो गए थे। नए पौधों को देखकर लोग उन्हें खरीदने लगे थे, लेकिन डिमांड इतनी अधिक नहीं थी। 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के बाद इस पौधे की मांग में अचानक उछाल आया है।
इस साल भी लगाए गए हैं लगभग 3 हजार नए पौधे:
मनुबाला मान के अनुसार इस साल भी देवली अरब नर्सरी में 2 से 3 हजार पौधों के लिए बीज रोपित किए गए हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि कोटा क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से सिंदूर के पेड़ नहीं हैं, जिससे बीज एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। खुले बाजार में भी बीज उपलब्ध नहीं होते। इस बार 2025 अप्रैल में झालीपुरा के एक निजी फार्म हाउस और आरएसी मैदान से बीज एकत्रित किए गए हैं, जिनसे तीन हजार तक नए पौधे तैयार किए जाने हैं। अभी तक इन बीजों का अंकुरण नहीं हुआ है, लेकिन वन विभाग को उम्मीद है कि आने वाले समय में अंकुरण होगा।
फूलों से निकलते हैं बीज:
मनुबाला मान ने बताया कि सिंदूर के बीज पेड़ पर लगने वाले कांटेदार फूलों के भीतर से निकलते हैं। एक पौधे को पूरी तरह विकसित होने में तीन से चार साल लगते हैं। पेड़ बनने के लगभग एक साल बाद फ्लावरिंग शुरू होती है और फिर हर साल नवंबर-दिसंबर में फूल आते हैं। इन फूलों के अंदर अप्रैल महीने में बीज बन जाते हैं। फूल सूखने के बाद इन्हें तोड़कर इकट्ठा कर लिया जाता है। हालांकि इन बीजों में से केवल 8 प्रतिशत ही अंकुरित हो पाते हैं, यानी 100 बीजों में से केवल 8 पौधे बनते हैं। मौसम की असामान्य और पर्यावरणीय कारकों के कारण अंकुरण में नुकसान भी होता है।
पेड़ उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाला भी है:
मनुबाला ने बताया कि यह पेड़ 10 से 15 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है और इसकी चौड़ाई तीन से चार फीट के बीच होती है। सिंदूर के पौधे का आयुर्वेद में एंटीबायोटिक के रूप में भी उपयोग होता है। इसकी तने की छाल का उपयोग रक्त शोधन की दवाइयों में किया जाता है। चोट लगने पर छाल को घिसकर लेप लगाया जाता है। यह पौधा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाता है।
विदिशा से मंगवाए गए 10 किलो उच्च गुणवत्ता वाले बीज:
बाजार में सिंदूर के बीज आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। कोटा के मार्केट में यह बीज बिल्कुल नहीं मिलते। मध्य प्रदेश के विदिशा में बड़े पैमाने पर इस पौधे की खेती होती है। कोटा वन विभाग ने वहां से 10 किलो बीज मंगवाए हैं, जिनकी कीमत 800 से 1200 रुपए प्रति किलो है। वन विभाग के पास लगातार सिंदूर के पौधों की डिमांड आ रही है, इसलिए नर्सरियों में आने वाले समय में 10 से 12 हजार नए पौधे तैयार किए जाएंगे। कोटा में लगभग एक दर्जन नर्सरियां सिंदूर के पौधे तैयार करने के काम में लगी हैं। इसके अलावा अन्य जिले भी सिंदूर के पौधे की मांग कर रहे हैं।