सावन में अद्भुत नजारा पेश करते हैं बनारस के मंदिर और घाट, कभी शांत नहीं होती मणिकर्णिका घाट की अग्नि
By: Geeta Mon, 31 July 2023 08:47:18
सावन का महीना चल रहा है। सावन में भोलेनाथ की पूजा करना काफी शुभ माना जाता है, ऐसे में लोग महादेव के दर्शन करने के लिए मंदिरों और शिवालयों में जा रहे हैं। अगर बात करें महादेव की नगरी काशी की तो वाराणसी में महादेव के काफी सदियों पुराने मंदिर हैं, जिस वजह से लोग दूर-दूर से वहां दर्शन के लिए आते हैं। ना सिर्फ देशवासी बल्कि विदेशों के भी लोग भोलेनाथ की नगरी घूमने आते हैं।
वाराणसी हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल में से एक है। यह उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे फेमस जिला है। वाराणसी जिला गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां पर लाखों की संख्या में देश के लोग तो आते ही हैं। इसके अलावा विदेश से भी लोग भारत की संस्कृति को देखने के लिए आते हैं।
बनारस को वाराणसी तथा काशी के नाम से भी जानते हैं। काशी के बारे में कहा जाता है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। यहां पर शिवजी के कई मंदिर बने हुए हैं लेकिन यहां का प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर है। काशी में कुल 84 घाट बने हुए हैं। जिनमें अधिकांश घाट स्नान और पूजा घाट हैं। कुछ घाटों का उपयोग विशेष रूप से श्मशान स्थलों के रूप में किया जाता हैं। घाटों में गंगा पर सुबह की नाव की सवारी लोकप्रिय टूरिस्ट अट्रैक्शन है। यह खूबसूरत शहर गंगा नदी के किनारे बसा है। यह सूबा धर्म और आध्यात्म का केंद्र है। यह शहर अपने विशाल मंदिरों, घाटों और खूबसूरत पर्यटक स्थलों के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। इसके पास में ही सारनाथ स्तंभ बना हुआ है।
भोलेनाथ के शिव पर टिकी है काशी
पुराणों के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। भगवान शिव के त्रिशूल पर टिके होने की वजह से ही यह जमीन पर नहीं है, बल्कि इसके ऊपर है। यहां के कण-कण में शिव हैं। जीवन का प्रारंभ भी यहीं और इसका अंत भी यहीं है। कहा जाता है कि जो काशी नगरी में प्राण त्यागता है, वह मोक्ष पाता है इसलिए यहां मरना मंगल है, चिताभस्म यहां आभूषण समान है। काशी में साधु-संतों का डेरा है। अघोरियों का निवास यहां बड़ी संख्या में है।
देवी पार्वती के साथ काशी आए थे भोलेनाथ
हिंदू धर्म में इसे देवभूमि माना गया है। ये दो नदियां वरुणा और असि के मध्य होने से इसका नाम वाराणसी पड़ा। इसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ अपनी धर्मपत्नी माता पार्वती के साथ काशी आए थे। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती जी से विवाह करने के बाद कैलाश पर्वत रहने लगे तब पार्वती जी इस बात से नाराज रहने लगीं। उन्होंने अपने मन की इच्छा भगवान शिव के सम्मुख रख दी। अपनी प्रिये की ये बात सुनकर भोलेनाथ ने कैलाश छोड़ दिया। कैलाश पर्वत को छोड़ कर भगवान शिव देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में आकर रहने लगे। इस तरह से काशी नगरी में आने के बाद भगवान शिव यहां ज्योतिर्लिग के रूप में स्थापित हो गए।
विश्वनाथ मंदिर
वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास तीन हजार साल से भी अधिक पुराना है। भगवान विश्वनाथ को विश्ववेश्वर नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है सम्पूर्ण ब्रम्हांड का शासक यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर शंकर भगवान को समर्पित है 12 ज्योतिर्लिंग में से एक प्रसिद्ध मंदिर है।
मंदिर में दर्शन करने पर फ़ोटो खींचना वर्जित है साथ ही दर्शन करने पर मोबाइल, कैमरा और अन्य इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स ले जाने की अनुमति नहीं है। मंदिर की मीनार पर 8 कुंतल का सोना चढ़ा हुआ है। मंदिर के परिसर में एक कुआ है जिसे ज्ञान वापी और ज्ञान कुआं कहा जाता है जहा पर केवल हिंदुओं को जाने की अनुमति है। इस मंदिर के समीप और बहुत छोटे मंदिर है। जैसे काल भैरव, विनायक और विरूपाख गौरी आदि। काशी विश्वनाथ मंदिर में रोजाना लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं।
नया विश्वनाथ मंदिर
नये विश्वनाथ मंदिर की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी, यह मंदिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बना हुआ है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। इस मंदिर को बनाने की शुरुआत 1931 में की गई थी और इसे पूरा होने में लगभग तीन दशक लग गए थे। नया विश्वनाथ मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है जो हूबहू असली विश्वनाथ मंदिर की कॉपी है।
मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। घाट में लोगों की अंतिम यात्रा के बाद अंतिम संस्कार के लिए लाया जाता है। कहा जाता है यह घाट अगले जीवन का प्रवेश द्वार है। मणिकर्णिका घाट वाराणसी से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घाट सप्ताह के सभी दिनों में खुला रहता है। इस घाट के चारों तरफ चिताएँ जलती रहती हैं। मणिकर्णिका घाट पर कभी भी अग्नि शांत नहीं होती है। जो भी भक्त मणिकर्णिका घाट पर जाते हैं उनको एक अलग सा ही सुकून मिलता है। काशी आने वाले बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि उनकी चिता मणिकर्णिका घाट पर जले।
रामनगर का किला
रामनगर का किला वाराणसी के रामनगर में स्थित है। यह गंगा नदी के पूर्वी तट पर तुलसी घाट के सामने स्थित है। इसका निर्माण 1750 में काशी नरेश बलवन्त सिंह ने कराया था। किले में 4 फाटक हैं जिसमें पूर्वी दिशा में बना लाल दरवाजा दुर्ग का मुख्य द्वार है इस किले में दो बड़े आंगन है जिसमें पहला लाल दरवाजे के बाद तथा दूसरा झंडा द्वार के बाद जिसमें रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला का कोर्ट विदाई का मंचन किया जाता है। राम नगर दुर्ग में काशी के विज्ञान तथा कला के अद्भुत ज्ञान संगम का प्रतीक धर्म घड़ी जो किले के अंदर दूसरे तल पर स्थापित है, इसे रामनगर के कारीगर मूलचंद शर्मा ने वर्ष 1872 में बनाया था। यह घड़ी आधुनिक समय, दिन तथा तारीख को बताती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र पर आधारित घटनाओं को भी व्यक्त करती है। इस घड़ी में नक्षत्र ,ग्रह राशि, सूर्योदय ,सूर्यास्त के साथ ही घड़ी घंटा पल जैसे भारतीय समय मानकों का भी प्रदर्शन होता है । एक बार सन् 1920 में इसमें कुछ खराबी हो गई थी, जिसे मूलचंद शर्मा के पुत्र बाबू मुन्ना लाल ने सही किया था। वर्तमान में इस धर्म घड़ी की देखरेख आदि का कार्य शर्मा परिवार के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी किया जा रहा। रामनगर किला 18 वीं शताब्दी के बाद से काशी नरेश का घर रहा है और वर्तमान में महाराजा अनंत नारायण सिंह किले में निवास कर रहे हैं। रामनगर किले में एक मंदिर और मैदान के भीतर एक संग्रहालय है। यह मंदिर वेद व्यास को समर्पित है, जिन्होंने महाभारत की रचना की थी।
भारत माता मंदिर
इस मंदिर को भारत माता मंदिर के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसमें आपको भारत से संबंधित सभी जानकारी यहां मिल जाएगी। भारत माता मंदिर काशी विद्यापीठ में ही है। इसका निर्माण शिव प्रसाद गुप्ता और उद्घाटन महात्मा गांधी जी ने किया था। मंदिर के अंदर जाने पर आपको भारत के संपूर्ण संस्कृति जानने को मिलेगी। यहां की सबसे खास बात कि इसमें भारत के नक्शा है। जो कि सफेद संगमरमर को काटकर बनाया गया है इसके साथ ही यदि आप पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। तो आप यहां पर पुस्तके आदमी पढ़ सकते हैं। बनारस के घूमने आने पर इस मंदिर में जरूर आएं। मंदिर में आप पैदल भी जा सकते हैं वाराणसी से इसकी दूरी 1 किलोमीटर है।
तुलसी मानस मंदिर
जैसा कि आपको पहले ही बताया जा चुका है कि बनारस में आपको देखने के लिए कई सारे मंदिर मिल जाएंगे। लेकिन इसके अलावा और भी कई मंदिर है जो काफी फेमस है। इन्हीं मंदिर में से एक है। तुलसी मानस मंदिर वाराणसी का यह मंदिर करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। तुलसी मानस मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है। सन 1964 में इस मंदिर को कोलकाता के प्रसिद्ध व्यापारी ने बनवाया था।मंदिर के प्रत्येक खंबे पर रामचरितमानस लिखा हुआ है। यह मंदिर 2 मंजिल का बना है। जिसमें राम सीता लक्ष्मण हनुमान शिव और अन्नपूर्णा माता की प्रतिमा स्थापित है।वहीं दूसरी मंजिल पर संत तुलसीदास जी की मूर्ति लगी हुई है। इस मंदिर को तुलसीदास के नाम से भी जाना जाता है। इसी मंदिर में महान कवि तुलसीदास जी ने हिंदी भाषा की अवधी बोली में हिंदू महाकाव्य रामायण लिखा था। मंदिर में सावन के महीने रामायण से संबंधित कठपुतलियों का प्रदर्शन किया जाता है। इसलिए सावन के महीने में इस मंदिर में जरूर दर्शन करने के लिए जाना चाहिए। इस मंदिर की दीवारों में रामायण से संबंधित कलाकृति की गई है। तुलसी मानस मंदिर प्रत्येक सुबह 5:30 बजे से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक खुलता है। इसके बाद दोबारा 3:00 बजे से लेकर रात्रि 9:00 बजे मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।
दुर्गा मंदिर
इस मंदिर का निर्माण एक बंगाली महारानी ने 18वीं सदी में करवाया था। इस समय में यह मंदिर बनारस के शाही परिवार के नियंत्रण में आता है। लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ "दुर्गा कुंड" है। इस कुंड को बाद में नगर पालिका ने फुहारे में बदल दिया, जो अपनी मूल सुन्दरता को खो चुका है। इस मंदिर में माँ दुर्गा "यंत्र" रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वती जी, एवं माता काली की मूर्ति अलग से है। यहाँ मांगलिक कार्य मुंडन इत्यादि में माँ के दर्शन के लिये आते है। नवरात्रि, सावन तथा मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। मंदिर के अंदर हवन कुंड है, जहाँ रोज हवन होते हैं। कुछ लोग यहाँ तंत्र पूजा भी करते हैं। सावन महिने में बहुत मनमोहक मेला लगता है।
दशाश्वमेध घाट
वाराणसी में घूमने के लिए दशाश्वमेध घाट एक बहुत ही पवित्र जगह है। यह गंगा नदी के किनारे स्थित बहुत प्रसिद्ध मुख्य घाट है। दशाश्वमेध घाट जगह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि इस घाट पर भगवान ब्रह्मा ने दसा अश्वमेध यज्ञ किया था। वाराणसी में तीर्थयात्रा में आने वाले लोगो की पहली प्राथमिकता दशाश्वमेध घाट रहती है। दशाश्वमेध घाट पर शाम 7 बजे को होने वाली गंगा आरती बहुत ही दर्शनीय होती है। यह घाट पूरे 24 घंटे के लिए खुला रहता है।
सारनाथ मंदिर
सारनाथ मंदिर प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों में से एक है इस मंदिर को देखने के लिए हर रोज हजारों की संख्या में लोग जाते है। भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ यही से लिया गया है। सारनाथ मंदिर वाराणसी से महज 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भगवान बुद्ध बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद सारनाथ मंदिर में आए थे और उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ मंदिर एक बहुत ही शांतिपूर्ण जगह है। जहा जाने पर मन को बेहद शांति मिलती है। मंदिर के पास धमेख स्तूप, थाई मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय और कई मठ स्थित है।
आलमगीर मस्जिद
आलमगीर मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में करवाया था इसीलिए इस मस्जिद को औरंगजेब की मस्जिद भी कहा जाता है। मस्जिद में केवल मुस्लिमों को जाने की अनुमति है। मंदिर वाराणसी मुख्य शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
वाराणसी सिल्क इंपोरियम
बनारस नगरी हिंदू मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है साथ ही बनारसी साड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है। बनारसी साड़ी किसे नहीं पसंद है। हर भारतीय महिला का सपना होता है की वह बनारसी साड़ी एक बार जरूर पहने। बनारसी साड़ी भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। सिल्क इंपोरियम में ही बनारसी साड़ी को बनाया जाता है। यदि आप वाराणसी घूमने जाएं तो सिल्क इंपोरियम जरूर घूमने जा सकते हैं। अगर आप साड़ी लेने की सोच रहें हैं तो यहां आपको उचित रेट में थोक या फुटकर साड़ी मिल जायेंगी।
चुनार का किला
चुनार का किला वाराणसी में एक ऐतिहासिक किला है। यह किला जादुई किला के नाम से भी जाना जाता है। किले का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था जो अपनी वास्तुकला के लिए बहुत प्रसिद्ध है। आज भी इस किले में बाबर के सैनिकों की कब्र मौजूद है। यह बनारस शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।
नेपाली मंदिर
नेपाली मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में करवाया गया था। यह सबसे पुराना मंदिर भी है। नेपाली मंदिर भगवान शिव को समर्पित है इसका निर्माण नेपाल के राजा बहादुर शाह द्वारा करवाया गया था। इसलिए इस मंदिर का नाम नेपाली मंदिर पड़ा। नेपाली मंदिर को टेराकोटा पत्थर और लकड़ी की नक्काशी द्वारा बनाया गया है। मंदिर देखने में बहुत ही भव्य लगता है।
अस्सी घाट
बनारस में कुल 84 घाट बने हुए हैं इन 84 घाटों में सबसे प्रमुख अस्सी घाट है। अस्सी घाट की उत्पत्ति गंगा और अस्सी घाट के संगम से हुई है। अस्सी घाट के किनारे कई सारे मंदिर बने हुए हैं।यहीं पर बाबा जगन्नाथ का भी मंदिर है। प्रत्येक वर्ष इस जगह पर मेले का आयोजन किया जाता है। बनारस घूमने आने पर आप अस्सी घाट जरूर जाएं। यहां पर शाम के समय गंगा आरती की जाती है। इस आरती में शामिल होने के लिए भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है।
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