नभर की भागदौड़ और थकावट के बाद जब हम सुकून की तलाश में बिस्तर पर पहुंचते हैं, तो उम्मीद होती है कि कुछ ही देर में मीठी नींद हमें अपनी गोद में ले लेगी। लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता। आंखें तो बंद होती हैं, मगर दिमाग जागता रहता है और शरीर करवटों में उलझा रह जाता है। अगर आपको भी अक्सर ऐसी ही रातों का सामना करना पड़ता है, तो यह केवल थकान नहीं, स्लीप डिसऑर्डर की निशानी हो सकती है। अफसोस की बात है कि बहुत से लोग इसे मामूली बात समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।
पहले जानिए—क्या होता है स्लीप डिसऑर्डर?
एक स्वस्थ जीवनशैली के लिए भरपूर नींद उतनी ही जरूरी है जितना अच्छा खाना और नियमित एक्सरसाइज। हेल्थ एक्सपर्ट्स भी कहते हैं कि अच्छी नींद हमारे शरीर और दिमाग को रिपेयर और रीस्टोर करने का सबसे प्राकृतिक तरीका है। लेकिन जब यही नींद elusive यानी मुश्किल हो जाए, तो चिंता की बात बन जाती है। कई बार लोग रात भर लेटे रहते हैं, आंखें मूंदते हैं लेकिन नींद आती ही नहीं। और अगर आ भी जाए तो बार-बार खुल जाती है। यह सब कुछ स्लीप डिसऑर्डर का हिस्सा हो सकता है।
इन परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए कभी-कभी केवल जीवनशैली में बदलाव ही काफी होता है, जबकि कुछ मामलों में डॉक्टर की सलाह और दवा की जरूरत पड़ती है। आइए जानते हैं वो कौन-कौन सी स्थितियां हैं जो आपकी रातों की नींद चुराकर आपको थका हुआ और अस्वस्थ बना सकती हैं।
1. इंसोम्निया: जब नींद से हो जाए अनबन
इंसोम्निया, यानी नींद न आना या बार-बार नींद टूट जाना, सबसे आम स्लीप डिसऑर्डर है। इसमें दो तरह के मामले देखे जाते हैं:
क्रॉनिक इंसोम्निया: अगर आपको महीने भर या उससे ज्यादा समय से नींद न आने की दिक्कत है, आप रात भर करवटें बदलते हैं और दिन भर थकान महसूस करते हैं, तो यह क्रॉनिक इंसोम्निया हो सकता है।
एक्यूट इंसोम्निया: यह थोड़े समय के लिए होता है—कुछ दिनों या हफ्तों तक। इसका कारण हो सकता है स्ट्रेस, चिंता या बहुत व्यस्त दिनचर्या।
इन लक्षणों को हल्के में लेने की गलती न करें, क्योंकि इसका असर आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सीधे पड़ता है।
2. स्लीप एपनिया: जब नींद के बीच में रुक जाए सांस
स्लीप एपनिया एक गंभीर स्थिति है, जिसमें सोते समय बार-बार सांस रुक जाती है और उसी झटके से नींद टूट जाती है। इससे आप गहरी नींद नहीं ले पाते और शरीर पूरी तरह से रेस्ट नहीं कर पाता। इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों में दिन के समय अधिक नींद आना, चिड़चिड़ापन, थकान, सिरदर्द और ध्यान की कमी जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से उन लोगों को प्रभावित करती है जिन्हें पहले से सांस की समस्या हो।
3. रेस्टलेस लेग सिंड्रोम: जब पैर नहीं लेने देते चैन की नींद
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (RLS) एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें पैरों में जलन, झनझनाहट या अजीब-सी बेचैनी महसूस होती है। ये लक्षण ज्यादातर रात के समय होते हैं, जब आप सोने की कोशिश करते हैं। इससे मजबूरी में आप बार-बार अपने पैर हिलाते हैं, जिससे नींद में बाधा आती है। हालांकि इस समस्या का स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे मैनेज किया जा सकता है। सही उपचार और ध्यान देने पर अच्छी नींद फिर से पाई जा सकती है।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी सुझाव को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।