ऋषि पंचमी 2022 : आज के दिन किया जाता हैं सप्तऋषि पूजन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा

By: Ankur Thu, 01 Sept 2022 09:31:11

ऋषि पंचमी 2022 : आज के दिन किया जाता हैं सप्तऋषि पूजन, जानें शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा

आज 1 सितंबर 2022 को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि हैं जिसे ऋषि पंचमी के तौर पर जाना जाता हैं। इस वर्ष उदया तिथि के अनुसार ऋषि पंचमी 01 सितंबर को मनाना शास्त्रसम्मत होगा। आज के दिन पौरा‍णिक सप्तऋषियों के पूजन का महत्व होता हैं जिन्होंने समाज के कल्याण में बहुत योगदान दिया। यह गणेश चतुर्थी के अगले ही दिन पड़ता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं। वहीँ, कई समाज के लोग आज के दिन राखी का त्यौहार बनाते हैं। ऋषि पंचमी पर उपवास रखने से पापों से मुक्ति और ऋषियों का आशीर्वाद मिलता है। आज इस कड़ी में हम आपको सप्तऋषि पूजन के शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में...

ऋषि पंचमी के शुभ मुहूर्त

ऋषि पंचमी - 1 सितंबर 2022, गुरुवार।
ऋषि पंचमी तिथि का प्रारंभ - 31 अगस्त 2022, दिन बुधवार, दोपहर 3:22 मिनट से शुरू।
पंचमी तिथि का समापन - 01 सितंबर 2022, गुरुवार, दोपहर 2:49 मिनट पर।
ऋषि पंचमी पूजन का शुभ मुहूर्त - 01 सितंबर 2022, दिन में 11:05 मिनट से दोपहर 1:37 मिनट तक।
कुल अवधि - 02 घंटे 33 मिनट

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ऋषि पंचमी कथा

ऋषि पंचमी की एक कथा के अनुसार विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई।

दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे। एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है? उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे। इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।

धर्मशास्त्रों की मान्यतानुसार रजस्वला स्त्री पहले दिन चांडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी। पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दु:खों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।

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सप्तऋषि पूजन मंत्र
'कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः'॥

पूजन विधि

ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाले को गंगा में स्नान करना शुभ होता है। अगर किसी करणवश ऐसा संयोग नहीं बन रहा है तो घर नहाने वाले जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं। पहले सुबह 108 बार मिट्टी से हाथ धोएं, गोबर की मिट्टी, तुलसी की मिट्टी, पीपल की मिट्टी, गंगाजी की मिट्टी, गोपी चंदन, तिल, आंवला, गंगाजल, गोमूत्र इन चीजों को मिलाकर हाथ-पैर धोए जाते हैं। इसके बाद 108 बार कुल्ला किया जाता है।

इसके बाद नहाकर गणेशजी की पूजा की जाती है। गणेश पूजन के बाद सप्तऋषिओं का पूजन और कथा पढ़ी जाती है। पूजन के बाद केला, घी, चीनी व दक्षिणा रखकर ब्राह्मण या ब्राह्मणी को दान किया जाता है। दिन में एक बार भोजन किया जाता है। इसमें दूध, दही, चीनी और अनाज कुछ भी नहीं खाए जाते हैं। फल और मेवे के सेवन किया जा सकता है।

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