हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप माने जाने वाले काल भैरव को समर्पित होती है। वर्ष 2025 में आषाढ़ मास की कालाष्टमी 18 जून को दोपहर 1 बजकर 34 मिनट से आरंभ होकर 19 जून को सुबह 11 बजकर 55 मिनट तक रहेगी। ऐसे में धार्मिक मान्यता के अनुसार, सूर्योदय के समय जो तिथि विद्यमान होती है, वही मान्य होती है, इसलिए कालाष्टमी व्रत 19 जून को रखा जाएगा और इसी दिन पूजन श्रेष्ठ रहेगा। यह दिन उन भक्तों के लिए विशेष माना जाता है जो जीवन की बाधाओं, मानसिक अशांति, शत्रुओं या नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति की कामना रखते हैं।
कौन हैं भगवान काल भैरव?
भगवान काल भैरव का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और भयप्रद है, परंतु वे अपने भक्तों के लिए करुणा और रक्षा का प्रतीक हैं। उन्हें शिव का रक्षक रूप माना जाता है, जो काशी जैसे पवित्र नगर की भी रक्षा करते हैं। भगवान भैरव को 'दंडपाणि' भी कहा जाता है, क्योंकि उनके हाथ में दंड होता है जिससे वे अधर्मियों को दंडित करते हैं। उनके वाहन के रूप में कुत्ता, जिसे 'स्वस्वा' कहा जाता है, भी पूजा का एक प्रमुख हिस्सा है।
भैरव अष्टमी का धार्मिक महत्व
कालाष्टमी व्रत और उपासना का धार्मिक महत्व अत्यंत व्यापक है। मान्यता है कि इस दिन काल भैरव की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन की समस्त बाधाएं समाप्त होती हैं। विशेष रूप से यह दिन तांत्रिक साधना, कालसर्प दोष, पितृ दोष और ग्रह पीड़ाओं से मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। कई साधक इस दिन रात्रिकालीन पूजन, यंत्र-सिद्धि और रहस्यमय तांत्रिक उपासना भी करते हैं। उज्जैन, काशी, कालिंजर और भैरवगढ़ जैसे स्थानों पर स्थित भैरव मंदिरों में इस दिन विशेष पूजा, जागरण और भजन संध्या का आयोजन होता है।
पूजन विधि
पूजन के लिए सुबह स्नानादि करके, घर के पूजन स्थल की सफाई करके लकड़ी के पाटे पर भगवान भैरव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाकर फूल, काले तिल, गुड़, नारियल आदि अर्पित करें। भैरव अष्टक और मंत्रों का जप करें, जैसे "ॐ कालभैरवाय नमः"। विशेष रूप से रात्रि में जागरण कर भैरव जी के भजन गाना, उनकी कृपा पाने का श्रेष्ठ उपाय माना जाता है। संध्या समय पुनः पूजा करें और काले कुत्तों को भोजन कराना भी पुण्यकारी होता है। कई स्थानों पर इस दिन गरीबों को भोजन कराने या अन्नदान की परंपरा भी प्रचलित है।
भैरव की पूजा से केवल धार्मिक लाभ ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता और सामाजिक साहस भी प्राप्त होता है। जीवन में जब बाधाएं लगातार आ रही हों या शत्रु भय हो, तब काल भैरव की आराधना सुरक्षा कवच बनकर कार्य करती है। दक्षिण भारत में भैरव पूजा में नींबू, नारियल, काली मिर्च, काले वस्त्र और विशेष तांत्रिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। वहीं उत्तर भारत में यह व्रत सात्विक रूप से किया जाता है और शाम को घर की बनी मिठाई खाकर व्रत तोड़ा जाता है।
कालभैरव की उत्पति
शास्त्रों के अनुसार, शिवपुराण में भैरव की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है कि जब ब्रह्मा ने अहंकारवश शिव का अपमान किया, तब शिव ने अपने अंग से काल भैरव को उत्पन्न किया, जिन्होंने ब्रह्मा का एक सिर काटकर उनके अहंकार का दमन किया। इसीलिए काल भैरव को 'ब्रह्मकपाल' भी कहा जाता है। वे समय के अधिपति हैं और मृत्यु के बाद जीव के कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले देवता माने जाते हैं। उन्हें दिशा-पालक और न्यायाधीश का स्थान प्राप्त है।
आज के युग में जब मानसिक तनाव, असुरक्षा और सामाजिक उलझनें बढ़ती जा रही हैं, काल भैरव की उपासना आत्मिक संतुलन और निर्भयता प्रदान करती है। यह दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशक्ति की खोज और जीवन की नकारात्मकता से बाहर आने का मार्ग भी है। कालाष्टमी का पर्व भक्तों को शक्ति, संयम और शुद्धता की ओर अग्रसर करता है।
इसलिए, 19 जून 2025 को मनाई जा रही कालाष्टमी पर श्रद्धा, नियम और आस्था से भगवान काल भैरव की उपासना करके जीवन को भयमुक्त, बाधा रहित और सद्गुणों से युक्त बनाने का संकल्प लें। यह दिन केवल पूजा का अवसर नहीं, बल्कि आत्मसंयम, सेवा और आंतरिक शुद्धि का पर्व भी है।
डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पंचांग आधारित जानकारी पर आधारित है। किसी विशेष निर्णय या अनुष्ठान से पहले योग्य पंडित या ज्योतिषी से परामर्श अवश्य लें।