चमत्कारों से भरा है टपकेश्वर मंदिर, शिव ने यहीं सिखाई थी द्रोण को धर्नुविद्या
By: Ankur Thu, 23 Aug 2018 4:02:11
शिव की महिमा को सभी जानते है, तभी तो शिव को देवों के देव महादेव के नाम से जाना जाता हैं। सावन के महीने में तो हर तरफ शिव के जयकारे ही गूंजते रहते हैं, खासकर शिव मंदिरों में। शिव मंदिरों में सावन के दिनों में जलाभिषेक का विशेष महत्व माना जाता हैं। इसलिए आज हम आपको देहरादून के एक विशेष टपकेश्वर महादेव मंदिर Tapkeshwar Mahadev Temple के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका अपना पौराणिक रूप से भी बड़ा महत्व हैं। इस मंदिर में आने भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है। तो आइये जानते है इस मंदिर की पौराणिक कथा के बारे में।
मान्यता है कि महाभारत युद्ध से पूर्व गुरु द्रोणाचार्य अनेक स्थानों का भ्रमण करते हुए हिमालय पहुंचे। जहां उन्होंने एक ऋषिराज से पूछा कि उन्हें भगवान शंकर के दर्शन कहां होंगे।
मुनि ने उन्हें गंगा और यमुना की जलधारा के बीच बहने वाली तमसा (देवधारा) नदी के पास गुफा में जाने का मार्ग बताते हुए कहा कि यहीं स्वयंभू शिवलिंग विराजमान हैं। जब द्रोणाचार्य यहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि शेर और हिरन आपसी बैर भूल एक ही घाट पर पानी पी रहे थे।
उन्होंने घोर तपस्या कर शिव के दर्शन किए तो उन्होंने शिव से धर्नुविद्या का ज्ञान मांगा। कहा जाता है कि भगवान शिव रोज प्रकट होते और द्रोण को धर्नुविद्या का पाठ पढ़ाते। द्रोण पुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली भी यही है। उन्होंने भी यहां छह माह तक एक पैर पर खड़े होकर कठोर साधना की थी।
एक और मान्यता है कि टपकेश्वर के स्वयं-भू शिवलिंग में द्वापर युग में दूध टपकता था, जो कलयुग में पानी में बदल गया। आज भी शिवलिंग के ऊपर निरंतर जल टपकता रहता है। हर साल फागुन में महाशिवरात्रि और श्रावण मास की शिवरात्रि पर टपकेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं। यहां पर ध्यान गुफा समेत अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।