नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष विराम को लेकर अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 'मध्यस्थता' के दावे ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला, लेकिन कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने बेहद चतुराई और राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए इस पूरे विवाद पर एक ऐसा बयान दिया, जिसने न सिर्फ ट्रंप के दावे को हल्के में लिया, बल्कि राहुल गांधी की बयानबाज़ी को भी अप्रासंगिक कर दिया।
ऑपरेशन सिंदूर और ट्रंप की ‘मध्यस्थता’
7 मई को भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। जवाब में पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य और नागरिक ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए। भारत की प्रतिक्रिया निर्णायक थी, जिसने पाकिस्तानी सेना को झटका दिया।
ऐसे समय में 10 मई को डोनाल्ड ट्रंप ने Truth Social पर एक पोस्ट के जरिए दावा किया कि अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम करवाया है।
हालांकि भारत ने आधिकारिक रूप से कहा कि संघर्ष विराम पाकिस्तान की ओर से डीजीएमओ स्तर पर कॉल आने के बाद हुआ और किसी तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं थी।
राहुल गांधी का तंज: "नरेंद्र सरेंडर"
राहुल गांधी ने 4 जून को भोपाल में एक सभा में कहा, “ट्रंप ने अमेरिका से फोन किया और कहा 'मोदीजी, क्या कर रहे हो? नरेंद्र सरेंडर' और मोदीजी ने कहा 'यस सर'।” उन्होंने यह दावा ट्रंप की पोस्ट के आधार पर किया, और यह दिखाने की कोशिश की कि भारत सरकार दबाव में थी।
थरूर का जवाब: राष्ट्र पहले, राजनीति बाद में
संयुक्त राष्ट्र में अंडर-सेक्रेटरी जनरल रह चुके शशि थरूर इस समय अमेरिकी दौरे पर भारत के बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। इस दौरे का उद्देश्य अमेरिका को यह स्पष्ट करना है कि भारत ने आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई की है और पाकिस्तान के साथ जल संधि को निलंबित करने का कारण क्या था।
जब अमेरिकी थिंक टैंक में एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि क्या भारत ट्रंप की मध्यस्थता के दावे पर स्पष्ट और कड़ा विरोध नहीं कर रहा, तो थरूर ने मुस्कुराते हुए कहा: "हमने कभी किसी से मध्यस्थता की मांग नहीं की। अमेरिकी राष्ट्रपति का हम सम्मान करते हैं, पर हमारे द्विपक्षीय संबंध उनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। हम किसी छोटे से मुद्दे पर रणनीतिक साझेदारी को खतरे में नहीं डालना चाहते।"
थरूर ने राहुल गांधी को भी दिया संकेत
थरूर ने अपने जवाब में न तो ट्रंप पर सीधा हमला किया और न ही राहुल गांधी के बयान का ज़िक्र किया, लेकिन “मामूली बातों को पीछे छोड़, भविष्य की ओर देखना” जैसी पंक्तियों से यह स्पष्ट संकेत दिया कि राष्ट्रीय हितों के सामने व्यक्तिगत बयानबाज़ी का कोई महत्व नहीं है।
मिलिंद देवड़ा का समर्थन: “थरूर देश को पार्टी से ऊपर रखते हैं”
पूर्व कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा, जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे, ने थरूर की तारीफ करते हुए कहा: “मैं डॉ. थरूर को लंबे समय से जानता हूं। वे हमेशा देश को पार्टी से ऊपर रखते हैं।”
जब देश एकजुट हो, तब सियासत नहीं
भारत-पाकिस्तान के तनाव और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के इस नाजुक दौर में जहां सरकार, विपक्ष और विदेश मंत्रालय एक स्वर में बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस का एक धड़ा ट्रंप के बयानों को आधार बनाकर सरकार को घेरने में लगा है।
इस समय, जब भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की तैयारी कर रहा है और वैश्विक मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है, थरूर जैसे अनुभवी नेताओं की संयमित भाषा ही देश की छवि और कूटनीतिक लक्ष्य को साध रही है।
ट्रंप = जयकांत शिकरे?
थरूर ने भले ही यह नहीं कहा, लेकिन इस घटनाक्रम को लेकर एक लोकप्रिय फिल्म संवाद बिल्कुल सटीक बैठता है: “कुछ भी करने का, पर जयकांत शिकरे का ईगो हर्ट नहीं करने का।” ट्रंप को जयकांत शिकरे जैसा ‘ईगो-बम’ मानते हुए भारत ने संयम से काम लिया। इससे अमेरिका के साथ रिश्ते भी सुरक्षित रहे और घरेलू राजनीतिक बयानों की तीव्रता भी थम गई।
संयम और स्पष्टता का उदाहरण
शशि थरूर ने जिस तरह से ट्रंप के बयान को 'मामूली बात' बताकर ख़ारिज किया और साथ ही देश की रणनीतिक प्राथमिकताओं को सामने रखा, वह न सिर्फ एक परिपक्व राजनयिक की पहचान है, बल्कि राहुल गांधी जैसे नेताओं को भी यह संदेश है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर बयान देने से पहले तथ्य और समय की गंभीरता को समझना ज़रूरी है।