जयपुर। राजस्थान में ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों के पुनर्गठन को लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच अब पंचायत राज विभाग भी सक्रिय हो गया है। कांग्रेस की ओर से लगाए गए पक्षपात और मनमानी के आरोपों के बाद विभाग ने जिलों के अधिकारियों को साफ निर्देश दिए हैं कि पुनर्गठन की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और निर्धारित मापदंडों के अनुसार की जाए।
पंचायत राज आयुक्त जोगाराम ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिखते हुए कहा है कि ग्राम पंचायतों और समितियों के पुनर्गठन से जुड़े प्रस्ताव तयशुदा नियमों के अनुसार ही तैयार किए जाएं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आमजन से प्राप्त आपत्तियों के अवलोकन में कई स्थानों पर मानकों से अतिरिक्त ढील बरतते हुए प्रस्ताव प्रकाशित किए गए हैं, जो चिंताजनक है। ऐसे में अब प्रकाशित प्रस्तावों की पुनः समीक्षा की जाएगी और केवल उन्हीं आपत्तियों को स्वीकार किया जाएगा जो निर्धारित मानकों के अंतर्गत हों।
कांग्रेस का आरोप : "कमेटी कर रही है राजनीतिक मनमानी"
इधर कांग्रेस ने भाजपा द्वारा गठित तीन सदस्यीय पुनर्गठन समिति पर सवाल उठाए हैं। इस समिति में शामिल पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी और पूर्व मंत्री अरुण चतुर्वेदी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आरोप लगाए कि यह समिति अधिकारियों पर दबाव बनाकर अपने अनुसार पुनर्गठन करवा रही है। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया और कहा कि तय मानकों की अनदेखी की जा रही है।
आपत्तियों में भी दिखा असंतोष
पंचायत राज विभाग को भेजी गई आपत्तियों में भी कांग्रेस सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने भेदभाव और पक्षपात के आरोप लगाए। कई मामलों में ग्राम पंचायतों के सीमांकन और जनसंख्या अनुपात को लेकर आपत्तियां जताई गई हैं। नेताओं ने आरोप लगाया कि कुछ जिलों में राजनीतिक दबाव में पुनर्गठन हुआ है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं।
कार्यकाल समाप्त, चुनाव अधर में
प्रदेश में फिलहाल 11,310 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें से 6759 पंचायतों का कार्यकाल जनवरी में ही खत्म हो चुका है, 704 का मार्च में और 3847 का कार्यकाल सितंबर में समाप्त होगा। इसके बावजूद सरकार ने वहां प्रशासक की नियुक्ति नहीं कर पुरानी सरपंच व्यवस्था को ही बरकरार रखा है।
वन स्टेट, वन इलेक्शन की तैयारी
राज्य सरकार इस बार 'वन स्टेट, वन इलेक्शन' के सिद्धांत पर एक साथ सभी पंचायतों में चुनाव कराने की योजना बना रही है। हालांकि इसके लिए पुनर्गठन की प्रक्रिया समय पर और पारदर्शिता से पूरी करना जरूरी है। वहीं संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार, पंचायतों का कार्यकाल ना घटाया जा सकता है, ना ही बढ़ाया, बावजूद इसके चुनावों में देरी ने प्रशासनिक तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस पूरे मसले पर अब सभी की निगाहें पंचायत राज विभाग की अगली कार्रवाई और सरकार के रुख पर टिकी हुई हैं।