देश की स्कूली शिक्षा में इतिहास के नायकों को लेकर वर्षों से चल रही बहस एक बार फिर तेज़ हो गई है। इस बार केंद्र में हैं भरतपुर के महान हिन्दू सम्राट महाराजा सूरजमल, जिन्हें स्कूली पाठ्यक्रम में उचित स्थान दिलाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है। भारतीय जाट विकास मंच के नेतृत्व में यह मांग अब हरियाणा की सीमाओं को पार कर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब तक पहुंच चुकी है। मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र ने स्पष्ट कहा है कि "अब औरंगजेब नहीं, महाराजा सूरजमल पढ़ाया जाए।"
हरियाणा से शुरू हुई थी पहल, अब बढ़ी अन्य राज्यों तक
भारतीय जाट विकास मंच की इस ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हरियाणा से हुई, जहां सरकार ने कक्षा आठवीं के पाठ्यक्रम में महाराजा सूरजमल को शामिल कर सम्मानजनक स्थान दिया है। अब मंच का लक्ष्य है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों की स्कूली किताबों में भी सूरजमल की वीरता, कुशल प्रशासन और राष्ट्रनिर्माण में दिए गए योगदान को समुचित स्थान मिले।
डॉ. राजेंद्र ने भरतपुर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बताया कि जिस तरह सूरजमल ने मुगलों और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य की स्वतंत्रता और स्वाभिमान को बनाए रखा, उसे स्कूली शिक्षा में पढ़ाया जाना बेहद आवश्यक है।
हमारे नायक आक्रांता नहीं, आत्मसम्मानी शासक होने चाहिए
डॉ. राजेंद्र का स्पष्ट कहना है कि भारत ने 800 वर्षों तक विदेशी आक्रांताओं की गुलामी सही, लेकिन उस दौर में भी कुछ ऐसे देशभक्त और स्वाभिमानी शासक हुए जिन्होंने किसी के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने कहा –“दुर्भाग्यपूर्ण है कि औरंगजेब, बाबर और अकबर जैसे आक्रांताओं को नायक बनाकर इतिहास पढ़ाया गया, जबकि सूरजमल जैसे सच्चे राष्ट्रपुरुषों को उपेक्षित रखा गया।”
25 दिसंबर को बलिदान दिवस पर राजकीय अवकाश की मांग
भारतीय जाट विकास मंच ने यह भी मांग की है कि महाराजा सूरजमल के बलिदान दिवस 25 दिसंबर को राजकीय अवकाश घोषित किया जाए। मंच का मानना है कि इस दिन को राष्ट्रीय स्तर पर श्रद्धांजलि दिवस के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भरतपुर आमंत्रित किया जाएगा।
पूर्व मंत्री विश्वेंद्र सिंह से मिला समर्थन
भरतपुर दौरे के दौरान मंच के पदाधिकारियों ने पूर्व कैबिनेट मंत्री और राजपरिवार के सदस्य विश्वेंद्र सिंह से मुलाकात की। सिंह ने महाराजा सूरजमल के वंशज होने के नाते इस अभियान को समर्थन देने की बात कही। उन्होंने मंच की इस ऐतिहासिक पहल की सराहना करते हुए कहा कि “अब वक्त आ गया है कि देश को अपने सच्चे नायकों के बारे में सही जानकारी दी जाए।”
इतिहास में महाराजा सूरजमल की भूमिका
इतिहास में महाराजा सूरजमल की भूमिका अत्यंत गौरवशाली रही है। उन्हें अक्सर 'राजस्थान का जार्ज वाशिंगटन' कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने न केवल विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया, बल्कि एक शक्तिशाली और स्वाभिमानी राज्य की नींव भी रखी। भरतपुर के जिस अजेय लोहागढ़ किले का निर्माण उन्होंने करवाया, वह आज भी उनकी सैन्य सूझबूझ और अपराजेय नेतृत्व का प्रतीक बना हुआ है। यह वही किला है, जिसे मुगलों और अंग्रेजों जैसी शक्तियों ने भी कभी फतह नहीं कर पाया।
महाराजा सूरजमल के शासनकाल में भरतपुर क्षेत्र न केवल सैन्य दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध रहा। उन्होंने न केवल युद्धभूमि में वीरता दिखाई, बल्कि प्रशासनिक दक्षता, कर व्यवस्था और जनकल्याणकारी नीतियों के जरिए एक आदर्श शासक की छवि स्थापित की। उनकी नीतियां आज भी आदर्श शासन मॉडल के रूप में देखी जाती हैं। महाराजा सूरजमल का जीवन एक ऐसे नेता की मिसाल है, जिसने भारत की आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और सांस्कृतिक गौरव को जिंदा रखा।
महाराजा सूरजमल को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग न केवल एक ऐतिहासिक न्याय है, बल्कि भावी पीढ़ियों को भारतीयता, स्वाभिमान और साहस की सही मिसाल देने का प्रयास भी है। भारतीय जाट विकास मंच की यह मुहिम अब राष्ट्रीय स्वरूप लेती जा रही है। देखना यह होगा कि राजस्थान सहित अन्य राज्य सरकारें इस पर क्या ठोस कदम उठाती हैं और क्या सूरजमल जैसे वीरों को वह स्थान मिल पाता है जिसके वे सच्चे अधिकारी हैं।