आसान नहीं बच्चों की परवरिश करना: जानें बदलते दौर के लिए कुछ खास पैरेंटिंग टिप्स

By: Priyanka Mon, 22 July 2024 11:17:32

आसान नहीं बच्चों की परवरिश करना: जानें बदलते दौर के लिए कुछ खास पैरेंटिंग टिप्स

यह सच है कि ‘सही परवरिश’ की कोई एक परिभाषा या कोई एक तरीका नहीं है, फिर भी परवरिश के कुछ नुस्खे आपके बच्चे को खुशहाल रखने में बड़े मददगार साबित हो सकते हैं। बच्चों की परवरिश हर माता-पिता के लिए बड़ी चुनौती होती है। उनके मन में हमेशा यह प्रश्न रहता है कि आखिर अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ कैसे बनाएं। जिस तरह से वर्तमान समय में किशोर उम्र के बच्चों में अपराध और अवसाद के मामले देखने को मिल रहे हैं, उसने चिंता और बढ़ा दी है। आज के समय में एक बच्चे की परवरिश करना केवल उसकी जरूरतों को पूरा करना भर नहीं रह गया है, बल्कि बदलते जमाने के साथ मौजूदा परिवेश में पेरेंट्स के लिए बच्चों की परवरिश बहुत ही कठिन टास्क बन चुका है। आज के दौर में बच्चों को पालने के लिए माता-पिता को काफी सावधानी बरतनी पड़ती है और उनका खास ख्याल रखना पड़ता है, क्योंकि आज के जमाने के बच्चे न केवल बेहद संवेदनशील होते हैं, बल्कि हाइपरएक्टिव भी हैं। कब और कौन सी बात बच्चों के दिलों में घर कर जाए, यह कोई नहीं जानता। बच्चों की परवरिश में जरा सी गलती, माता-पिता के सपने को चकनाचूर कर सकती है। इसलिए आज हम आपको बताएंगे पैरेंटिंग के कुछ गोल्डन रूल्स, जिसे फॉलो कर आप अपने बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकते हैं।

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समझें बच्चों की दुनिया

पहले यह स्वीकार लें कि 9-10 साल का बच्चा अब दरअसल में टीनऐजर है और काल्पनिक दुनिया धीरे-धीरे छोड़ रहा है। इसी वक्त उसे अभिभावक की सब से ज्यादा जरूरत होती है। इस उम्र में जिज्ञासाएं और प्राथमिकताएं तेजी से बदलती हैं। बच्चा यह नहीं पूछता कि दुनिया किस ने बनाई। वह यह पूछने लगता है कि दुनिया ऐसी क्यों है? ऐसे कई सवालों के जवाब देने जरूरी हैं। आप खुद को अपडेट रखें। मां या पिता की भूमिका से बाहर निकलें और बच्चों के दोस्त बनें। स्कूल और खेल के मैदान में उस के हमउम्र दोस्त कोई निष्कर्ष नहीं देते। वे चर्चा भर करते हैं यानी घरों में जो उन्हें बतायासिखाया जाता है उसे ऐक्सचेंज करते हैं। यह न मान लें कि यही उम्र कैरियर बनाने की है, बल्कि यह समझ लें कि यह वह उम्र है, जो उसे आत्मविश्वासी बनाती है। इसलिए उस पर अपनी इच्छाए न थोपें।

सच्चा प्यार दें, हर मांगी हुई चीज नहीं

लोग गलती से यह समझते हैं कि अपने बच्चों को प्यार करने का मतलब है उनकी हर मांग पूरी करना। अगर आप उनकी मांगी हुई हर चीज उनको देते हैं तो बड़ी बेवकूफी करते हैं। अगर आप अपने बच्चे से प्यार करते हैं तो उसे वही दें जो जरूरी है। जब आप किसी से सचमुच प्यार करते हैं तो उसका दुलारा होने की फिक्र किए बिना आप वही करते हैं जो उसके लिए बिलकुल सही है।

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बच्चों को बात से नहीं, बल्कि काम से सिखाइए

बच्चे अपने आसपास के परिवेश को देखकर सीखते हैं। ऐसे में अपने व्यवहार से बच्चे के सामने वह उदाहरण प्रस्तुत कीजिए, जैसी आप उससे अपेक्षा कर रहे हैं। अगर आप चाहते हैं कि बच्चा गाली न दे, चीखे-चिल्लाए नहीं, बात माने, बड़ों का सम्मान करे, तो आपको उसके समक्ष स्वयं इसका उदाहरण बनना होगा। आप स्वयं अपशब्दों का प्रयोग करते हुए बच्चे से अच्छे व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते।

सब्र है सबसे जरूरी

बच्चे की परवरिश करते समय एक मां के अंदर सब्र यानी पेशेंस होना बहुत जरूरी है। छोटे बच्चे नखरे, जिद और बहुत सारी गलतियां करते हैं, ऐसे में मां को धैर्य खोए बिना उनके साथ डील करना होता है।

किसी से अपने बच्चे की तुलना करने से बचें

बच्चों को ज्यादा से ज्यादा उत्साहित करते रहना चाहिए। बच्चों की किसी अन्य बच्चे से तुलना करना पैरेंटिंग के नियमों के खिलाफ है। बच्चों के बीच तुलना करना आपके बच्चे के आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है। अगर आप अपने बच्चों से कहते हैं कि तुम बेहतर नहीं हो, तुमसे अच्छा तो वो है, तुमसे अच्छा तो वह कर लेता है, इससे आप बच्चे को हतोत्साहित करते हैं और इससे बच्चे आपके काफी निराश होंगे और उनका किसी भी चीज में मन नहीं लगेगा।

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उसे वक्त दें

बच्चों के बजाय अभिभावक अपनी दिनचर्या देखें तो पाएंगे कि टीवी, इंटरनैट, स्मार्ट फोन और दूसरे फालतू के कामों में वे बच्चों से ज्यादा व्यस्त रहते हैं। आजकल दफ्तर या व्यवसाय में 15-16 घंटे लगना आम बात है। इस वक्त के बाद आप बच्चों को मुश्किल से 2 घंटे भी नहीं देते और देते भी हैं तो ज्यादातर वक्त उसे समझाते रहते हैं, नसीहतें देते रहते हैं। इस से आप को झूठी तसल्ली जिम्मेदारी निभाने की होती है पर बच्चों को कुछ हासिल नहीं होता। बच्चों को जितना ज्यादा हो सके समय दें। उन के साथ खेलें, घूमेंफिरें। खुद भी बच्चा बन जाएं। भूल जाएं कि आप उस के पेरैंट हैं। यही याद रखें कि आप उस के दोस्त हैं।

यह सीखने का वक्त है, सीखने का नहीं

जब आपकी जिंदगी में एक बच्चा आता है तो यह सीखने का वक्त होता है, सिखाने का नहीं। आपकी जिंदगी में उसके आने के बाद अनजाने ही आप हंसते हैं, खेलते हैं, गाते-बजाते हैं, सोफे के नीचे दुबकते हैं और वह सब-कुछ करते हैं जो आप भूल चुके थे। इसलिए यह जिंदगी के बारे में सीखने का वक्त है।

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