बच्चों को बिगाड़ देती है पेरेंट्स की ये आदतें, जानें और दिखाएं समझदारी

By: Ankur Mon, 22 Aug 2022 4:52:31

बच्चों को बिगाड़ देती है पेरेंट्स की ये आदतें, जानें और दिखाएं समझदारी

हर माता-पिता चाहते हैं कि वे उनके बच्चे की अच्छी परवरिश करें और उन्हें एक अच्छा और सच्चा इंसान बनाए। इसी के साथ पेरेंट्स अपने बच्चों की परवरिश के दौरान उनकी इच्छाओं का भी ध्यान रखते है और लाड-प्यार से पालते हैं। लेकिन कई बार पेरेंट्स का यह प्यार उनकी गलती बन जाती हैं जो बच्चों को बिगाड़ने का काम करती हैं। जी हां, जाने-अनजाने में पेरेंट्स कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जिसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं और वे गलत व्यवहार करने लगते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको पेरेंट्स की उन आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं जो बच्चों की जिंदगी को भी तबाह कर सकती हैं। इन आदतों को जानकर समझदारी दिखाते हुए इनमें सुधार करने की जरूरत हैं। आइये जानते हैं इनके बारे में...

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हार नहीं, हमेशा जीतना

आजकल के समय में बच्चों के बीच कॉम्पटीशन काफी ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में हर पेरेंट्स बच्चों को जीतने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन इन सबमें पैरेंट्स बच्चों को फेलियर से डील करना नहीं सिखाते। हालांकि कोई भी पैरेंट्स यह नहीं चाहते कि उनका बच्चा हारे या फेल हो लेकिन यह बहुत जरूरी है कि आप बच्चे को इस परिस्थिति से डील करना सिखाएं। यह उसकी ग्रोथ और विकास के लिए काफी जरूरी होता है।

तुलना करना

यह सबसे आम पेरेंटिंग गलतियों में से एक है, जहां लगभग हर माता-पिता अपने बच्चे की तुलना पडोंसी, रिश्तेदार या फिर बच्चे के ही किसी दोस्त से करतो हैं। ऐसा करते समय पेरेंट्स यह कि बच्चे की इस प्रकार कमियां गिनाने और हर समय दूसरों से तुलना करने से उसके स्वाभिमान पर असर डाल पड़ सकता है। इसके अलावा इससे वह खुद को नालायक, नाकार या फिर अक्षम महसूस करवा सकती है। तुलना करने के बजाय, आप अपने बच्चे की उपलब्धियों की उसकी अच्छाईंयों के साथ बच्चे को समझाएं और उसके गलत काम पे सुधारने की कोशिश करें।

सिखाने की बजाय डांटना


कई बार पैरेंट्स बच्चों को कुछ समझ ना आने पर डांटने लगते हैं। इससे बच्चा आगे कुछ भी पूछने के लिए काफी डरने लगता है। पैरेंट्स के चिल्लाने और गुस्सा करने पर आगे चलकर बच्चे भी काफी गुस्सैल प्रवृति के हो सकते हैं।

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ऑप्शन देना और फैसला करने की आजादी

कई बार पैरेंट्स किसी परिस्थिति से निपटने के लिए बच्चे को बहुत से ऑप्शन दे देते हैं और उन्हें खुद से फैसला लेने के लिए कहते हैं। वैसे तो खुद से फैसला लेने पर बच्चों में एक समझ आती है लेकिन कई बार इससे बच्चे किसी भी परिस्थिति का सामना करने की बजाय और दूसरों के साथ एडजस्ट करने की बजाय कोई दूसरा विकल्प चुनने लगते हैं।

मांगने से पहले ही इच्छा पूरी करना

बच्चे जो चाहते हैं, उसके लिए काम करना न केवल उनके लिए अच्छा है बल्कि बहुत महत्वपूर्ण भी है। उन्हें यह दिखाना और महसूस करवाना बहुत जरूरी है कि कैसे वे खुद भी किसी कार्य का हिस्सा बन सकते हैं और किस प्रकार सब कुछ सभी के सपोर्ट और सहमति से संचालित होता है। यदि आप उन्हें उनके मांगने पर सभी चीजें उपलब्ध करवा देते हैं, तो उनमें इस बात के लिए कोई कृतज्ञता की भावना नहीं आती, बल्कि यह उनमें अधिकार की भावना पैदा करता है। इसलिए उन्हें दूसरों के प्रति अपना आभार प्रकट करने के लिए 'धन्यवाद' और 'थैंक यू' जैसे शब्द कहना सिखाएं।

बच्चों के सामने झूठ बोलना

पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि भूलकर भी बच्चे के आगे झूठ ना बोलें। इससे बच्चे को गलत सिग्नल मिलते हैं और उन्हें भविष्य में काफी परेशानी हो सकती है। जब आप किसी परिस्थिति से बचने के लिए बच्चे के सामने झूठ बोलते हैं तो इससे आपका बच्चा भी भविष्य में खुद को बचाने के लिए इस ट्रिक का इस्तेमाल कर सकता है। बच्चे के झूठ बोलने पर आप उसे इसके दुष्परिणामों के बारे में बताएं।

बच्चों को बड़ों की बातों में शामिल करना

जब भी आप किसी चीज के बारे में बात कर रहे हैं तो जरूरी है कि बच्चों को इसमें शामिल ना करें। अगर वह बात बच्चे के मतलब की नहीं है तो उन्हें इससे दूर रखने में ही भलाई होती है। बड़ों की बातें सुनकर बच्चे अपने दिमाग में चीजों को जज करना शुरू कर देते हैं।

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बच्चे की अधिक प्रशंसा

बच्चे की सफलता और अच्छे कामों के लिए उसकी प्रंशसा या तारीफ करना सही है। लेकिन गलती में भी बच्चे की गलती को छिपाना और उसे बढ़ावा देना घातक हो सकता है। पेरेंट्स की बच्चों को ओवरप्रेट करने की आदत आपके बच्चों में सही और गलत की उचित समझ से दूर कर, हमेशा खुद को सही मानने की आदत डाल सकती है।

नाकामियों के लिए बच्चे को दोष देना

बच्चे को जन्म देने का फैसला माता-पिता का अपना होता है। तो अगर आपको बच्चा या उसका बर्ताव खराब लगता है तो इसके लिए उसे भला-बुरा ना बोलें क्योंकि यह आपका अपना फैसला था। भले ही आपको कितना भी गुस्सा क्यों ना आ रहा हो लेकिन बच्चों पर गुस्सा ना निकालें।

दुनिया से उन्हें परिचित नहीं करवाना

बच्चे को एक जागरूक और संवेदनशील इंसान बनाने के लिए बहुत जरूरी है कि आपका बच्चा समाचार में जो देखता है, इस बारे में उससे दुनिया भर के लोगों की स्थिति के बारे में बात करें, इससे उसके मन में सहानुभूति और सोचने-विचारने की भावना विकसित होगी। यह भावना एक आत्म-केंद्रित दृष्टिकोण को कम करने में भी मदद करता है। आठ साल का होने पर एक बच्चा यह समझना शुरू कर देता है कि उसके प्रति किसी व्यक्ति की भावनाएं कैसी है, उसे उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। बच्चों को दुनिया के साफ और काले, दोनों रूपों से परिचित कराना उनकी सेफ्टी के लिए सही है।

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