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33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास स्थान है ये गुफा, छुपा है दुनिया के खत्म होने का राज

भारत में अनेकों ऐसी गुफाएं मौजूद हैं, जो लोगों के लिए आज भी हैरानी का विषय बनी हुई हैं। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा, जिसका जिक्र पुराणों में भी किया गया है।

Posts by : Priyanka Maheshwari | Updated on: Wed, 15 Sept 2021 9:12:38

33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास स्थान है ये गुफा, छुपा है दुनिया के खत्म होने का राज

भारत में अनेकों ऐसी गुफाएं मौजूद हैं, जो लोगों के लिए आज भी हैरानी का विषय बनी हुई हैं। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा, जिसका जिक्र पुराणों में भी किया गया है। पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है। ऐसा माना जाता है कि इस गुफा के गर्भ में दुनिया के खत्म होने का राज भी छिपा हुआ है। ये मंदिर रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल है। आज हम आपको अपने इस लेख के चलते इस गुफा से जुडी कुछ दिलचस्प बातें बताने जा रहे है।

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पाताल भुवनेश्वर की खोज कैसे हुई

पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है। इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि सूर्य वंश के राजा और त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करने वाले राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी, जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। ऐसा कहा जाता है कि इंसानों द्वारा मंदिर की खोज करने वाले राजा ऋतुपर्णा पहले व्यक्ति थी। अधिशेष ऋतुपर्णा को गुफा के अंदर ले गए, जहां उन्हें देवी देवताओं के साथ-साथ भगवान शिव के दर्शन करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि फिर उसके बाद इस गुफा की चर्चा नहीं हुई और फिर द्वापर युग में पांडवों द्वारा इस गुफा को फिर से ढूंढ लिया गया। द्वापर युग में पांडवो ने यहा भगवान शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। पौराणिक कथाओं के अनुसार कलियुग में मंदिर की खोज जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में की थी, जहां उन्होंने यहां तांबे का शिवलिंग स्थापित किया था। आज के समय में पाताल भुवानेश्वर गुफा सलानियो के लिए आकर्षण का केंद्र है। देश विदेश से कई सैलानी यह गुफा के दर्शन करने के लिए आते रहते है।

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पाताल भुवनेश्वर की मान्यता

हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया भगवान शिव ने पाताल भुवानेश्वर गुफा में रखा है। यहां मौजूद गणेश मूर्ती को आदिगणेश कहा जाता है। पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश कटे ‍‍शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है। इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।

क्या है मंदिर की गुफा के अंदर

इस गुफा में चार खंबे हैं जो युगों - सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों के खंबों में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन कलियुग का खंबा लंबाई में ज्यादा है। इस गुफा को लेकर एक और खास बात ये भी है कि यहां एक शिवलिंग है जो लगातार बढ़ रहा है, ऐसी मान्यता है कि जब ये शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब दुनिया खत्म हो जाएगी। गुफा में एक साथ चार धामों के दर्शन भी किए जा सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि गुफा में एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ देखे जा सकते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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इस मंदिर में जाने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर जाना पड़ता है। कुछ दूरी तक चलने के बाद ग्रिल गेट गेट आपको दिखेगा, जहां से पाताल भुवनेश्वर मंदिर की शुरुआत होती है। ये गुफा 90 फीट नीचे है, जहां बेहद ही पतले रास्ते से होकर इस मंदिर तक प्रवेश किया जाता है। जब आप थोड़ा आगे चलेंगे तो आपको यहां की चट्टानों की कलाकृति हाथी जैसी दिखाई देगी। फिर से आपको चट्टानों की कलाकृति देखने को मिलेगी जो नागों के राजा अधिशेष को दर्शाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अधिशेष ने अपने सिर पर दुनिया का भार संभाला हुआ है। पौराणिक कथाओं के आधार पर इस मंदिर में चार द्वार मौजूद हैं, जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब रावण की मृत्यु हुई थी तब पापद्वार बंद हो गया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था। गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। यह आकृति कामधेनु गाय का स्तन है कहा जाता था की देवताओं के समय मे इस स्तन में से दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।

इस गुफा के अन्दर आपको मुड़ी गर्दन वाला गौड़(हंस) एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है। यह माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी।

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पाताल भुवनेश्वर जाने का उतम समय

अगर आप रोमांच और धार्मिक प्रेमी हैं, तो अच्छा होगा आप इस मंदिर के दर्शन एक सही समय में करें। उत्तराखंड में इस रहस्यमयी गुफा की यात्रा करने के लिए मानसून का समय बिल्कुल भी सही नहीं है, आप यहां मार्च से जून के बीच दर्शन करने के लिए जा सकते हैं। अगर आपको ठंड में घूमना बेहद पसंद है तो ठंड में आप अक्टूबर से फरवरी के महीने में भी जा सकते हैं।

कैसे पहुंचें पाताल भुवनेश्वर


आप आसानी से इस जगह पर पहुंच सकते है। यह नई दिल्ली, लखनऊ और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे से टैक्सी और बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

रेलवे द्वारा

निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर रेलवे स्टेशन है, जो पाताल भुवनेश्वर से 154km दूर है।

हवाई जहाज से

टनकपुर में बसें और टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है, जो पाताल भुवनेश्वर से 224km दूर है।

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