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जिस खतरनाक बीमारी से हुआ वेटरन एक्टर मनोज कुमार का निधन, जानिए क्या है यह डिकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस

वेटरन एक्टर मनोज कुमार का निधन डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस और दिल की जटिलताओं के चलते हुआ। जानिए इस खतरनाक लिवर डिजीज के लक्षण, कारण और इससे जुड़ी गंभीर जटिलताओं के बारे में।

| Updated on: Fri, 04 Apr 2025 11:25:09

जिस खतरनाक बीमारी से हुआ वेटरन एक्टर मनोज कुमार का निधन, जानिए क्या है यह डिकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस

वेटरन एक्टर और 'भारत कुमार' के नाम से प्रसिद्ध मनोज कुमार का 87 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने 'पूरब और पश्चिम', 'उपकार', 'क्रांति' जैसी देशभक्ति से भरपूर फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। मनोज कुमार को हाल ही में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां दिल से जुड़ी गंभीर जटिलताओं के साथ-साथ डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस के चलते उनका निधन हो गया।

अस्पताल द्वारा जारी मेडिकल सर्टिफिकेट में बताया गया कि उनकी मौत का एक प्रमुख कारण डीकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस रहा, जो लिवर की बीमारी का एक उन्नत और खतरनाक चरण होता है। इस स्थिति में लिवर इस कदर क्षतिग्रस्त हो चुका होता है कि वह शरीर के लिए आवश्यक कार्य भी नहीं कर पाता। जहां कंपेंसेटेड सिरोसिस में लिवर कुछ हद तक अपनी भूमिका निभा पाता है, वहीं डीकंपेंसेटेड सिरोसिस के कारण शरीर में गंभीर समस्याएं जैसे पेट में पानी भरना, रक्तस्राव, मानसिक भ्रम, और किडनी फेलियर जैसी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं। यह बीमारी आमतौर पर लंबे समय तक हेपेटाइटिस, अत्यधिक शराब के सेवन या नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ जैसी स्थितियों के चलते होती है।

बीमारी के लक्षण और जोखिम

डिकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस, लिवर की गंभीर और उन्नत स्थिति होती है, जिसमें लिवर इतनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है कि वह शरीर के जरूरी कार्यों को ठीक से अंजाम नहीं दे पाता। इसके लक्षण कंपेंसेटेड सिरोसिस की तुलना में अधिक स्पष्ट और गंभीर होते हैं। मरीजों में आमतौर पर पीलिया (जॉन्डिस), पेट में तरल पदार्थ भरना (एसाइटिस), और मानसिक भ्रम या उलझन जैसी स्थिति (हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी) देखी जाती है। इसके अलावा रोगी को आसानी से चोट लगना या खून बहना, पैरों और टखनों में सूजन (एडिमा), अत्यधिक थकावट, भूख की कमी, वजन में गिरावट, त्वचा में खुजली, फटी हुई एसोफैगल वैरिकाज (खून की उल्टी) जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ये सभी लक्षण इस बात का संकेत होते हैं कि लिवर अब शरीर से टॉक्सिन्स को निकालने, तरल संतुलन बनाए रखने और जरूरी प्रोटीन बनाने जैसे कार्य करने में असमर्थ हो गया है।

रोग के जोखिम और जटिलताएं

डिकंपेंसेटेड सिरोसिस में संक्रमण और जटिलताओं का खतरा काफी बढ़ जाता है। यह स्थिति सीधे तौर पर लिवर फेलियर की ओर ले जा सकती है, जिसमें लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है। इस स्टेज में रोगियों को स्पॉन्टेनियस बैक्टीरियल पेरिटोनिटिस (पेट की परत में संक्रमण), हेपेटोरेनल सिंड्रोम (लिवर की विफलता के कारण किडनी फेल होना), और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (लिवर कैंसर) जैसी जानलेवा स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, रोगियों में इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है जिससे उन्हें बार-बार संक्रमण का खतरा बना रहता है। लंबे समय तक शराब का सेवन, अनियंत्रित या अनउपचारित हेपेटाइटिस B या C, मोटापा, डायबिटीज, और खराब पोषण जैसी स्थितियां इस रोग की संभावना को बढ़ा सकती हैं। साथ ही, दवाओं का दुरुपयोग, खासकर पेनकिलर्स या अन्य लिवर को प्रभावित करने वाली दवाएं, भी लिवर के क्षय में भूमिका निभाती हैं। अगर इस बीमारी का समय पर निदान और इलाज न किया जाए तो यह न केवल रोगी की जीवन गुणवत्ता को बेहद खराब कर देती है बल्कि मृत्यु दर को भी बहुत अधिक बढ़ा देती है। इसलिए लक्षणों को नजरअंदाज न करते हुए समय रहते जांच कराना और उचित इलाज शुरू करना बेहद जरूरी होता है।

इलाज: लक्षण प्रबंधन और जीवन की गुणवत्ता में सुधार

डिकंपेंसेटेड लिवर सिरोसिस एक ऐसी स्थिति है जो आमतौर पर अपरिवर्तनीय (irreversible) होती है, यानी इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। हालांकि, इसका इलाज इस बात पर केंद्रित होता है कि लक्षणों को कैसे नियंत्रित किया जाए और लिवर को होने वाले आगे के नुकसान को कैसे रोका जाए। इस बीमारी के प्रबंधन में दवाओं, जीवनशैली में बदलाव, और गंभीर मामलों में लिवर ट्रांसप्लांट जैसी प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं।

डॉक्टर आमतौर पर एसाइटिस (पेट में तरल भराव) के लिए ड्यूरेटिक्स (diuretics), जैसे स्पाइरोनोलैक्टोन या फ्यूरोसेमाइड देते हैं, ताकि शरीर में जमा अतिरिक्त तरल को बाहर निकाला जा सके। मानसिक भ्रम या एन्सेफैलोपैथी के मामलों में लैक्टुलोज या रिफैक्सिमिन जैसी दवाएं दी जाती हैं ताकि खून में मौजूद टॉक्सिन्स को घटाया जा सके। संक्रमण से बचाव या इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स का प्रयोग किया जाता है।

इलाज के साथ-साथ जीवनशैली में बदलाव भी बहुत जरूरी होता है। शराब का पूरी तरह परहेज, पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन, नमक की मात्रा कम करना, और डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं का नियमित सेवन रोग की प्रगति को धीमा करने में सहायक होता है। मरीजों को नियमित रूप से ब्लड टेस्ट, इमेजिंग और अन्य डायग्नोस्टिक जांचें कराते रहनी चाहिए ताकि किसी भी नई जटिलता का समय रहते पता चल सके।

गंभीर या अंतिम चरण में जब लिवर पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, तब लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र स्थायी विकल्प बनता है। हालांकि, यह निर्णय मरीज की संपूर्ण स्वास्थ्य स्थिति, उम्र, और अन्य मेडिकल कंडीशंस को ध्यान में रखकर लिया जाता है।

समय पर मेडिकल केयर, नियमित मॉनिटरिंग और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करके न केवल मरीज की जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जा सकता है, बल्कि उसकी जीवन प्रत्याशा (survival rate) को भी बढ़ाया जा सकता है।

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