उंगली डालना और नाक के बालों को नोचना बन सकता है सजा, हो सकती है दिमाग से जुड़ी ये बीमारी

By: Priyanka Maheshwari Wed, 09 Nov 2022 2:38:10

उंगली डालना और नाक के बालों को नोचना बन सकता है सजा, हो सकती है दिमाग से जुड़ी ये बीमारी

उंगली डालना और नाक के बालों को तोड़ना एक गंदी आदत है। जो चाहकर भी कंट्रोल नहीं हो पाती। लेकिन ऐसा करना सेहत के लिए बुरा साबित हो सकता है। दरअसल, एक रिसर्च के मुताबिक, नाक में उंगली डालना या नाक के बालों को नोचना दिमागी बीमारी अल्जाइमर और डिमेंशिया की वजह बन सकता है। जिसमें दिमाग सिकुड़ने लगता है। क्लेम सेंटर फॉर न्यूरोबायोलॉजी और स्टेम सेल रिसर्च सेंटर में हुए रिसर्च के मुताबिक, नाक में उंगली डालने से अल्जाइमर्स डिजीज और डिमेंशिया जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि, हमारी नाक में मौजूद ओलफेक्ट्री नर्व दिमाग से सीधी जुड़ी होती है और वायरस व बैक्टीरिया इस रास्ते से होते हुए सीधे दिमाग की कोशिकाओं तक पहुंच जाते हैं। शोध के प्रमुख प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन ने बताया कि यह अध्ययन चूहों पर किया गया था। जिसमें देखा गया कि अल्जाइमर और डिमेंशिया का कारण बनने वाला बैक्टीरिया नाक की नली से होते हुए चूहों के अंदरुनी दिमाग में पहुंच जाता है और फिर अल्जाइमर के लक्षण जैसे संकेत मिलने लगते हैं।

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कैसे होता है अल्जाइमर और डिमेंशिया

अल्जाइमर रोग कैसे होता है?


अल्जाइमर और डिमेंशिया रोग एक नहीं हैं। अल्जाइमर रोग में मस्तिष्क की कोशिकाएं खुद ही बनती और खत्म होने लगती हैं, जिससे याददाश्त और मानसिक कार्यों में लगातार गिरावट आती है। अल्जाइमर का कारण बनने वाले बैक्टीरिया का नाम क्लामाइडिया न्यूमेनिए (Chlamydia pneumoniae) है, जो निमोनिया का कारण भी बनता है। यह बैक्टीरिया नाक की नली से होते हुए नर्वस सिस्टम तक पहुंचता है। जिसकी प्रतिक्रिया में दिमाग की सेल्स एमिलॉएड बीटा प्रोटीन का उत्पादन करती हैं। जो कि अल्जाइमर रोग विकसित होने का प्रमुख कारण है। डिमेंशिया व अल्जाइमर के मरीजों के मस्तिष्क में यह प्रोटीन पाया जाता है। मायोक्लीनिक के मुताबिक, अल्जाइमर एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें धीरे-धीरे दिमाग सिकुड़ने लगता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। इस बीमारी के कारण मस्तिष्क में मौजूद हिपोकैंपस हिस्सा सबसे पहले प्रभावित होता है, जो कि सीखने और याद रखने का काम करता है। एक अनुमान के मुताबिक, करीब 40 लाख भारतीयों को किसी ना किसी तरह का डिमेंशिया है।

डिमेंशिया रोग क्या है?

डिमेंशिया एक समूह है, जिसमें विभिन्न बीमारियों के कारण दिमाग को नुकसान पहुंचने पर दिखने वाले लक्षणों को शामिल किया जाता है। अल्जाइमर के लक्षण भी डिमेंशिया के अंदर ही आते हैं।

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अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण

NHS के मुताबिक, अल्जाइमर रोग की कई स्टेज होती हैं।


अल्जाइमर रोग के शुरुआती चरण में रोगी स्वतंत्र रूप से ड्राइव, अन्य काम और सामाजिक गतिविधयां कर सकता है। इसके बावजूद, रोगी को यह महसूस हो सकता है कि उसकी याददाश्त में समस्याएं आ रही हैं, वह परिचित शब्दों को भूल रहा है या रोज़ की वस्तुओं का स्थान भूल रहा है।

- चीज़ों को खो देना और वापस ढूंढने में असमर्थता।
- रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने वाली याददाश्त की समस्याएं।
- नियोजन या समस्या सुलझाने में मुश्किलें आना।
- सामान्य दैनिक कार्यों को पूरा करने में अधिक समय लेना।
- समय का ध्यान न रहना।
- दूरी निर्धारित करने और रंगों में अंतर करने में परेशानी होना।
- बातचीत करने में कठिनाई।
- खराब अनुमान के कारण गलत फैसले लेना।
- सामाजिक गतिविधियों से अलगाव।
- मनोदशा व व्यक्तित्व में परिवर्तन और चिंता में बढ़ोतरी।

अल्जाइमर के मध्य चरण के लक्षण

अल्जाइमर रोग का मध्य चरण आमतौर पर सबसे लंबा होता है और कई सालों तक रह सकता है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, अल्जाइमर से ग्रस्त व्यक्ति को ज़्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। अल्जाइमर से ग्रस्त व्यक्ति अक्सर शब्दों में भ्रमित हो जाता है और अजीब व्यवहार कर सकता है।

- भूलने की बीमारी गंभीर हो जाना, जैसे दिन का समय भूल जाना
- घटनाओं के बारे में या अपना व्यक्तिगत इतिहास भूल जाना
- किसी काम को बार-बार करना
- बोलने या समझने में समस्या
- नींद ना आना
- मूड में बदलाव
- देखने, सुनने और सूंघने में दिक्कत होना
- मौसम या किसी अवसर के लिए उचित कपड़े चुनने में मदद की आवश्यकता
- नींद आने के समय में परिवर्तन, जैसे दिन के दौरान सोना और रात में बेचैन रहना
- भ्रम में रहना

अल्जाइमर का अंतिम चरण

अल्जाइमर के अंतिम चरण में व्यक्ति अपने आसपास के पर्यावरण पर प्रतिक्रिया करने, वार्तालाप जारी रखने और अंत में, गतिविधिओं को नियंत्रित करने की क्षमता खो देता है।

- मूत्राशय और आंत्र नियंत्रण की कमी
- वज़न घटना
- दौरे पड़ना
- त्वचा के संक्रमण
- कराहना, आहें भरना या घुरघुराना
- निगलने में कठिनाई

इंसानों पर करनी होगी रिसर्च

प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन ने बताया कि चूहों पर किया गया ये शोध इंसानों के लिए बड़े खतरे की तरफ संकेत का रहा है लेकिन, अभी यह देखना बाकी है कि क्या चूहों की तरह इंसानों में भी यह बैक्टीरिया इसी तरह दिमाग तक पहुंचता है या नहीं। इसके लिए हम बहुत जल्द नया शोध करेंगे ताकि इससे जुड़ी पुख्ता जानकारी हमें मिल सके।

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