अमिताभ बच्चन की चार फिल्में एक ही महीने में प्रदर्शित होना और सभी का सिनेमाघरों में सफलता पाना न केवल उनके स्टारडम की ताकत को दिखाता है, बल्कि हिंदी सिनेमा के इतिहास का एक अविस्मरणीय अध्याय भी बन जाता है। अप्रैल और मई 1978 का महीना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए खास था। इस दौरान अमिताभ बच्चन की चार फिल्में—'कसमें वादे', 'बेशर्म', 'त्रिशूल' और 'डॉन'—लगातार चार हफ्तों में रिलीज़ हुईं और दर्शकों के दिलो-दिमाग पर छा गईं।
वर्ष 1978 में अप्रैल-मई में जहाँ अमिताभ की इन 4 फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अपना दबदबा बनाए, वहीं 1978 में दीपावली के मौके पर 27 अक्टूबर को प्रदर्शित हुई निर्माता निर्देशक प्रकाश मेहरा की मुकद्दर का सिकन्दर ने अमिताभ बच्चन को फिल्म उद्योग का महानायक बनाने की शुरूआत की। यह वो फिल्म थी जिसने सत्तर के दशक में बॉबी और शोले के बाद सर्वाधिक कमाई वाली फिल्मों में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। इस फिल्म के बारे में अन्य जानकारी हमने पाठकों को आलेख के अन्त में दी है।
आइए, इन चारों फिल्मों की विशेषताओं, उनके कथानक और उस समय रिलीज़ हुई अन्य फिल्मों की तुलना के साथ इस ऐतिहासिक घटना को विस्तार से समझते हैं।
कसमें वादे
20 अप्रैल 1978 को प्रदर्शित हुई रमेश बहल निर्देशित 'कसमें वादे' एक ऐसी फिल्म रही जिसने अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता को नए शिखर पर पहुँचाने की शुरुआत की। इस फिल्म में अमिताभ ने दोहरी भूमिका निभाई थी—एक आदर्शवादी कॉलेज प्रोफेसर और दूसरी, एक क्रूर और अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति शंकर, जिसकी शक्ल उस प्रोफेसर से मिलती है। कहानी प्रोफेसर की हत्या के बाद शुरू होती है जब शंकर, अपराध के दलदल से बाहर निकलकर उसी प्रोफेसर के परिवार की रक्षा करता है। फिल्म में राखी, रणधीर कपूर, नीतू सिंह और अमजद खान जैसे सशक्त कलाकारों की मौजूदगी थी, और इसका संगीत भी उस समय बहुत लोकप्रिय हुआ। 'कसमें वादे' की सफलता ने अमिताभ की बहुपरंगी अभिनय क्षमताओं को फिर से रेखांकित किया।
उस सप्ताह रिलीज़ की अन्य फिल्मों में कोई बड़ा सितारा नहीं था, जिससे 'कसमें वादे' को एकल प्रभुत्व का लाभ मिला और दर्शकों का ध्यान पूरी तरह इस फिल्म पर केंद्रित रहा।
बेशर्म
'कसमें वादे' की रिलीज़ के ठीक एक सप्ताह बाद, 28 अप्रैल 1978 को 'बेशर्म' प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन देवेन वर्मा ने किया था और इसमें अमिताभ बच्चन के साथ शर्मिला टैगोर और अमजद खान ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाई थीं। 'बेशर्म' एक अपराध-थ्रिलर थी जिसमें एक पुलिस अधिकारी अपने पिता के हत्यारे के खिलाफ लड़ाई लड़ता है। फिल्म की कथा में भावनात्मक तत्व, बदले की भावना और रोमांच का मिश्रण था। हालांकि इस फिल्म को 'ब्लॉकबस्टर' की श्रेणी में नहीं रखा गया, लेकिन इसकी कहानी और प्रदर्शन ने दर्शकों का ध्यान जरूर खींचा और बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म औसत से ऊपर प्रदर्शन करने में सफल रही।
'बेशर्म' के साथ उस सप्ताह 'गमन' जैसी फिल्में भी चर्चा में थीं, जो समानांतर सिनेमा की तरफ इशारा करती थीं, लेकिन व्यावसायिक स्तर पर 'बेशर्म' को अधिक शो और दर्शक मिले।
त्रिशूल
5 मई 1978 को प्रदर्शित हुई 'त्रिशूल' उस साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी। यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित इस फिल्म की पटकथा सलीम-जावेद की जोड़ी ने लिखी थी, जिसने अमिताभ बच्चन को 'एंग्री यंग मैन' की छवि में और अधिक मजबूती प्रदान की। फिल्म की कहानी एक बेटे के अपने पिता से बदले की भावना पर आधारित थी, जिसने उसकी मां को समाज में अपमानित किया था। इस फिल्म में शशि कपूर, संजीव कुमार, हेमा मालिनी, राखी और वहिदा रहमान जैसे मंझे हुए कलाकारों ने अभिनय किया। अमिताभ बच्चन की भूमिका में आक्रोश, भावनात्मक गहराई और दृढ़ संकल्प का ऐसा मेल था जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।
'त्रिशूल' के समय प्रदर्शित फिल्मों में पारिवारिक फिल्में थीं, लेकिन 'त्रिशूल' की सामाजिक और पारिवारिक ड्रामा की तीव्रता ने उसे अन्य फिल्मों से अलग खड़ा कर दिया।
डॉन
12 मई 1978 को आई 'डॉन' एक कल्ट क्लासिक फिल्म बन गई। यह फिल्म अपने समय से आगे की सोच लिए थी। चंद्र बरोट के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने डॉन और उसके हमशक्ल विजय की दोहरी भूमिका निभाई थी। फिल्म में अंडरवर्ल्ड, बदला, पहचान की उलझन और पुलिसिया जाल का जटिल जाल था, जिसे बड़ी खूबी से पेश किया गया। 'डॉन' का संगीत, खासकर "खइके पान बनारस वाला", "मैं हूँ डॉन" और "ये मेरा दिल" जैसे गीत उस समय की चार्टबस्टर लिस्ट में टॉप पर रहे। फिल्म में जीनत अमान, इफ्तेखार, प्रण, ओम शिवपुरी और हेलन जैसे चर्चित चेहरों ने भी दमदार अभिनय किया।
प्रदर्शन के पहले वीकेंड असफल मानी गई थी
डॉन के साथ वही घटनाक्रम हुआ था जो कभी 1975 में प्रदर्शित हुई शोले के साथ हुआ था। प्रदर्शन के पहले तीन दिन में फिल्म को असफल घोषित कर दिया गया था। लेकिन चौथे दिन सोमवार से फिल्म ने पलटा खाया। प्रदर्शन के बाद फिल्म के गीत खाइए के पान बनारस वाला ने दर्शकों को इतना प्रभावित किया कि वो सिनेमाघरों में सिर्फ इस गीत के कारण आने लगे। धीरे-धीरे दर्शकों को अमिताभ के संवाद और अभिनय ने जबरदस्त प्रभावित किया और नतीजा फिल्म ने सिनेमाघरों में 100 सप्ताह का चलन पूरा किया।
'डॉन' ने अपनी शैली, गति और अमिताभ की दोहरी भूमिका के दम पर सभी पर भारी पड़ते हुए साल की तीसरी सबसे बड़ी हिट का तमगा हासिल किया।
वर्ष 1978: अमिताभ युग की घोषणा
इन चार हफ्तों में अमिताभ बच्चन की चार फिल्में लगातार रिलीज़ हुईं और कम से कम तीन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर लंबे समय तक टिके रहने का रिकॉर्ड बनाया। 'कसमें वादे' 50 हफ्तों तक, 'त्रिशूल' 75 हफ्तों तक और 'डॉन' 100 हफ्तों से भी अधिक समय तक कुछ सिनेमाघरों में चली। इसने न केवल अमिताभ को सुपरस्टार बनाया बल्कि यह भी सिद्ध किया कि एक अभिनेता के नाम पर दर्शक सिनेमाघरों तक खिंचे चले आते हैं।
मुकद्दर का सिकन्दर : वो फिल्म जिसने अमिताभ को बनाया महानायक
मुकद्दर का सिकंदर 1978 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली बॉलीवुड फ़िल्म थी और अब तक की सबसे बड़ी दिवाली ब्लॉकबस्टर थी।यह शोले और बॉबी के बाद दशक की तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फ़िल्म भी थी । मुकद्दर का सिकंदर सोवियत संघ में भी एक विदेशी ब्लॉकबस्टर थी।
26वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में , इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म सहित नौ फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन अफसोस उसे किसी भी श्रेणी में जीत नहीं मिली। इसे तेलुगु फिल्म प्रेमा तरंगलु (1980) और तमिल में अमरा काव्यम (1981) के रूप में बनाया गया था। यह फिल्म आखिरी थी जिसमें अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना एक साथ दिखाई दिए थे।
मुकद्दर का सिकन्दर अमिताभ बच्चन और प्रकाश मेहरा द्वारा निर्मित कुल 9 फिल्मों में से पाँचवीं फिल्म थी। इससे पहले वे अमिताभ बच्चन को लेकर जंजीर, हेराफेरी, खून पसीना जैसी फिल्में बना चुके थे। मुकद्दर का सिकन्दर के बाद प्रकाश मेहरा ने अमिताभ बच्चन के साथ लावारिस, नमक हलाल, शराबी और जादूगर नामक फिल्मों का निर्माण किया। इनमें एक मात्र जादूगर ऐसी फिल्म रही जो बॉक्स ऑफिस पर असफल साबित हुई थी। शेष सभी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए रिकॉर्ड स्थापित किए थे।
प्रतिस्पर्धा को लेकर कोई शिकायत नहीं
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अद्भुत बात यह थी कि न तो किसी फिल्म के निर्माता-निर्देशक में कोई विरोध था, न किसी ने थिएटर को लेकर झगड़ा किया। न किसी को इस बात की शिकायत थी कि अमिताभ की चार फिल्में लगातार आ रही हैं। उस समय सिनेमा व्यवसाय को प्रतिस्पर्धा की बजाय सामूहिक उत्सव के रूप में देखा जाता था।
यहां तक कि दर्शक भी हर शुक्रवार को उत्साह से नई फिल्म देखने जाते थे और यह अपेक्षा रखते थे कि उन्हें कुछ नया, कुछ रोमांचक मिलेगा — और अमिताभ बच्चन ने उस अपेक्षा को बार-बार पूरा किया।
वह महीना जब एक अभिनेता ने बना दिया इतिहास
अप्रैल और मई 1978 वह समय था जब अमिताभ बच्चन न केवल फिल्म स्टार थे, बल्कि वे अपने आप में एक संस्था बन चुके थे। चार हफ्तों में चार फिल्में और उनमें से तीन गोल्डन जुबली या उससे अधिक तक चलना कोई सामान्य बात नहीं थी। उन्होंने यह साबित कर दिया कि सही समय, दमदार कहानी, और एक करिश्माई अभिनेता मिलकर सिनेमा को इतिहास बना सकते हैं।
आज के युग में ऐसा दोहराया जाना लगभग असंभव है—जहां मार्केटिंग, विरोध, सोशल मीडिया और सिनेमाघरों की राजनीति सब कुछ प्रभावित करते हैं। लेकिन 1978 की उस गर्मियों में एक सितारे ने समय को थाम लिया था—और उसका नाम था अमिताभ बच्चन।