गुप्त नवरात्रि 2025 की शुरुआत 26 जून, गुरुवार को आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा तिथि से हो रही है। यह दिन माँ काली की उपासना के लिए विशेष रूप से समर्पित माना जाता है। देवी काली दस महाविद्याओं की श्रेणी में प्रथम स्थान पर हैं और इन्हें महाशक्ति की उग्रतम अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है। गुप्त नवरात्रि में इनकी आराधना साधकों द्वारा गुप्त रूप से की जाती है, जिसका उद्देश्य आत्मिक शक्ति, भय का नाश और भीतर की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करना होता है।
माँ काली का स्वरूप और प्रतीकात्मकता
माँ काली को समय, मृत्यु और अज्ञानता के विनाश की देवी कहा गया है। उनका काला रंग इस बात का प्रतीक है कि वह उस परब्रह्म तत्व का स्वरूप हैं जो सभी रूपों से परे है। उनके गले में कटे हुए सिरों की माला और हाथों में खड़ग व त्रिशूल उनके उग्र स्वभाव को दर्शाते हैं। लेकिन यह उग्रता संसार की नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करने की प्रतीक है।
गुप्त नवरात्रि में माँ काली की उपासना न केवल साधकों को आध्यात्मिक बल देती है, बल्कि आंतरिक शुद्धि और साहस की भावना को भी प्रबल करती है। माँ काली की साधना को विशेष मंत्रों, ध्यान और ध्यानयुक्त भावना से किया जाता है, ताकि साधक के भीतर की भय, लोभ, मोह जैसी वृत्तियाँ शांत हो सकें।
गुप्त नवरात्रि में माँ काली की विशेष भूमिका
गुप्त नवरात्रि का प्रथम दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूरे साधना-पथ की नींव रखता है। माँ काली की उपासना से साधक में एकाग्रता और तप की शक्ति उत्पन्न होती है। पुराणों और तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार, गुप्त नवरात्रि के पहले दिन माँ काली के ध्यान और मंत्रजप से साधक को मानसिक, आध्यात्मिक और आत्मिक स्थिरता प्राप्त होती है, जो पूरे नौ दिन की साधना के लिए अनिवार्य मानी जाती है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
इस बार की गुप्त नवरात्रि में प्रतिपदा तिथि सर्वार्थ सिद्धि योग में आरंभ हो रही है। यह योग सभी शुभ कार्यों की सिद्धि के लिए उत्तम माना गया है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा की स्थिति भी सकारात्मक है, जिससे पूजा-पाठ और साधना की ऊर्जा कई गुना प्रभावशाली मानी जा रही है।
गुप्त नवरात्रि का पहला दिन माँ काली की साधना के लिए अत्यंत पवित्र और शक्ति देने वाला समय होता है। यह वह क्षण है जब साधक बाहरी दुनिया से हटकर अपने भीतर की ऊर्जा को जागृत करने का संकल्प लेता है। माँ काली की उपासना के माध्यम से न केवल भय और बाधाओं का नाश होता है, बल्कि साधक को निडर और प्रबुद्ध जीवन जीने की दिशा भी मिलती है।
डिस्क्लेमर: यह लेख प्राचीन शास्त्रों, धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी समाज में व्याप्त सांस्कृतिक विश्वासों और धार्मिक परंपराओं के अनुसार प्रस्तुत की गई है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार की अंधश्रद्धा को बढ़ावा देना नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी आध्यात्मिक या तांत्रिक क्रिया को करने से पहले योग्य जानकार या आचार्य से मार्गदर्शन अवश्य लें।