रमजान में मुस्लिम भी अल्लाह की इबादत करते हैं इस शिवलिंग पर, जिसे महमूद गजनवी नहीं तोड़ पाया

By: Ankur Tue, 21 Aug 2018 5:43:46

रमजान में मुस्लिम भी अल्लाह की इबादत करते हैं इस शिवलिंग पर, जिसे महमूद गजनवी नहीं तोड़ पाया

हमारा देश कई मुस्लिम आक्रान्ताओं के अधीन रहा है उसमें से एक महमूद गजनवी भी था। जिसने हर बार के आक्रमण में यहां के हिन्दू, बौद्ध और जैन मंदिरों को ध्वस्त कर उनको लुटा था। मंदिर तोड़ने के इसी सिलसिले में उसे कई जगह चमत्कारों का सामना करना पड़ा। ऐसी ही एक जगह थी सरया तिवारी। जहां उसने मंदिर को ध्वस्त कर शिवलिंग को भी तोड़ने का प्रयास किया। लेकिन विफल रहा। यह भगवान शिव का ही चमत्कार था और इसलिए ही भगवान शिव को पूजा जाता हैं। तो आइये हम जानते है इस मंदिर के बारे में।

यह मंदिर गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्बे के पास के गांव सरया तिवारी में स्थित झारखंडी महादेव के नाम से जाना जाता हैं। कहते हैं कि शिवलिंग पर जहां भी कुदाल आदि चलाई गई, तो वहां से खून की धार फूट पड़ी। फिर उसने उस शिवलिंग को भूमि पर से उखाड़ने का प्रयास किया लेकिन वह शिवलिंग भूमि में अंदर तक न मालूम कहां तक था। वह उस प्रयास में भी असफल हो गया। तब उसने उस शिवलिंग पर अरबी में कलमा लिखवाया दिया ताकि हिन्दू इस शिवलिंग की पूजा करना छोड़ दें। लेकिन वर्तमान में इस शिवलिंग की हिन्दू सहित मुस्लिम भी पूजा करते हैं, क्योंकि इस पर कलमा लिखा हुआ है।

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स्थानीय लोगों के अनुसार इस पर अरबी या उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखा हुआ है। वर्तमान में यह मंदिर सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बना हुआ है। यहां के स्थानीय मुस्लिमों के लिए अब यह शिवलिंग पवित्र है। रमजान में मुस्लिम भाई भी यहां पर आकर अल्लाह की इबादत करते हैं।
इस मंदिर के शिवलिंग को नीलकंठ महादेव कहते हैं। इसका एक नाम झारखंडी शिवलिंग भी है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह शिवलिंग हजारों वर्षों पुराना है और यह स्वयंभू है। स्वयंभू अर्थात इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है और यह स्वयं ही प्रकट हुआ है। यहां दूर-दूर से लोग मन्नत मांगने आते हैं। इस मंदिर की एक खासियत यह है कि यहां मंदिर की छत नहीं है। कई बार छत बनाने का प्रयास किया गया लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया।

यहां एक पवित्र जलाशय भी है जिसे 'पोखर' कहा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए लोग यहां पर 5 मंगलवार और रविवार को स्नान करते हैं।

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