अयोध्या विवाद पर सुनवाई 3 महीने के लिए टली, सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए 15 अगस्त तक का वक्त दिया
By: Pinki Fri, 10 May 2019 12:10:37
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अयोध्या मामले में सुनवाई करते हुए फैसला 15 अगस्त तक टाल दिया है। 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज एफ एम कलीफुल्ला, धर्म गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचु को मध्यस्थ नियुक्त किया गया था। कोर्ट ने सभी पक्षों से बात कर मसले का सर्वमान्य हल निकालने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले की सुनवाई तीन महीनों तक टाल दी है। अयोध्या मामले पर सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच में सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए बोबड़े, एस ए नजीर, अशोक भूषण और डीवाय चंद्रचूड़ मौजूद रहे। पैनल ने कोर्ट में दिए अपने याचिका में कहा था कि काम में प्रोग्रेस हुआ है लेकिन उन्हें थोड़ा और मोहलत की जरूरत है। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब उन्हें 15 अगस्त तक का समय दिया है।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि मध्यस्थ परिणाम को लेकर आशावान हैं और 15 अगस्त तक का समय मांग रहे हैं, तो समय देने में नुकसान क्या है? यह मामला कई सालों से लंबित हैं। हम समय क्यों न दें?’’ हिंदू एवं मुस्लिम पक्षों के लिए पेश हुए वकीलों ने जारी मध्यस्थता प्रक्रिया पर भरोसा जताया और कहा कि वे प्रक्रिया में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
A five judge Constitution bench of the Supreme Court starts hearing the #Ayodhya matter. The five-judge bench headed by Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi includes Justices SA Bobde, SA Nazeer, Ashok Bhushan and DY Chandrachud. pic.twitter.com/ccEkNeJfVh
— ANI (@ANI) May 10, 2019
जानकारी के मुताबिक मध्यस्थता कमेटी ने जजों को रिपोर्ट सौंपी। बता दें कि पिछली सुनवाई में, शीर्ष अदालत ने मामले को राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानते हुए एक पैनल का गठन किया था। तीन सदस्यों के इस मध्यस्थता पैनल में रिटायर्ड जस्टिस एफ एम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू हैं।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों वाले पैनल को आठ हफ्ते का समय दिया था। अदालत के इस आदेश के बाद मध्यस्थ आठ हफ्तों तक अयोध्या में रुक कर संबंधित पक्षों के विचारों को सुना और उसके आधार पर अंतरिम रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपा।
सिर्फ निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में था
निर्मोही अखाड़ा को छोड़कर रामलला विराजमान और अन्य हिंदू पक्षकारों ने मामला मध्यस्थता के लिए भेजने का विरोध किया था। मुस्लिम पक्षकार और निर्मोही अखाड़ा ने इस पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामला मध्यस्थता को भेज दिया था।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 याचिकाएं दायर हुई हैं। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए।