पीरामल एम्पायर, 98 साल, 50 रुपए से हुई थी शुरुआत, आज है 67 हजार Cr का

By: Pinki Mon, 07 May 2018 08:21:26

पीरामल एम्पायर, 98 साल, 50 रुपए से हुई थी शुरुआत, आज है 67 हजार Cr का

भारत के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे आकाश अंबानी की सगाई ने हाल ही में खूब सुर्खियां बटोरी। अब एक बार फिर इस परिवार में शादी की खबरें आ रही हैं। मुकेश अंबानी की बेटी ईशा अंबानी की शादी पीरामल ग्रुप के फाउंडर अजय पीरामल के बेटे आनंद पीरामल से होगी। शादी की तारीख अभी तय नहीं हुई है लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि दिसंबर में ईशा दुल्हन बनेंगी।

आनंद यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया से इकोनॉमिक्स में स्नातक हैं। इसके अलावा उन्होंने हार्वड बिजनेस स्कूल से एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स की है। आनंद हाल ही में अपने दो स्टार्टअप को लेकर चर्चा में आए थे। उनका पहला स्टार्टअप पीरामल ई-हेल्थ है, जो आज 40,000 से ज्यादा रोगियों का इलाज कर रही है। इसके अलावा दूसरा स्टार्टअप है रिएल्टी। यह एक रियल एस्टेट का स्टार्टअप है।

अंबानी और पीरामल परिवार की दोस्ती चार दशक पुरानी है जो कि अब रिश्तेदारी में बदलने जा रही है। 67 हजार करोड़ से ज्यादा के पीरामल बिजनेस एम्पायर की शुरुआत 1920 में हुई थी। जब पहले वर्ल्ड वॉर के बाद अजय पीरामल के दादा सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया 50 रुपए लेकर राजस्थान के बागड़ से बॉम्बे आए थे। आईए जानते हैं कि 98 साल पहले 50 रुपए में शुरू हुआ पीरामल एम्पायर कैसे 67 हजार करोड़ का हो गया

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आनंद के परदादा ने 50 रुपए से शुरू किया बिजनेस

1920 : अजय पीरामल के दादा सेठ पीरामल चतुर्भुज मखारिया 50 रु लेकर राजस्थान के बागड़ से बॉम्बे आए और कॉटन, सिल्क, सिल्वर जैसी कमोडिटी का लोकल ट्रेड स्टार्ट किया।

1935: मखारिया ने उस समय के बिजनेसमैन गोकुलदास से उनकी कॉटन मिल खरीदी। उस समय ये मिल देश की सबसे पुरानी और पहली रजिस्टर्ड कॉटन मिल थी।

आनंद के दादा ने संभाली कमान

1958: सेठ मखारिया की डेथ के बाद बिजनेस की जिम्मेदारी अजय पीरामल के पिता गोपीकृष्ण के कंधे पर आ जाती है।

1962: गोपीकृष्ण 1 करोड़ की मॉर्डन स्पीनिंग यूनिट लगाते हैं। दूसरी कॉटन मिल का अधिग्रहण होता है।

1970 के दशक में: कंपनी के फाउंडर और दादा के सम्मान में बेटे ने अपना सरनेम मखारिया से बदलकर पीरामल कर लिया। इस दिन से अजय के पिता गोपीकृष्ण मखारिया से गोपीकृष्ण पीरामल हो गए। यही वो समय था जब पिता के बिजनेस में अजय पीरामल ने मदद करना शुरू किया।

70 के दशक में: बिजनेस को आगे बढ़ाते हुए गोपीकृष्ण ने पहले VIP इंडस्ट्रीज और फिर मिरिंडा टूल्स कंपनी का अधिग्रहण किया।

आनंद के पिता अजय ने बिजनेस किया ज्वॉइन

1977: 22 साल की उम्र में अजय ने जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट से एमबीए किया। फिर अपने पिता के टेक्सटाइल बिजनेस को पूरी तरह से ज्वॉइन कर लिया।

1979: अजय के पिता गोपीकृष्ण की न्यूयॉर्क में डेथ हो जाती है। कुछ समय बड़े भाई दिलीप ने फैमिली बिजनेस का बंटवारा कर लिया।

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1980: बंटवारे के बाद अजय के खाते में टेक्सटाइल बिजनेस और मिरिंडा टूल्स कंपनी ही रह जाती है। बंटवारे के 16 दिन बाद ही मुंबई की सभी टेक्सटाइल मिल्स को जबरदस्ती बंद करा दिया गया। ऐसा उस समय कई साल चले दत्ता सामंत स्ट्राइक के चलlते हुए था।

1982: अजय के छोटे भाई की कैंसर से मौत हो जाती है। इस समय तक अजय के बिजनेस की हालत खराब हो चुकी थी। परिवार में वो अकेले पड़ गए थे। इन सबके बाद भी 27 साल के अजय ने हिम्मत नहीं हारी।

1984: गुजरात ग्लास लिमिटेड कंपनी खरीदी। 29 की उम्र में अजय इसके चेयरमैन बने। कंपनी फॉर्मा प्रोडक्ट के लिए ग्लास मैन्युफैक्चर करती थी।

1984: इस समय तक अजय ने इंडिया में फॉर्मा सेक्टर का बूम आने का अनुमान लगा लिया था। इसी के चलते उन्होंने टेक्सटाइल से निकलकर फॉर्मा बिजनेस में एंटर होने का फैसला लिया।

1988: 6 करोड़ में ऑस्ट्रेलियन MNC निकोलस लैबोरेटरीज कंपनी खरीदी।

1990- गुजरात ग्लास को ग्रुप कंपनी निकोलस पीरामल इंडिया में मर्ज कर दिया गया।

1991- मध्य प्रदेश के पीथमपुर में कंपनी ने प्लांट डाला।

1993- अमेरिकी कंपनी एलेरगन के साथ बिजनेस ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट किया। इस समय तक अजय कंपनियों के मर्जर और ज्वाइंट वेंचर के एक्सपर्ट से हो गए थे।

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1994- डेंटल केयर प्रोडक्ट्स के लिए फ्रांस की कंपनी सेटेलेक से एग्रीमेंट साइन किया।

1995- हैदराबाद की सुमित्रा फॉर्मा कंपनी को निकोलस पीरामल इंडिया में मिला लिया।

1996- जर्मन कंपनी Boehringer Mannheim की इंडियन यूनिट को खरीदा।

2000- फ्रेंच कंपनी Rhone Poulenc की इंडिया यूनिट को 236 करोड़ में खरीदा। ये उस समय तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण था

इसके बाद तो जैसे अजय ने कंपनियों के अधिग्रहण का सिलसिला ही शुरू कर दिया था। इस समय तक आते-आते उन्हें मर्जर किंग भी कहा जाने लगा था।

2001: पीरामल लाइफ साइंस लिमिटेड का फॉर्मेशन हुआ।

2002 में ICI फार्मा खरीदी। 2003 में साराभाई पीरामल और ग्लोबल बल्क ड्रग्स का अधिग्रहण किया। 2005 में 84 करोड़ में अमेरिकी फर्म द ग्लास ग्रुप का एक हिस्सा खरीदा। 2006 में यूके की Pfizer's Morpeth में अधिग्रहण किया।

आनंद पीरामल की एंट्री

2005- बेटे आनंद ने पीरामल लाइफ साइंस लिमिटेड में बतौर डायरेक्टर ज्वाइन किया। इससे पहले आनंद अपने स्टार्ट अप Piramal e Swasthya को देख रहे थे।

2006- S&P ने पीरामल हेल्थकेयर को ग्लोबल लीडर के तौर लिस्टेड किया।

2008- निकोलस पीरामल इंडिया कंपनी का नाम बदलकर पीरामल हेल्थकेयर लिमिटेड हुआ।

2009- 188 करोड़ रु में यूएस फर्म Minard International Inc के बिजनेस का अधिग्रहण किया।

2009 आते-आते पीरामल ग्रुप 1 बिलियन डॉलर का रेवेन्यु वाला हो गया था। इस समय तक कंपनी इंडिया की 5वीं सबसे बड़ी फॉर्मा कंपनी बन चुकी थी।

2010: अमेरिकी कंपनी Abbott Laboratories ने पीरामल हेल्थकेयर कंपनी के फार्मा सॉल्यूशन बिजनेस को 17500 करोड़ रु में खरीदा। ये तब की इंडियन फार्मा इंडस्ट्री की दूसरी सबसे महंगी डील थी। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस डील में अजय को उस समय की वैल्यूएशन की तुलना में 9 गुना ज्यादा दाम मिला था। उन्होंने ने इस बिजनेस को 22 साल पहले 16.5 करोड़ में शुरू किया था।

2010: इसी साल कंपनी ने रियल एस्टेट बिजनेस में भी एंटर किया। बेटे आनंद ने अपनी पीरामल रियल्टी कंपनी खोली।

2011: वोडाफोन में 11% हिस्सेदारी खरीदी

2012: पीरामल हेल्थकेयर का नाम बदलकर पीरामल इंटरप्राइसेज किया गया।

2014: श्रीराम कैपिटल में 2014 करोड़ में 20% हिस्सेदारी खरीदी। साथ ही श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस लिमिटेड में भी 9.99% हिस्सा खरीदा।

2017: बेटे आनंद पीरामल इंटरप्राइसेज के नॉन एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर और पीरामल ग्रुप के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर बने।

2018: आज के समय में कंपनी 100 देशों में कारोबार कर रही है। इसमें कंपनी का फार्मा, फाइनेंशियल सर्विसेज, इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट, ग्लास पैकेजिंग और रियल एस्टेट का बिजनेस शामिल है।

कुल मिलाकर 98 साल पहले 50 रुपए में शुरू हुआ पीरामल एम्पायर अब करीब 67 हजार करोड़ पर पहुंच चुका है।

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