फुहारों के बीच ट्रैकिंग का मजा - त्रिउंड

By: Priyanka Maheshwari Sat, 05 May 2018 4:16:09

फुहारों के बीच ट्रैकिंग का मजा - त्रिउंड

अगर आप ट्रैकिंग का शौक फरमाते है तो हमने आपके लिए चुना है हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखला का एक छोटा-सा ट्रैक 'त्रिउंड', जो करीब दस हजार फुट की ऊँचाई पर है। कभी टिपटिप बारिश तो कभी तेज बौछारों के बीच फिसलन भरे पहाड़ी रास्तों पर एक-एक कदम जमाने की जद्दोजहद ने हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से ऊपर इस ट्रैक को यादगार बना दिया।

इस ट्रैक को और रोमांच भरा बनाया जा सकता है अगर लाका और बर्फीले इंद्रहार दर्रा पार करते हुए चंबा की ओर बढ़ा जाए तो, लेकिन बारिश में फिसलन भरे रास्ते के बाद, हो सकता है, आप भी हमारी तरह ऊपर चोटी की बर्फ देखने के बजाय एक रात अपने तंबू में बादल की गर्जन-तर्जन महसूस करने के लिए रुक जाएँ। ट्रैक की सुरुआत होती है मैक्लोडगंज से जो तिब्बत की निर्वासित सरकार की राजधानी है। दलाई लामा की पीठ होने के चलते यह दुनिया भर के बौद्धों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। बौद्ध मठों और बौद्ध भिक्षुओं की इस नगरी से ही खुलता है त्रिउंड का रास्ता।

triund trek,adventure,holidays,travel,tracking ,त्रिउंड ट्रैक

यह रास्ता आपको मेघालय के चेरापूँजी की याद दिलाता है जिसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ऊपर त्रिउंड पहुँचते-पहुँचते दिन ढलने लगा था। ठंड और बारिश बढ़ गई थी। बादल खूब गरज रहे थे और चोटी पर बिजलियों का घेरा था। इस पूरे ट्रैक में आपको सुनाई देती हैं बौद्ध मठों की घंटियों की मधुर ध्वनि, जो धुंध और नीचे उतर आए बादलों की सतह पर तैरती प्रतीत होती है। मैक्लोडगंज का एक बड़ा आकर्षण है भगसू फॉल्स और भगसू मंदिर। ठीक झरने के ऊपर से शुरू होता है 'त्रिउंड ट्रैक'। जब हमने अपना ट्रैक शुरू किया तो धीमी-धीमी फुहार पड़ रही थी, जो पूरे रास्ते कभी बहुत तेज तो कभी हलकी होती रही, लेकिन थमी नहीं।

triund trek,adventure,holidays,travel,tracking ,त्रिउंड ट्रैक

रास्ते भर हाथों में छाता और कंधे पर टंगे सामान को पन्नी से कसकर बाँधने के बावजूद हाथ-पैर नम से लगने लगते हैं। बारिश के चलते रास्ता ठीक से दिखता नहीं, पैरों का संतुलन गड़बड़ाता है। फिसलन इतनी है कि एक कदम गलत पड़ा और सैकड़ों फुट नीचे खाई में।

ऐसे रास्ते पर छाते को थामे हुए चलना टेढ़ी खीर है। यह रास्ता आपको मेघालय के चेरापूँजी की याद दिलाता है जिसे कुछ समय पहले तक सबसे अधिक बारिश के लिए जाना जाता था। ऊपर त्रिउंड पहुँचते-पहुँचते दिन ढलने लगा था। ठंड और बारिश बढ़ गई थी। बादल खूब गरज रहे थे और चोटी पर बिजलियों का घेरा था। लगने लगा कि रात इन्हीं के साथ बीतेगी। त्रिउंड में रुकने के लिए सिर्फ वन विभाग का एक गेस्ट हाउस है, जो एक स्थायी इंतजाम है।

triund trek,adventure,holidays,travel,tracking ,त्रिउंड ट्रैक

वहाँ चोटी के पास थोड़ी-सी जगह समतल है जहाँ हमने बारिश और तेज हवा के बीच अपने टेंट गाड़े। तंबू के भीतर बैठे हम शमशेर बहादुरसिंह के शब्दों को याद कर रहे थे- "काल तुझसे होड़ है मेरी।" इस तरह से रात कटी और सुबह जब बाहर निकले तो चारों तरफ का नजारा इतना मासूम था कि लग ही नहीं रहा था कि रात क्या वलवला था। ऊपर बर्फ से ढँकी चोटियाँ और नीचे दिलकश घाटी। लौटते हुए मैक्लोडगंज और रास्ते में बने बौद्ध मठों की घंटियाँ यह आभास दिलाती रहीं कि निर्जन वन में कहीं दूर ही सही कोई है।

हम WhatsApp पर हैं। नवीनतम समाचार अपडेट पाने के लिए हमारे चैनल से जुड़ें... https://whatsapp.com/channel/0029Va4Cm0aEquiJSIeUiN2i

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2024 lifeberrys.com