भगवान गणेश जी और उनके प्रतीक चिन्हों का महत्व
By: Megha Thu, 24 Aug 2017 7:15:30
गणेश जी को विघ्नहर्ता, गणनायक, लंबोदर, विनायक आदि नामो से जाना जाता है जो अपने भक्तो के हर कष्टों को दूर करने हेतु तत्पर रहते है। गणेश जी का विशालकाय शरीर उनके अलग अलग प्रतिको को बताता है की वह निराकार होते हुए भी सभी दुखो को दूर करने के लिए तत्पर है। गणेश जी को सभी गणों का स्वामी माना जाता है। आज हम उनके ही कुछ प्रतिको के बारे में जानेगे जो की हमारी अज्ञानता को दूर कर सकेगी, तो आइये जानते है इस बारे में...
# गणेश जी का सिर जो की हाथी का बना हुआ है। हाथी ज्ञानशक्ति और कर्म का प्रतीक है और हमारा ज्ञान और कर्म ही हमरे भविष्य का निर्धारण करता है। इसलिए जब इनकी पूजा की जाती है तो हमारे शरीर से अज्ञानता का अंत हो जाता है।
# अब बात की जाए गणेश जी के पेट की तो वह बहुत ही बड़ा है जो उदारता और सम्पूर्णता लिए हुए है। जिससे हमे यह ज्ञान मिलता है की हमे भी सदेव ही उदारता रखनी चाहिए।
# गणेश जी का एक हाथ उपर उठा हुआ है जो यह बताता है की वह हमारी सदेव रक्षा करेंगे और दूसरा हाथ नीचे की और झुका हुआ है जो यह बताता है की समय आने पर हम सभी इस मिटटी में मिल जायेगे। इसलिए किसी भी चीज़ का अभिमान नहीं करना चाहिए।
# गणेश जी एकदंत है। उनके एक दंत होने का भी अर्थ है की एकाग्रता। वह अपने अंदर एकाग्रता लिए हुए है और जब इनको घर में स्थापित कर इनकी पूजा की जाती है जो यही संदेश मिलता है की एकाग्रता हर स्थिति में होनी जरूरी है।
# उनके हाथ में जो भी वस्तु है उसका भी कुछ न कुछ महत्व है। ऐसे में उनके हाथ में जो अंकुश है उसका अर्थ है जाग्रत रहना है क्योकि जाग्रति के साथ ही ऊर्जा उत्पन्न होती है और पाश का अर्थ है नियंत्रण करना क्योकि नियन्त्रण नहीं होगा तो व्याकुलता हो सकती है
# साथ ही उनका जो वाहन है उससे भी ज्ञान मिलता है की एक चूहा उन रस्सी को काटकर अलग कर देता है जो हमे बांधती है। चूहा हमारे अज्ञान की परतो को हटा देता है, तो ऐसे ही हमे रस्सियों को हटाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।