
अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए 2018 में दी गई प्रतिबंध छूट को वापस ले लिया है। यह निर्णय 29 सितंबर से प्रभावी होगा। चाबहार बंदरगाह के एक टर्मिनल के विकास में भारत भी शामिल है, इसलिए इस कदम को भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने कहा है कि इस प्रतिबंध के लागू होने के बाद चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वाले या संबंधित गतिविधियों में लगे लोग अमेरिका के प्रतिबंधों के दायरे में आ जाएंगे। यह निर्णय ईरान की अस्थिरता बढ़ाने वाली गतिविधियों को रोकने की अमेरिकी नीति के तहत लिया गया है।
अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह पर लगाया प्रतिबंध
अमेरिकी विदेश विभाग ने एक बयान में कहा, "ईरानी शासन को अलग-थलग करने के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अधिकतम दबाव नीति के अनुरूप, उसने अफगानिस्तान पुनर्निर्माण सहायता और आर्थिक विकास के लिए ईरान स्वतंत्रता और प्रसार रोधी अधिनियम (IFCA) के तहत 2018 में जारी प्रतिबंध छूट को रद्द कर दिया है, जो 29 सितंबर, 2025 से प्रभावी है।" इस प्रतिबंध के प्रभावी होने के बाद, चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वाले या आईएफसीए में वर्णित अन्य गतिविधियों में संलग्न व्यक्ति आईएफसीए के तहत प्रतिबंधों के अधीन हो सकते हैं।"
ईरान की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को रोकना
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा, "अमेरिका, हांगकांग और संयुक्त अरब अमीरात में स्थित कई व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ-साथ एक अंतरराष्ट्रीय अवैध वित्तीय नेटवर्क को भी प्रतिबंधित करके ईरान की अस्थिरता पैदा करने वाली गतिविधियों का मुकाबला कर रहा है।"
साथ ही बयान में कहा गया, “इन नेटवर्क ने ईरानी तेल की बिक्री को सुगम बना दिया है, जिससे प्राप्त होने वाली आय से ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर क़ुद्स फ़ोर्स (आईआरजीसी-क्यूएफ) और रक्षा एवं सशस्त्र बल रसद मंत्रालय (एमओडीएएफएल) को लाभ हुआ है।” अमेरिका ईरान की दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को वित्तपोषित करने वाले अवैध वित्तपोषण को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत के लिए चाबहार बंदरगाह अहम क्यों
अमेरिका के इस निर्णय का प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा, क्योंकि वह ओमान की खाड़ी में स्थित चाबहार बंदरगाह पर एक टर्मिनल के विकास में शामिल है। इतना ही नहीं 13 मई, 2024 को भारत ने इस बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जिससे उसे मध्य एशिया के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी। यह पहली बार था जब भारत किसी विदेशी बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में ले रहा था।
भारत इस बंदरगाह को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के एक हिस्से के रूप में विकसित कर रहा है, जो रूस और यूरोप को मध्य एशिया के माध्यम से जोड़ने वाली एक पारगमन परियोजना है। चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के करीब स्थित है, जिससे यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। ईरान के संदिग्ध परमाणु कार्यक्रम की वजह से उस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण बंदरगाह के विकास की गति धीमी हो गई थी।
चाबहार बंदरगाह परियोजना के तहत 100 करोड़ रूपये आवंटित
भारत ने इस बंदरगाह का इस्तेमाल 2023 में अफगानिस्तान को 20,000 टन गेहूं भेजने और 2021 में ईरान को पर्यावरण-अनुकूल कीटनाशक आपूर्ति के लिए किया था।
चाबहार बंदरगाह संचालन पर दीर्घकालिक द्विपक्षीय अनुबंध भारत की इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (आईपीजीएल) और ईरान की पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन (पीएमओ) के बीच हस्ताक्षरित किया गया, जो चाबहार बंदरगाह विकास परियोजना के तहत शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के संचालन को 10 वर्षों की अवधि के लिए सक्षम बनाता है। विदेश मंत्रालय ने 2024-25 के लिए चाबहार बंदरगाह परियोजना के तहत 100 करोड़ रूपये आवंटित किए हैं, जो ईरान के साथ भारत की संपर्क परियोजनाओं पर विशेष ध्यान को दर्शाता है।














