तमिलनाडु के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पर लगे अपहरण के गंभीर आरोपों को लेकर चल रही कानूनी उठापटक में गुरुवार को बड़ा मोड़ आया जब सुप्रीम कोर्ट ने एडीजीपी एच एम जयराम के खिलाफ जांच को क्राइम ब्रांच–क्राइम इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (CB-CID) को सौंप दिया। कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया जिसमें जयराम को हिरासत में लेने का निर्देश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को भी उनके निलंबन को लेकर फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: हाई कोर्ट के आदेश को बताया 'मनोबल गिराने वाला'
जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा कि जिस प्रकार हाई कोर्ट ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को हिरासत में लेने का निर्देश दिया और फिर राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित किया, वह प्रक्रिया चौंकाने वाली और मनोबल तोड़ने वाली है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि जांच सीबी-सीआईडी को सौंपी जाए।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि वे मद्रास हाई कोर्ट के निर्देश से असहमत हैं और संबंधित मामलों को किसी दूसरी पीठ को सौंपने की सिफारिश करेंगे।
तमिलनाडु सरकार की दलील और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि एडीजीपी जयराम का निलंबन अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 के तहत किया गया है, न कि हाई कोर्ट के आदेश पर।
इस पर बेंच ने सवाल किया कि क्या जांच को CID या किसी विशेष शाखा को सौंपा जा सकता है। सरकार ने इस पर सहमति जताई और कहा कि उन्हें CB-CID को जांच सौंपने में कोई आपत्ति नहीं है।
क्या है मामला?
यह मामला एक नाबालिग लड़के के कथित अपहरण से जुड़ा है, जो एक अंतरजातीय विवाह विवाद का हिस्सा बताया जा रहा है। आरोप है कि जिस युवक ने दूसरे समुदाय की युवती से विवाह किया, उसके नाबालिग भाई को कुछ लोगों ने अगवा कर लिया और इस अपहरण में एडीजीपी जयराम की भूमिका भी संदिग्ध बताई गई, क्योंकि उनके सरकारी वाहन का कथित तौर पर अपहरणकर्ताओं ने इस्तेमाल किया।
हाई कोर्ट ने 16 जून को जयराम को गिरफ्तार करने का मौखिक निर्देश दिया था। इसके कुछ घंटे बाद ही उन्हें निलंबित कर दिया गया, जिससे सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई। कोर्ट का मानना है कि इस तरह के आदेशों से ईमानदार अधिकारियों का मनोबल टूटता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
—हाई कोर्ट के हिरासत आदेश को खारिज किया गया।
—मामले की जांच CB-CID को सौंपी गई।
—मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया गया कि संबंधित मामलों को किसी अन्य पीठ को सौंपा जाए।
—याचिकाकर्ता को निलंबन आदेश को चुनौती देने के लिए वैधानिक रास्ते अपनाने की छूट दी गई।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायिक संतुलन और प्रशासनिक निष्पक्षता की दिशा में एक अहम कदम है। जहां एक ओर अदालत ने संवेदनशील सामाजिक मामले को गंभीरता से लिया, वहीं दूसरी ओर उसने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी अधिकारी के खिलाफ बिना पर्याप्त जांच के कठोर कदम न उठाए जाएं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि CB-CID की जांच क्या निष्कर्ष लाती है और क्या एडीजीपी जयराम पर लगे आरोपों में दम है या नहीं।