उदयपुर के वल्लभनगर के निकट रुंडेड़ा गांव में बुधवार रात रंग तेरस के ऐतिहासिक अवसर पर ग्रामीणों ने उत्साहपूर्वक पारंपरिक गैर नृत्य में भाग लिया। इस भव्य आयोजन में गैर नृत्य, घूमर, पट्या, तलवारबाजी और आतिशबाजी जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। गांव की बहन-बेटियों समेत बाहर से आए लोग भी इस पारंपरिक उत्सव का हिस्सा बने। पूरे गांव को रंग-बिरंगी रोशनियों से सजाया गया, और देश-विदेश में रहने वाले प्रवासी ग्रामीण भी विशेष रूप से शामिल हुए।
458 वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन
रंग तेरस महोत्सव की शुरुआत 11 बंदूकों की सलामी के साथ हुई, जो बीते 458 वर्षों से चली आ रही परंपरा का प्रतीक है। आयोजन के दौरान विभिन्न समुदायों ने अपनी-अपनी धार्मिक परंपराओं का पालन किया। ब्राह्मण समाज के लोग श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में, जणवा समाज चारभुजानाथ मंदिर में, और जाट समुदाय के लोग जाटों की बावड़ी में एकत्र होकर इस ऐतिहासिक परंपरा को जीवंत बनाए रखा।
नृत्य, संगीत और रोमांचक करतबों का अनूठा संगम
गांव के तीनों स्थानों पर गैर नृत्य का शुभारंभ हुआ, जो देर रात तक चलता रहा। पुरुष वृत्ताकार में नृत्य करते रहे, जबकि महिलाएं सिर पर कलश लेकर घूमर प्रस्तुत करती रहीं। ढोल और मादल की थाप के साथ नृत्य का यह संगम देखने वालों के लिए अविस्मरणीय रहा। इसके अलावा, ग्रामीणों ने तलवारबाजी व आग के गोले से अद्भुत करतब दिखाए, जिससे दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए। गैर नृत्य के समापन पर पारंपरिक ‘नेजा निकालने’ की रस्म पूरी की गई और तोप दागकर रंग तेरस उत्सव के समापन की घोषणा की गई।
रंगों और भक्ति से सराबोर उत्सव
इस उत्सव के दिन दोपहर में ग्रामीणों ने मंदिर तक रंग खेलते हुए यात्रा निकाली। पंचों के नेतृत्व में तीन ढोल, थाली और मादल के साथ गांव की उत्तर दिशा में स्थित धूणी पर धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किया गया। जयकारों और गुलाल उड़ाते हुए ग्रामीणों ने अपनी परंपरा को गर्व से आगे बढ़ाया और इस ऐतिहासिक पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया।