भरतपुर। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जिसे घना पक्षी अभयारण्य के नाम से भी जाना जाता है, अब पहले जैसा गुलजार नहीं रहा। प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट धीरे-धीरे कम होती जा रही है, क्योंकि ये परिंदे अब अपने वतन की ओर लौटने लगे हैं। चंद प्रजातियों के पक्षी ही अब घना में रुके हुए हैं, जो जल्द ही पलायन कर जाएंगे। सर्दियों की ठंडक का आनंद लेने और अपनी वंशवृद्धि करने के बाद, ये पक्षी अब गर्मी की आहट पाते ही पलायन कर रहे हैं।
फरवरी से शुरू होता है लौटना
ईटीवी राजस्थान के अनुसार, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह बताते हैं कि प्रवासी पक्षियों का पलायन फरवरी के पहले सप्ताह से ही शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे सर्दी कम होने लगती है और गर्मी दस्तक देती है, वैसे-वैसे पक्षी अपने मूल वतन की ओर लौटने लगते हैं। इस समय तक अधिकतर पक्षी उड़ान भर चुके होते हैं, लेकिन नॉर्दर्न शोवलर और बार-हेडेड गूज जैसे कुछ पक्षी अभी भी रुके हुए हैं। आने वाले दिनों में ये भी अपने प्रवास के अंतिम चरण में प्रवेश करेंगे।
निदेशक मानस सिंह ने बताया कि हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में साइबेरिया, मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान और तिब्बत के ऊंचे पहाड़ी इलाकों से पक्षी लंबी यात्रा करके केवलादेव पक्षी विहार पहुंचते हैं। उनकी यह यात्रा कई हजार किलोमीटर लंबी होती है। इनमें से कुछ पक्षी 5000 किलोमीटर तक का सफर तय करते हैं।
निदेशक मानस सिंह ने बताया कि पक्षियों के पलायन से जुड़ी एक दिलचस्प बात यह है कि ये ज्यादातर पूर्णिमा की रात को ही उड़ान भरते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, उजाली रातों में चांदनी के प्रकाश में दिशाओं का अनुमान लगाना पक्षियों के लिए आसान होता है। ये परिंदे अकेले नहीं उड़ते, बल्कि झुंड में सफर करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, ये अपनी उड़ान में सूरज की दिशा और चंद्रमा व सितारों के प्रकाश का सहारा लेते हैं। आश्चर्यजनक रूप से, ये हर साल ठीक उसी जगह पर लौटते हैं, जहां वे पिछले साल ठहरे थे।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की विशेषता यह है कि यह प्रवासी पक्षियों को ठंड से राहत देने के साथ-साथ भरपूर भोजन भी उपलब्ध कराता है। यहां की झीलें और दलदली इलाकों में मछलियां, छोटे-छोटे कीट-पतंगे, और पानी में पनपने वाले वनस्पति मिलते हैं, जो इन परिंदों का मुख्य आहार होते हैं। डक्स, गीज़, रेप्टर्स, वारब्लर्स, स्टिल्ट्स और अन्य कई प्रजातियों के पक्षी यहां अपनी वंशवृद्धि भी करते हैं। इन महीनों में केवलादेव की झीलों में हजारों पक्षी अपने घोंसले बनाते हैं और नन्हे चूजों को जन्म देते हैं।